छात्रों के ठहराव एवं मनोरंजनपूर्ण शिक्षा के लिए बाला (BaLA) एक नया आयाम है। BaLA- Building as Learning Aid यानि विद्यालय भवन सीखने-सिखाने का माध्यम। गत वर्षों में अलवर के अनेकों विद्यालयों में BaLA एक्टिविटी का कार्य किया गया जिसके अभूतपूर्व परिणाम जैसे छात्र संख्या वृद्धि एवं समुदाय का झुकाव स्कूलों के प्रति देखने का मिला।
बाला गतिविधियों का अर्थ है कि विद्यालय के भीतर मौजूद हर वस्तु का शिक्षण सामग्री के रूप में इस्तेमाल करना। जैसे :- जमीन, दीवार, सीढ़ी, पिलर्स, फर्नीचर, पंखे, खिड़कियां, दरवाजे, पेड़-पौधे, खुला मैदान, चार-दीवारी आदि। उदाहरण के तौर पर सीढ़ियों पर गिनती लिखी हुई हों तो बालक सीढ़ियों में उतरते-चढ़ते खेल-खेल में गिनती सीख सकते हैं। फर्श पर बनी खगोलीय, ज्यामितीय आकृतियाँ व अन्य खेलों के द्वारा बालक सहज सीखने की कोशिश करेंगे। छात्र पिलर्स पर बने स्केल से अपनी व दूसरों की लंबाई नापते नजर आयेंगे। दरवाजे के साथ कोण मापक से कोण नापने का ज्ञान सहज होगा।
प्रायः यह देखा जाता है कि विद्यालय भवन के कुर्सी (Plinth) तक एवं इससे तीन फीट ऊपर तक के भाग को मरम्मत की अधिक आवश्यकता होती है। संयोगवश यही वह ऊंचाई है जो इन स्कूली बच्चों को सुलभ होती है। इस जगह का ही सर्वाधिक उपयोग बाला में किया जा सकता है। इस जगह पर अभ्यास बोर्ड, चौखाने वाले बोर्ड, बिन्दु बोर्ड बनाए जा सकते हैं जिन पर बालक स्वयं अभ्यास कर सकते हैं। दरवाजों पर चित्र बनाकर उनका उपयोग किया जा सकता है। इस प्रकार विद्यालय के प्रत्येक अवयव का उपभोग बाला में किया जा सकता है। साईकिल, बस, ट्रक, जीप, कार के अनुपयोगी टायरों द्वारा अनेक खेल तैयार किए जा सकते हैं। रैम्प में रेलिंग का उपयोग बच्चों के लिए टेलीफोन का खेल भी हो सकता है। स्वास्थ्य एवं स्वच्छता संबंधी चित्र बालकों में जागरूकता पैदा करेंगे। कुछ दृश्य भ्रम के चित्र भी बालकों को आकर्षित करेंगे। झूला, फिसलनी एवं अन्य खेलने के साधन शाला में ही विकसित करने होंगे।
शिक्षक समाज एवं विद्यालय की वह कड़ी है जो इस देश को नई दिशा दे सकता है। शिक्षक का प्रभाव बालक पर सबसे ज्यादा नज़र आता है क्योंकि शिक्षक ही बालक की मनोदशा को भली प्रकार समझता है। ऐसे अनेक कार्य करते हुऐ शिक्षक विद्यालय की स्थिति एवं उपलब्ध संसाधनों से ही बाला का नया रूप प्रदान कर सकता है। प्रायः देखा जाता है कि बालक स्कूल छोड़कर गलियों में कंचे या अन्य खेल खेलते नज़र आते हैं। जब शाला में ही उन्हें खेल-खेल में ही पढ़ाई की सुविधा मिलेगी तो कोई कारण नहीं जो ये बालक शाला में न रूके बल्कि छुट्टी के बाद भी इनका घर जाने को मन नहीं करेगा। यदि बाला कार्य के साथ समाज को भी जोडा जावे और समाज के लोगों को बाला के उद्देश्य बताए जाए तो समाज का भी सहयोग अवश्य मिलेगा और शाला में बालकों द्वारा होने वाली तोड़-फोड़ नहीं करने के प्रति जागरूकता पैदा होगी।
आओ-हम सभी मिलकर बाला गतिविधि के द्वारा इन नन्हीं कलियों को सुन्दर फूल में परिवर्तित करने में सहयोग करें। अपने कर्तव्यनिष्ठ समर्पण के साथ। तभी आने वाला कल हमारा स्वागत करेगा।
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