BASIC SHIKSHA, HIGHCOURT, GRATUITY, ORDER : हाईकोर्ट का शिक्षकों को 62 वर्ष की सेवानिवृत्ति पर भी ग्रेच्युटी देने का आदेश, देखें कोर्ट ऑर्डर
लखनऊ । इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने शिक्षकों के हित में एक महत्वपूर्ण फैसला देते हुए राज्य सरकार को आदेश दिया है कि सेवानिवृत्त शिक्षकों को ग्रेच्युटी का भुगतान किया जाए। न्यायमूर्ति मनीष माथुर की एकल पीठ ने इस संबंध में दर्ज याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए आदेश दिया कि सरकार ऐसे सेवानिवृत्त शिक्षकों को ग्रेच्युटी का भुगतान करे, जिन्हें इस लाभ से वंचित किया गया था।
याचिकाकर्ताओं ने उच्च शिक्षा विभाग द्वारा शिक्षकों को सेवानिवृत्ति के बाद ग्रेच्युटी न देने के सरकारी आदेशों को चुनौती दी थी। कोर्ट ने कहा कि ‘ग्रेच्युटी एक्ट, 1972’ के अनुसार कर्मचारियों को पांच साल की निरंतर सेवा के बाद ग्रेच्युटी का लाभ मिलना चाहिए, जो कि एक संवैधानिक अधिकार है।
कोर्ट ने यह भी कहा कि राज्य सरकार के पुराने आदेश, जो शिक्षकों को इस लाभ से वंचित करते हैं, केंद्रीय ग्रेच्युटी कानून की धारा 14 के अंतर्गत मान्य नहीं हैं। अदालत ने सरकारी आदेश दिनांक 30 मार्च 1983 और 4 फरवरी 2004 को रद्द करते हुए कहा कि यह प्रावधान शिक्षक हितों के खिलाफ हैं और उन्हें ग्रेच्युटी लाभ से वंचित करते हैं।
इस आदेश में उल्लेख किया गया कि उच्चतम न्यायालय के फैसले और ग्रेच्युटी एक्ट, 1972 के अनुसार राज्य सरकार के ऐसे आदेश वैध नहीं हैं, जो कर्मचारियों के संवैधानिक अधिकारों का हनन करते हों। अदालत ने स्पष्ट किया कि उचित भुगतान के अभाव में 6% ब्याज सहित ग्रेच्युटी का भुगतान किया जाना चाहिए, जो सेवानिवृत्ति की तारीख से लेकर वास्तविक भुगतान तक लागू रहेगा।
अदालत ने आदेश दिया कि संबंधित अधिकारी इस निर्णय का पालन सुनिश्चित करें और 6 महीने के भीतर सभी योग्य शिक्षकों को ग्रेच्युटी का भुगतान करें।
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