शिक्षक दिवस - "कमजोर भले किया गया लेकिन हम व्यापारी नहीं, शिक्षक हैं !”
हरिशंकर परसाई जी कहा करते थे कि दिवस कमजोर का मनाया जाता है, जैसे महिला दिवस, शिक्षक दिवस, मजदूर दिवस कभी थानेदार दिवस नहीं मनाया जाता।
मेरा मानना है कि परसाई जी का यह कथन शाश्वत सत्य नहीं है। यह परिस्थिति जन्य है। महिला, मज़दूर या अध्यापक में से कोई भी कमजोर नहीं है। हमारी सामाजिक और प्रशासनिक व्यवस्था ने उन्हें कमजोर स्थिति तक पहुंचाया है।
यह कथ्य व्यवस्था पर है न कि महिला, मज़दूर और अध्यापक पर आइये शाश्वत सत्य को समझने का प्रयास करते हैं एक रोचक विषय से- एक उद्योगपति राजकीय शिक्षा संस्थानों के शिक्षकों को संबोधित कर रहे थे- देखिए! बुरा मत मानिए ! लेकिन जिस तरह से आप काम करते हैं; जिस तरह से आपके संस्थान चलते हैं यदि मैं ऐसा करता तो अब तक मेरा बिजनेस डूब चुका होता । चेहरे पर सफलता का दर्पण साफ दिखाई दे रहा था !
तो समझिए ! आपको बदलना होगा आपके राजकीय संस्थानों को बदलना होगा आप लोग आउटडेटेड पैटर्न पर चल रहे हैं और सबसे बड़ी समस्या आप शिक्षक स्वयं हैं, जो किसी भी परिवर्तन के विरोध में रहते हैं ! "हमसे सीखिए ! बिजनेस चलाना है तो लगातार सुधार करना होता है किसी तरह की चूक की कोई गुंजाइश नहीं !”
भाषण समाप्त होते ही प्रश्न पूछने के लिए एक शिक्षक का हाथ खड़ा हुआ “सर ! आप दुनिया की सबसे अच्छी कॉफी बनाने वाली कंपनी के मालिक हैं। एक जिज्ञासा थी कि आप कॉफी के कैसे बीज मंगाते हैं ? “
उद्योगपति का गर्व भरा ज़वाब था- “एकदम सुपर प्रीमियम! कोई समझौता नहीं !”
“अच्छा मान लीजिए आपके पास जो माल भेजा जाए उसमें कॉफी के बीज घटिया क्वालिटी के हों तो ?”
”सवाल ही नहीं ! हम उसे तुरंत वापस भेज देंगे; वेंडर कंपनी को ज़वाब देना पड़ेगा; हम उससे अपना क़रार रद्द कर सकते हैं ! कॉफी बीज चयन के हमारे बहुत सख्त मापदंड है इसी कारण हमारी कॉफी की प्रसिद्धि है ! “आत्मविश्वास से भरे उद्योगपति का लगभग स्वचालित उत्तर था !
“अच्छा है ! तो अब हमें यूँ समझिए कि हमारे पास रंग-स्वाद-गुण में अत्यधिक विभिन्नता के बीज आते हैं, लेकिन हम अपने कॉफी के बीज वापस नहीं भेजते ! “
“हमारे यहां सब तरह के बच्चे आते है; अमीर-गरीब, होशियार-कमजोर, गाँव के-शहर के, चप्पल वाले-जूते वाले, हिंदी माध्यम के-अंग्रेजी माध्यम के, शांत- बिगड़ैल…सब तरह के ! हम उनके अवगुण देखकर उनको निकाल नहीं देते, सबको स्वीकार करते हैं, सबको पढ़ाते हैं; सबको बनाते हैं, क्योंकि सर ! हम व्यापारी नहीं, शिक्षक हैं !”
शिक्षक साथियों शिक्षक दिवस मनाना यह दर्शाता है कि शिक्षक हर पल हर क्षण संघर्षरत समाज का हिस्सा बन दिया गया है जो हमेशा अपनी बातों को रखता है परन्तु उसकी बात हमेशा अनसुनी की जा रही है इस बात का हम सभी को ध्यान रखना होगा कि जब भी शिक्षक दिवस मनायें तो अपनी पूरी उर्जा के साथ आवाज को बुलंद करें। जिससे आप की आवाज नीति नियंताओं और समाज के कानों को स्पर्श करके हृदय पर चोट करे।
बात जब नीति नियंताओं और समाज की चल निकली है तो यह भी समझना होगा कि आज जो माहौल बनाया गया है उससे दोनों ही वर्ग शिक्षकों की अवधारणा को नजरंदाज करते हुए दिन प्रतिदिन हमारी मजबूत स्थिति को तोड़ते हुए शिक्षा के क्षेत्र में ही नहीं समाज में भी हमको कमजोर और उपेक्षित किया जा रहा है।
शिक्षक समाज की रीढ़ होते हैं। वे हमारे जीवन के पहले गुरु होते हैं, जो केवल पाठ्यक्रम का ज्ञान ही नहीं बल्कि जीवन की सच्ची शिक्षा भी देते हैं। वे सही और गलत का अंतर सिखाते हैं। वह हमें समाज उत्थान के लिए प्रेरित करते हैं। शिक्षक दिवस सिर्फ यह याद दिलाता है कि शिक्षा के महत्व को समझना और शिक्षकों का सम्मान करना कितना जरूरी है। यह दिन शिक्षकों के प्रति हमेशा आभार व्यक्त करने का बताता है कि शिक्षक दिवस केवल एक उत्सव नहीं है बल्कि यह एक संदेश है कि शिक्षकों का सम्मान और शिक्षा का महत्व शाश्वत रुप से हमेशा सर्वोपरि रहना चाहिए।
परन्तु जो स्थिति बनाई और दिखाई जा रही है उससे स्पष्ट होता रहा है कि जो वर्ग शासन सत्ता के नजदीक रहा है वो हमेशा असंतुलन को बनाये रखने के लिए प्रयासरत रहता है जिससे समाज के एक प्रबुद्ध वर्ग से चुनौतियां का सामना न करना पड़े क्योंकि यही समाज में हर तरफ हर तरह की कड़वी सच्चाइयों को दिखाता रहेगा। जिससे ऐसा कुछ कर दिया जाए कि शिक्षक समाज स्वयं हमेशा संघर्षरत रहे।
"शिक्षक की है बड़ी महत्ता उस पर राष्ट्रचेतना का भार।"
"सीमित नहीं किताबों तक वह, है संघर्षों का अवतार।।"
- दयानन्द_त्रिपाठी_व्याकुल
लेख के कुछ तथ्य पुस्तकों आदि से भी लिए गये हैं।
1 Comments
शिक्षक की धरातलीय स्थिति का मार्मिक विवेचना। 🙏🙏🙏
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