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महराजगंज : हाईटेक हुए स्कूल नहीं भरा जा सका शिक्षा मित्रों का जख्म - राधेश्याम गुप्ता

महराजगंज : हाईटेक हुए स्कूल नहीं भरा जा सका शिक्षा मित्रों का जख्म - राधेश्याम गुप्ता 

महराजगंज । शिक्षामित्रों के दर्द और अल्प मानदेय में जीवन गुजर कर उनके बदहाली के दंश से सब वाकिफ है।कभी समान काम समान वेतन तो कभी शिक्षक के बराबर अर्हता पर ढाई दशक से लगे ग्रहण को दूर करने का लालीपाप देकर राजनैतिक दल संख्याबल का फायदा भुनाते रहे ।शिक्षामित्रों का रहनुमा बन सरकारें सत्ता पर काबिज होने के बाद नजरे फेरती रहीं है।नतीजा यह है कि कभी मंहगाई तो कभी कर्जे के बोझ तले दब शिक्षामित्र जान गवांते रहे। लेकिन शिक्षामित्रों के भविष्य पर लगे ग्रहण को मिटाने का प्रण करने वाली राजनैतिक दलों के दावे सत्ता पाते ही दम तोड़ देते हैं।
उल्लेखनीय है कि प्रदेश में शिक्षकों की कमी से परिषदीय स्कूलों को बचाने के लिए तत्कालीन भाजपा की कल्याण सरकार ने 1999 में शिक्षामित्र योजना ला कर बंद परिषदीय स्कूलों के ताले खोलने का अनूठा प्रयास किया। संविदा पर तैनात शिक्षामित्रों की निष्ठा देख बसपा की मायावती सरकार ने दूरस्थ प्रशिक्षण के द्वारा शिक्षामित्रों को प्रशिक्षित कर स्थाईकरण का रास्ता निकाला। शिक्षामित्रों के प्रशिक्षण की अनुमति मिलने के बाद प्रदेश में सरकार बदल गयी और सपा की अखिलेश सरकार ने प्रशिक्षित शिक्षामित्रों को सहायक अध्यापक के पद पर समायोजन कर दिया। जो शिक्षामित्र समायोजन से वंचित रहे उनको सम्मान जनक दस हजार मानदेय का प्रपोजल तैयार किया। सुप्रीम कोर्ट द्वारा शिक्षामित्रों का समायोजन 25 जुलाई 2017 को निरस्त कर दिया।इसके बाद प्रदेश में चुनाव का मौसम आया तो भाजपा ने न्यायोचित समाधान की घोषणा की लेकिन सरकार द्वारा शिक्षामित्रों की समस्याओं के समाधान के लिए बनी हाई लेवल कमेटी का निष्कर्ष पहेली बन कर रह गया। अलबत्ता समायोजन से वापस शिक्षामित्र पद पर लौटे शिक्षामित्रों का मानदेय भी असमायोजित शिक्षामित्रों के बराबर दिया जाने लगा। भाजपा द्वारा स्थायीकरण पर उचित निर्णय के आश्वासन के बाद चुप्पी पर शिक्षामित्र विरोध दर्ज कराए लेकिन बगावत न कर उनके तेवर निष्ठा और इस सरकार से सम्मान वापस पाने का प्रयास किया।छःसाल तक योगी सरकार से राहत की आस लगाए बैठे शिक्षामित्र चुनावी मौसम में सरकार का विरोध न कर अपने भविष्य पर लगे ग्रहण छटने का इंतजार कर रहे हैं।

बढ़ती महगाई और जिम्मेदारी ने जिंदगी को बनाया कठिन

सुप्रीम कोर्ट द्वारा शिक्षामित्रों का समायोजन 25 जुलाई 2017 को निरस्त कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को शिक्षक की अर्हता रखने वाले शिक्षामित्रों को शिक्षक भर्ती में अवसर देने का जिक्र किया है। कोर्ट ने अपने निर्णय में कहा है कि प्रदेश सरकार शिक्षक भर्ती के मानक को पूरा करने वाले शिक्षामित्रों को दो भर्तियों में वेटेज देकर शामिल करने का मौका दे। साथ ही उम्र की बाध्यता में छूट देने का सलाह दी। कोर्ट के निर्देश के बाद शिक्षक भर्ती के मानक को पूरा करने वाले शिक्षामित्रों को प्रति वर्ष सेवा पर मेरिट मे दो अंक व अधिक 25 अंक देने का प्रावधान किया। शिक्षक भर्ती के मानक को पूरा करने के लिए शिक्षामित्रों ने जी जान लगा दिया लेकिन सरकार ने शिक्षक भर्ती के लिए लिखित परीक्षा का कड़ा प्रावधान कर दिया। देश व प्रदेश में पहली बार ऐसा नियम बनाया गया। कोर्ट द्वारा शिक्षामित्रों को वेटेज का निर्देश देने के बाद भी सरकार के लिखित परीक्षा के प्रावधान ने शिक्षामित्रों के जख्मो को हरा कर दिया।शिक्षामित्र 50वर्ष की उम्र में बच्चों की पढाई बेटी की शादी माँ बाप की दवाई की बढी जिम्मेदारी के बीच सुपर टेट की तैयारी और बीस साल पुरानी परीक्षाओ की मेरिट वर्तमान मेरिट से फासले की मुसीबत बन रहे है।

हाईटेक हुए स्कूल, नहीं बदले शिक्षामित्रों के हालात: राधेश्याम

शिक्षामित्रों की मांगे और उनकी समस्याओं को लेकर उ. प्र. प्राथमिक शिक्षामित्र संघ के जिलाध्यक्ष राधेश्याम गुप्ता ने कहा कि शिक्षामित्रों को योगी सरकार से काफी उम्मीदें रही। वर्ष 2015 में समायोजन कोर्ट से निरस्त होने पर योगी आदित्यनाथ बतौर सासंद गोरखपुर में शिक्षामित्रों के साथ सड़क पर उतरे और तत्कालीन सरकार से सदन में अध्यादेश लाकर शिक्षामित्रों के स्थायीकरण की पुरजोर मांग की थी। ऐसे में जब प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की सरकार बनी तो शिक्षामित्रो को उनकी समस्याओं के निस्तारण की उम्मीद जग गयी। शिक्षामित्र चाढे चार साल तक सरकार के साथ कदम से कदम मिलाकर चले लेकिन अभी तक ठोस निर्णय न लेने पर शिक्षामित्र गांधीवादी तरीके से सरकार को मांगपत्र सौंप स्थायीकरण के सम्बंध मे ठोस निर्णय लेने की मांग कर रहे हैं। श्री गुप्ता ने बताया कि प्रदेश सरकार हाई लेवल कमेटी का गठन कर शिक्षामित्रों की समस्याओं और उनके सम्बंध में निराकरण की रिपोर्ट भी मांगी लेकिन आज तक कमेटी की रिपोर्ट उजागर न हो सकी।लाखों रुपये खर्च कर स्कूलों का कायाकल्प कर हाईटेक किया गया लेकिन शिक्षामित्रों के हालात नहीं बदले जा सके।

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