COURT CASE : सरकार के खिलाफ दर्ज मुकदमों की पैरवी में अब नहीं चलेगी हीलाहवाली, अब प्रतिशपथपत्र दाखिल कराने को प्रमुख सचिव होंगे जिम्मेदार
लखनऊ : सरकार के खिलाफ दर्ज मुकदमों की पैरवी में अब हीलाहवाली नहीं चलेगी। अदालत की अवमानना के मामलों में शासन के वरिष्ठ अधिकारियों को सजा सुनाये जाने से हुई किरकिरी को लेकर सरकार इस मोर्चे पर सतर्क और सख्त हुई है। शासन में उच्चस्तर पर निर्णय हुआ है कि संबंधित विभाग के अपर मुख्य सचिव/प्रमुख सचिव यह सुनिश्चित कराएंगे कि सरकार के खिलाफ दर्ज मुकदमों में समय से प्रतिशपथपत्र दाखिल हो जाएं। कोर्ट में सरकार की फजीहत न हो, इस लिहाज से वादों की निगरानी के लिए रजिस्टर भी बनवाएंगे।
यह भी तय हुआ है कि अदालत की अवमानना के मामलों के लिए निजी निगरानी तंत्र बनेगा। विचाराधीन वादों की निगरानी के लिए विधि विभाग वेबसाइट तैयार करेगा। जिन अधिकारियों को जांच के मामलों और प्रत्यावेदन के निस्तारण में निर्णय लिखाना होता है उनके प्रशिक्षण की भी व्यवस्था होगी। बीते दिनों हाईकोर्ट ने सचिवालय प्रशासन विभाग के अपर मुख्य सचिव महेश कुमार गुप्ता को सजा सुनायी थी। मुख्य सचिव को भी अदालत की अवमानना की नोटिसें मिली हैं। कोर्ट में सरकार के बैकफुट पर रहने के कारणों को तलाशने और इनके हल के लिए पिछले दिनों हुई मुख्य सचिव की अध्यक्षता में बैठक हुई थी जिसमें हाईकोर्ट लखनऊ बेंच के मुख्य स्थायी अधिवक्ता और शासकीय अधिवक्ता भी शामिल हुए थे।
बैठक में यह बात सामने आयी कि प्रतिशपथपत्र दाखिल करने की तारीख के एक दिन पहले संबंधित विभाग का पैरोकार आता है। जांच अधिकारी की जगह आने वाले कर्मचारी को अमूमन मुकदमे के तथ्यों की जानकारी नहीं होती है। कोर्ट द्वारा प्रतिशपथपत्र दाखिल करने की तारीख बढ़ाने के बावजूद भी प्रस्तरवार उत्तर (नैरेटिव) ठीक नहीं मिलता। कई बार तो उसमें गलत नियमों का उल्लेख कर दिया जाता है। सरकार के स्टैंडिंग काउंसिल को नैरेटिव बहुत संक्षेप में प्रस्तुत किये जाते हैं। इनके आधार पर तैयार प्रतिशपथपत्र में पर्याप्त तथ्य ने होने से कोर्ट में प्रभावी पैरवी नहीं हो पाती है।
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