PM, EXAMINATION, CHILDREN : पीएम ने कहा- बच्चों के 'रिपोर्ट कार्ड' को अभिभावक अपना 'विजिटिंग कार्ड' न बनाएं
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मंगलवार को एक मार्गदर्शक के रूप में नजर आए। देशभर में बोर्ड परीक्षाएं शुरू होने से पहले उन्होंने दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में करीब 2000 विद्यार्थियों, शिक्षकों और अभिभावकों से 'परीक्षा पे चर्चा' की। सवाल-जवाब शैली में हुए इस कार्यक्रम में मोदी ने अभिभावकों से आग्रह किया कि वे बच्चों के 'रिपोर्ट कार्ड' को अपना 'विजिटिंग कार्ड' न बनाएं और अपने अधूरे सपनों को पूरा करने की उनसे उम्मीद न रखें।
बोर्ड परीक्षाओं से पहले प्रधानमंत्री ने की विद्यार्थियों, शिक्षकों और अभिभावकों से 'परीक्षा पे चर्चा'
10वीं और 12वीं की परीक्षाएं शुरू होने में एक माह से भी कम समय बचा है। ऐसे में प्रधानमंत्री मोदी ने देशभर के चुनिंदा बच्चों, शिक्षकों और अभिभावकों को इस संवाद के लिए आमंत्रित किया था। प्रधानमंत्री ने अभिभावकों से आग्रह किया कि वे अपने बच्चों की प्रेरणा और प्रोत्साहन के वाहक बनें। प्रत्येक बच्चे की अपनी क्षमता और ताकत होती है। हर एक बच्चे की इन सकारात्मक चीजों को समझना महत्वपूर्ण है।
अपने अधूरे सपनों को पूरा करने की बच्चों से उम्मीद न पालें
अभिभावक अक्सर बच्चों के रिपोर्ट कार्ड को अपने विजिटिंग कार्ड के तौर पर पेश करते हैं और वे बच्चों पर अतिरिक्त दबाव डालते हैं जो अनुचित और अस्वस्थ तरीका है। यदि आप 60 फीसद अंक लाने वाले बच्चे को प्रोत्साहित करेंगे तो वह 70 या 80 फीसद की ओर बढ़ेगा। यदि आप उसे 90 फीसद अंक नहीं लाने पर डांटते और फटकारते रहेंगे तो आप उसे हतोत्साहित करेंगे। इससे उसका ग्रेड गिरकर 40 फीसद पर आ जाएगा।
इस दौरान सबसे रोचक सवाल एक मां का था, जिन्होंने प्रधानमंत्री से पूछा कि उनका बच्चा पिछले कुछ समय से ऑनलाइन गेम की ओर ज्यादा आकर्षित हो रहा है और वह चाहकर भी इससे दूर नहीं कर पा रही हैं। इस पर मोदी ने चुटीले अंदाज में कहा, 'पबजी वाला तो नहीं है।' इसे लेकर स्टेडियम में जमकर ठहाके भी लगे। मालूम हो कि पबजी एक वीडियो गेम है जिसमें दूर-दूर जगहों पर बैठे कई लोग एक साथ खेल सकते हैं।
मोदी ने सलाह दी कि बच्चों को तकनीक से जुड़ी दूसरी जानकारियां देनी चाहिए ताकि उनका रुझान तकनीक के सही पहलू की ओर चला जाए। उन्होंने बच्चों को खेल के मैदान से जोड़ने का जिक्र करते हुए एक कविता सुनाई और कहा, 'कुछ खिलौनों के टूटने से बचपन नहीं मरा करता।'
'मोदी सर' के कुछ खास मंत्र
- यदि परिजन अपने बच्चे की तुलना दूसरे से करेंगे तो उससे वह निराश होंगे।
- इसलिए हर छोटे सुधार पर भी बच्चे को प्रोत्साहित करें।
- मौजूदा शिक्षा प्रणाली 'रैंक' आधारित ही नहीं, बल्कि उसके पीछे भागने वाली बन गई है।
- ऐसे में परिजन और शिक्षक विद्यार्थियों को अपने आसपास की चीजों से सीखने पर जोर दें।
- सिर्फ रैंक लाने पर फोकस करने की बजाए फ्री रहें और नई चीजों को समझने की कोशिश करें।
- हमारी पढ़ाई सिर्फ परीक्षा तक सीमित न रहे। जीवन के विभिन्न आयामों और चुनौतियों का सामना करने में भी सक्षम बनें।
- मेरा मानना है कि हर चुनौती हमें निखरने का अवसर भी देती है।
- यदि हमारे सामने कोई चुनौती नहीं होगी तो हम लापरवाह बन जाएंगे।
- अपने पुराने रिकॉर्ड से अपनी तुलना कीजिए, अपना प्रतिस्पर्धी खुद बनिए।
- यदि आप अपने खुद के रिकॉर्ड तोड़ेंगे तो कभी असफल नहीं रहेंगे।
- परीक्षाएं जीवन में अहम हैं, लेकिन इनसे किसी को तनाव में नहीं आना चाहिए।
- खुद से पूछिए कि क्या किसी खास कक्षा या 10वीं या 12वीं की परीक्षा आपकी जीवन की परीक्षा है क्या?
- जैसे ही आपको इस प्रश्न का उत्तर मिल जाएगा, आपका तनाव घट जाएगा।
- जीवन के लक्ष्य ऊंचे रखिए, लेकिन उन्हें हासिल करने को बोझ मत मानिए।
- सपनों को बोझ माना तो उन्हें ढोते-ढोते आप बूढ़े हो जाएंगे वे पूरे नहीं होंगे।
- सबसे पहले हमें खुद को समझना पड़ेगा। खुद के प्रति सच्चा बनना होगा।
- लक्ष्यों को चरणबद्ध ढंग से हासिल करने का प्रयास कीजिए।
- एक चरण में एक मील का पत्थर पार कीजिए। छोटी पायदान से बड़ी पर चढि़ए।
चुनावी समर में उतरने से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देशवासियों के साथ अपने भरोसे की डोर को और मजबूत करते हुए कहा कि आज लोगों को विश्वास है कि मोदी उनकी उम्मीदों को पूरा करेंगे। उन्होंने कहा कि लोग कहते है कि मोदी ने लोगों की अपेक्षाओं को बढ़ा दिया है। यह अच्छी बात है। अपेक्षाओं के बोझ से वह दबना नहीं उसे पूरा करने का जज्बा होना चाहिए।
परीक्षा-पे-चर्चा में बोले मोदी, कहा-मै चाहता हूं सवा सौ करोड़ देशवासी लगाएं उम्मीदें
मौका तो था परीक्षा में चर्चा के दौरान छात्रों से बातचीत का, लेकिन इसी बीच उन्होंने अपनी आगामी लोकसभा परीक्षा को लेकर भी जवाब दे दिया। मंगलवार को तालकटोरा स्टेडियम में परीक्षा-पे-चर्चा कार्यक्रम में देश-विदेश के छात्रों, अभिभावकों और शिक्षकों के साथ रूबरू थे। इस दौरान एक छात्र ने उनसे अपेक्षाओं से जुड़ा एक सवाल किया, जिस पर उन्होंने यह जवाब दिया।
पीएम मोदी ने इस दौरान छात्रों और अभिभावकों को परीक्षा के दौरान होने वाले तनाव से बचने की कई और टिप्स दी। इस दौरान सबसे रोचक सवाल एक मां का था, जिसने पीएम से पूछा कि उसका बच्चा पिछले कुछ समय से ऑनलाइन गेम की ओर से ज्यादा आकर्षित हो रहा है। मैं चाह कर भी उन्हें इससे दूर नहीं कर पा रही हूं। इस पर पीएम मोदी ने चुटीले अंदाज में कहा कि -पबजी वाला तो नहीं है। इसे लेकर स्टेडियम में जमकर ठहाके भी लगे।
मोदी ने सलाह दी कि बच्चों को तकनीक से जुड़ी दूसरी जानकारियां देनी चाहिए, ताकि उसका रूझान तकनीक के सही पहलू की ओर चला जाए। बच्चों को खेल मैदान से जोड़ने का भी जिक्र किया। एक कविता भी सुनाई और कहा कि 'कुछ खिलौनों के टूटने से बचपन नहीं मरा करता है।'
लोग कहते है कि मोदी ने लोगों की उम्मीदें बढ़ा दी है। लोगों को विश्वास है, कि मोदी है तो यह होगा। मै तो चाहता हूं कि सवा सौ करोड़ देशवासियों की सवा सौ करोड़ उम्मीदें हो। अपेक्षाओं के बोझ से दबना नहीं चाहिए-नरेंद्र मोदी।
केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावडेकर ने पीएम मोदी की तारीफ की और कहा कि वह दुनिया के ऐसे प्रधानमंत्री है, जो बच्चों को परीक्षा से होने वाले तनाव को लेकर इस तरह की चर्चा करते है। पिछले साल इस चर्चा में सात करोड़ लोग जुडे थे, इस बार करीब 12 से 15 करोड़ लोग जुडे हुए है। इनमें विदेशों में रहने वाले भारतीय बच्चे भी शामिल है।
अभिभावकों को दिया मंत्र
बच्चों पर न थोपे अपने सपने: बच्चों पर अपने सपने न थोपें। अक्सर देखा जाता है, कि पिता ने डाक्टर बनने का सपना देखा था, पर नहीं बन सका। अब वह बच्चों पर डाक्टर बनने का दबाव डालता है, जो कि गलत है। बच्चों को उनकी रुचि के हिसाब से बढ़ने में मदद दें।
बच्चे से रखे मेल-जोल: बच्चों के साथ बड़ा बनकर कभी भी बर्ताव न करे। बल्कि उनके साथ उनकी उम्र का बनकर ही सोंचे।
छात्रों को दिए मंत्र
खुद तोड़ें अपना रिकार्ड: हमेशा अपने रिकॉर्ड से प्रतिस्पर्धा कीजिए और उसे ब्रेक कीजिए। इससे आप भी निराश नहीं होंगे और तनाव में भी नहीं रहेंगे।
दबाब में न ले फैसला: अपनी क्षमता को पहचाने और उस दिशा में आगे बढ़ने में किसी की भी मदद लें।
परीक्षा कोई जीवन की परीक्षा नहीं: परीक्षा को अपने सामर्थ्य को परखने के एक मौके के रूप में देखे। नंबर के पीछे मत भागिए अन्यथा जिंदगी पीछे छूट जाएगी।
डिप्रेशन से बचें: डिप्रेशन तभी आता है, जब सेपरेशन की स्थिति होती है। ऐसे में परिवार, दोस्तों के साथ जुड़ाव बनाए रखे। माता-पिता के साथ भी खुल कर बातचीत करें।
समय प्रबंधन: हर दिन 24 घंटे में वह क्या-क्या करते है, इसका कम से कम हफ्ते में समीक्षा करें।
Posted By: Bhupendra Singh
0 Comments