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SCHOOL, ENGLISH : सरकारी स्कूलों में पढ़े छोटे शहरों के लोगों को अंग्रेजी सिखाना कठिन- इंडिगो

SCHOOL, ENGLISH : सरकारी स्कूलों में पढ़े छोटे शहरों के लोगों को अंग्रेजी सिखाना कठिन- इंडिगो

नई दिल्ली (जेएनएन)। संसदीय समिति ने एयरलाइनों से अपने कर्मचारियों को यात्रियों के प्रति सौम्य व्यवहार का प्रशिक्षण दिलाने को कहा है। समिति ने जब एयरलाइनों से उनके कर्मचारियों के अभद्र व्यवहार की वजहें जानने का प्रयास किया तो कुछ एयरलाइनों ने अजोबोगरीब कारण गिनाए। उदाहरण के लिए इंडिगो के अधिकारियों ने कहा कि 130 करोड़ लोगों के देश में उसे डिग्रीधारी तो बहुत मिलते हैं परंतु ऐसे प्रतिभाशाली लोग नहीं मिलते है जो फर्राटेदार अंग्रेजी बोलने के साथ-साथ ग्राहकों से शालीनतापूर्वक पेश आएं। उन्होंने छोटे शहरों में पले और सरकारी स्कूलों में पढ़े लोगों को अंग्रेजी सिखाने में आने वाली मुश्किलों का रोना भी रोया। इंडिगो के प्रेसीडेंट ने से बातें संसद की परिवहन, पर्यटन व संस्कृति संबंधी स्थायी समिति के समक्ष कहीं।

अभद्र व्यवहार पर बहानों के बजाय कर्मचारियों को प्रशिक्षण दें एयरलाइनें- संसदीय समिति

तृणमूल कांग्रेस के राज्यसभा सदस्य डेरेक-ओ-ब्रायन की अध्यक्षता वाली समिति के सदस्यों ने इंडिगो अधिकारी से जानना चाहा था कि यूं तो सभी एयरलाइनों के खिलाफ कर्मचारियों के खराब व्यवहार की शिकायतें आती रहती हैं। लेकिन इंडिगो की हाल की कुछ घटनाओं ने सभी का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट किया है। समिति के मुताबिक कभी-कभी तो एयरलाइन कर्मियों का व्यवहार इतना रूखा होता है मानो वे आसमान से आए हों और यात्री महज जानवरों का झुंड हों। 'प्लीज' और 'थैंक यू' बोलने के बाद उनका व्यवहार बदल जाता है।

समिति ने कहा है कि ऐसे मामलों में केवल दोषी कर्मचारी के खिलाफ कड़ी कार्रवाई भर से लाभ होने वाला नहीं। क्योंकि ये समस्या व्यक्तिगत नहीं, बल्कि संस्थागत है। इंडिगो को अपने भीतर झांकना चाहिए। उसे अपने कर्मचारियों के बर्ताव के पीछे के कारणों का पता लगाकर उन्हें प्रशिक्षण देना चाहिए।

संसदीय समिति के समक्ष इंडिगो ने कहा देश में नहीं मिल रहे अच्छे कर्मी

समिति के सदस्य इंडिगो की इस बात से पूरी तरह असहमत थे कि सरकारी स्कूलों में पढ़े लोगों को प्रशिक्षित नहीं किया जा सकता। समिति के अनुसार सरकारी स्कूलों से अनेक प्रतिभाएं निकली हैं। इंडिगो का आकार इतना बढ़ा है तो उसे गांवो व कस्बों के लोगों पर आरोप लगाने के बजाय प्रशिक्षण पर उसी अनुपात में संसाधन लगाने चाहिए। समिति ने अन्य एयरलाइनों से भी अपने कर्मचारियों को सौम्य व्यवहार की ट्रेनिंग देने को कहा है। ताकि वे फ्लाइट के टेक-ऑफ, लैंडिंग में विलंब और डायवर्जन जैसी संकटपूर्ण स्थितियों में संयम बनाए रखें।

समिति ने दिव्यांग जैसे विशिष्ट जरूरतों वाले यात्रियों के साथ विनम्र व मददपूर्ण बर्ताव के लिए कर्मियों को प्रशिक्षित किए जाने की जरूरत बताई है। समिति ने पाया कि अलग-अलग एयरलाइनों के प्रशिक्षण कार्यक्रमों का प्रारूप अलग है। कुछ मामलों में तो खानापूरी की जाती है। समिति ने विमानन मंत्रालय से इस विषय में दिशानिर्देश तैयार कर उन्हें सभी एयरलाइनों पर लागू करने को कहा है।

अधिकतम किराया तय हो

समिति ने हवाई किरायों में अनियमितता की भी जांच की है। इसके आधार पर उसका कहना है अमेरिका जैसी बाजार आधारित मूल्य प्रणाली भारत के लिए उपयुक्त नहीं हो सकती। क्योंकि एटीएफ के दामों में पचास फीसद कमी के बावजूद यहां की एयरलाइनों ने ग्राहकों को उसका लाभ नहीं दिया है। हर साल त्यौहारों के आसपास कुछ एयरलाइनें दस गुना तक किराये बढ़ा देती हैं। यह मनमाना रवैया है। विनियमन का ये मतलब कतई नहीं है कि शोषण की आजादी दे दी जाए। विमानन मंत्रालय की देश के नागरिकों के प्रति सामाजिक जिम्मेदारी है। वो केवल आर्थिक पहलुओं को ध्यान में रखकर निर्णय नहीं ले सकता। उसे आगे बढ़कर अपनी भूमिका निभानी चाहिए तथा हवाई किरायों की उच्चतम सीमा तय करनी चाहिए।

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