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एक छत के नीचे 'प्राइमरी का मास्टर' से जुड़ी शिक्षा विभाग की समस्त सूचनाएं एक साथ

MAN KI BAAT : बच्चों से संवाद निश्चित आवश्यक है लेकिन तेजी से बदल रहे सामाजिक परिवेश का सबसे ज्यादा असर बच्चों पर अब दिखने लगा है, परन्तु बच्चों की देखरेख की जिम्मेदारी सिर्फ अभिभावकों की ही नहीं है बल्कि स्कूल और कालेज प्रबंधन की भी है क्योंकि बच्चा छह से आठ घंटे.......

MAN KI BAAT : बच्चों से संवाद निश्चित आवश्यक है लेकिन तेजी से बदल रहे सामाजिक परिवेश का सबसे ज्यादा असर बच्चों पर अब दिखने लगा है, परन्तु बच्चों की देखरेख की जिम्मेदारी सिर्फ अभिभावकों की ही नहीं है बल्कि स्कूल और कालेज प्रबंधन की भी है क्योंकि बच्चा छह से आठ घंटे.......

तेजी से बदल रहे सामाजिक परिवेश का सबसे ज्यादा असर बच्चों पर अब दिखने लगा है। मंगलवार को लखनऊ के एक स्कूल में घटी घटना दिल दहला देती है। अपने स्कूल में छुट्टी कराने के लिए कक्षा सात की एक लड़की ने अपने ही यहां के छह वर्ष के और पहली कक्षा में पढ़ने वाले एक छात्र पर चाकू से हमला कर दिया। कानून की आंख में लड़की ने बेशक अपराध किया और उसे इसका दंड भी मिलेगा पर इतनी छोटी लड़की को अपराधी भला कैसे कहा जाए। केवल उस परिवार के लिए ही नहीं बल्कि पूरे समाज के लिए यह घटना चिंताजनक है। क्यों और कहां से लड़की के मन में इतने घातक विचार पनपे। कई बार पहले भी ऐसी घटनाएं प्रकाश में आती रही हैं। क्यों बच्चे इतने हिंसक हो रहे हैं। क्या इसका एक कारण बच्चों का अकेलापन है।

अक्सर देखने को मिलता है कि बच्चों के अभिभावक उन्हें उतना समय नहीं दे पा रहे जितना उनके बच्चे को चाहिए। चूंकि बच्चे अपने में मगन रहना सीख गए हैं लिहाजा अपने मन की बात भी अभिभावकों से कहने से वे बचने लगे हैं। परिणाम यह कि वे अवसादग्रस्त हो रहे हैं और उनके मन में उल्टे-सीधे ख्याल पनपते हैं।

अब भी न चेता गया तो इस प्रवृत्ति के परिणाम भविष्य में और भी बुरे हो सकते हैं। अभिभावकों को अपने बच्चों को ज्यादा से ज्यादा समय देना चाहिए। उनके साथ घूमना-फिरना और उनकी गलत मांगों को समझदारी से मना करना चाहिए। उनसे दोस्ताना व्यवहार करना चाहिए। सबसे अहम है बच्चों और मां बाप के बीच का संवाद। यह होगा तो बच्चे अपने मन की बात खुलकर शेयर कर सकेंगे। अगर बच्चे डर-डर कर रहेंगे तो वे अपनी बातों को अभिभावकों से छिपाए रखेंगे और मन ही मन घुटते रहेंगे।

बच्चों की देखरेख की जिम्मेदारी सिर्फ अभिभावकों की ही नहीं है बल्कि स्कूल और कालेज प्रबंधन की भी है क्योंकि बच्चा छह से आठ घंटे का समय स्कूल-कालेज में व्यतीत करता है। इसलिए शिक्षण संस्थानों को भी ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए प्रयास करने होंगे और बच्चों की काउंसिलिंग भी समय-समय पर करानी होगी।

        - जागरण संपादकीय

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