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MAN KI BAAT : शिक्षक के बतौर हम सभी इस बात को जानते हैं कि बच्चों को पढ़ने के लिए प्रेरित करना काफी महत्वपूर्ण है, यह न केवल उनकी पढ़ाई के लिए आवश्यक है बल्कि यह एक ऐसी दक्षता है जो ताउम्र........

MAN KI BAAT : शिक्षक के बतौर हम सभी इस बात को जानते हैं कि बच्चों को पढ़ने के लिए प्रेरित करना काफी महत्वपूर्ण है, यह न केवल उनकी पढ़ाई के लिए आवश्यक है बल्कि यह एक ऐसी दक्षता है जो ताउम्र........

🔴 बाल साहित्य और भाषा शिक्षण

शिक्षक के बतौर हम सभी इस बात को जानते हैं कि बच्चों को पढ़ने के लिए प्रेरित करना काफी महत्वपूर्ण है। यह न केवल उनकी पढ़ाई के लिए आवश्यक है बल्कि यह एक ऐसी दक्षता है जो ताउम्र उनके काम आएगी। हम जानते हैं कि -

⚫ बच्चे की पढ़ने की दक्षता उसे स्कूल में, अपने घर, समाज या किसी और जगह मदद पहुँचाती है।
स्कूल में पढ़ने की दक्षता का होना एक बुनियादी जरूरत है। इसी के माध्यम से कोई बच्चा विभिन्न विषयों को पढ़ व समझ सकता है।

⚫ रोजमर्रा की जिन्‍दगी में भी पढ़ने की दक्षता का महत्व है - पत्र, समाचार पत्र, बाजार के विभिन्न सामानों पर लगे लेबल (रैपर), विज्ञापन, होर्डिंग व रास्तों के दिशा निर्देश, आदि सभी को पढ़ने और समझने के लिए इस दक्षता का होना काफी मदद पहुँचाता है।

⚫ पढ़ने से खुशी भी मिलती है। किस्से-कहानियों से लेकर गीत, कविताएँ, कार्टून/कॉमिक्स, आदि को पढ़कर न केवल मजा आता है बल्कि नई-नई जानकारियाँ भी मिलती हैं। कई बार तो अच्छे आईडिया भी सूझ जाते हैं।




पढ़ने की दक्षता के कुछ अन्य फायदे

जो बच्चे पाठ्यपुस्तकों के अतिरिक्त कविताओं, कहानियों आदि की पुस्तकें पढ़ते रहते हैं उनका उच्चारण बेहतर होता है, वे व्याकरण की गलतियाँ कम करते हैं। ऐसा देखा गया है कि इन बच्चों में बालसाहित्य न पढ़ने वाले बच्चों की बनस्बित समालोचनात्मक चिन्‍तन की क्षमता अधिक होती है। ये आमतौर पर अच्छे लेखक बन सकते हैं।  

विभिन्न अध्ययनों से यह भी पता चलता है कि ऐसे बच्चों का शब्द संग्रह काफी विस्तृत होता है और वे सामान्यतया परिष्कृत भाषा का प्रयोग करते हैं।

साहित्य बच्चों को मानव जीवन के उन पहलुओं के बारे में भी बताता है जिनसे उनका आने वाले समय में वास्ता पड़ने वाला होता है। एक तरह से यह उन्हें भविष्य के लिए तैयार करता है।

साहित्य के माध्यम से बच्चे अपने से भिन्न परिवारों/समाजों के बारे में जान पाते हैं। साथ ही यह उन्हें दूसरों की जिन्‍दगी में अन्दर झाँकने का मौका देता है - उनके दुख-दर्द, खुशी-गम आदि को समझने का मौका देता है।
साहित्य पढ़ने से बच्चों में कल्पना करने की दक्षता के साथ ही सृजनात्मकता का भी विकास होता है।

इसके माध्यम से बच्चे अपने स्वयं के बारे में, जिस समाज में वे रहते हैं उसके बारे में, अपने व समाज के विश्वासों, मूल्यों, आदि के बारे में एक तार्किक समझ विकसित कर पाते हैं।

पढ़ना अपने आप में एक मजेदार अनुभव है। यह घण्‍टों बच्चों को एक सार्थक गतिविधि में रमाए रखता है।
पुस्तकालय या स्कूल में पुस्तकें          

पढ़ना एक ऐसा कौशल है जिसके लिए निरन्‍तर अभ्यास की आवश्यकता होती है। अधिकांश शोधों से यह पता चलता है कि बच्चों की पसन्‍द के साहित्य की उपलब्धता या बाल साहित्य का बच्चों के लिए आसानी से उपलब्ध होना उनमें पढ़ने की दक्षता को विकसित करने में महत्वपूर्ण कारक है।

शोध कहते हैं कि जब बच्चों को उनकी इच्छा और पसन्‍द से पुस्तकें पढ़ने की स्वतंत्रता मिलती है तो वे इस पढ़ने को विद्यालयी प्रक्रिया नहीं समझते। वे उसमें आनन्‍द लेने लगते हैं। यह भी देखा गया है कि यह स्वतंत्रता उनमें सीखने की प्रक्रिया को तेज कर देती है। किसी विद्यालय का पुस्तकालय या विद्यालयों में उपलब्ध बालसाहित्य यह माहौल बच्चों को आसानी से उपलब्ध करा सकता है।

विद्यालय में उपलब्ध पुस्तकें अन्य कारणों से भी महत्वपूर्ण होती हैं -

ये पुस्तकें कक्षा में पढ़ाए जाने वाले विभिन्न विषयों के बारे में बच्चों को अतिरिक्त जानकारी उपलब्ध कराती हैं। वे उन मुद्दों पर विस्तृत समझ बना पाते हैं।

कई बार विद्यालय में शिक्षकों की संख्या कम होती है और आप सभी बच्चों पर एक सा ध्यान नहीं दे पाते हैं। ऐसे में बच्चे या तो सिर्फ खेल में व्यस्त होते हैं या फिर आपस में धींगा-मस्ती करने लगते हैं। विद्यालय में उपलब्ध पुस्तकें ऐसे समय काम आ सकती हैं। आप बच्चों के एक समूह को कुछ पुस्तकें दें। उनसे उनकी पसन्‍द की पुस्तक छाँटकर पढ़ने या देखने,पलटने को कहें। हो सकता है शुरू में वे इसमें रुचि न लें। पर कुछ दिनों बाद वे तन्मयता से पुस्तकों को पढ़ने व समझने में व्यस्त रहने लगेंगे।

अक्सर देखा गया है कि बच्चे जब समूहों में पढ़ते हैं तो पढ़ी और समझी गई बातों के बारे में अपने साथियों के साथ बातचीत करते हैं। यह बातचीत सीखने की प्रक्रिया में एक महत्वपूर्ण कदम है। इससे उनमें अभिव्यक्त करने का कौशल भी विकसित होता है।

आपने गौर किया होगा कि कई बच्चे समय से पहले विद्यालय आ जाते हैं या कुछ बच्चे अपना काम समय से पहले खत्म कर लेते हैं। ऐसे बच्चों को बचे हुए समय में पुस्तकें पढ़ने के लिए दे सकते हैं।

एक शिक्षक के नाते आप इन बिन्दुओं पर विचार करें कि-

आपके विद्यालय में बच्चों के लिए किस प्रकार की पुस्तकें उपलब्ध हैं।

क्या ये पुस्तकें बच्चों को आकर्षित कर पाती हैं। आकर्षित करने वाली पुस्तकों की क्या खूबियाँ हैं। आपके अनुभव से बच्चों को आकर्षित करने वाली पुस्तकें कैसी होती हैं या होनी चाहिए।

उपलब्ध पुस्तकें कब और कितनी बार बच्चों को देखने को दी जाती हैं। क्योंकि अक्सर यह देखा जाता है पुस्तकें आमतौर पर प्रधानाध्यापक के कमरे की आलमारियों में बन्द रहती हैं।

पाठ्यपुस्तक से इतर कुछ पढ़ने के लिए निरन्‍तरता की आवश्यकता होती है। इसलिए यह जरूरी है कि बच्चों को नियमित तौर पर विद्यालय या पुस्तकालय में उपलब्ध पुस्तकों को पलटने व पढ़ने के मौके दिए जाएँ।

आपके विद्यालय में बच्चों को नियमित रूप से पुस्तक पढ़ने को मिलें, इसके लिए क्या प्रयास करेंगे या करना चाहेंगे।

विद्यालय में पुस्तकालय के सन्‍दर्भ के में निम्न बातों पर भी ध्यान देने की आवश्यकता होती है जैसे –

विद्यालय में किसी साफ-सुथरे कमरे में किसी खुली आलमारी में सभी पुस्तकों को करीने से सजा कर रखने से बच्चों में उन्हें देखने, पलटने व पढ़ने की उत्सुकता जागती है।

जहाँ पुस्तक रखी गई हैं वहाँ आसपास बैठकर पढ़ने की पर्याप्त जगह हो। अगर बैठने के लिए दरी या टाट पट्टी बिछाई जाए तो और भी अच्छा होगा।

अच्छा रहेगा यदि शिक्षक बच्चों के लिए उपलब्ध सभी पुस्तकों को एक बार पढ़ लें। इससे आपको इन पुस्तकों को विषयवार व स्तरवार जमाने में मदद मिलेगी। साथ जब आप बच्चों से इन पुस्तकों के बारे में चर्चा करेंगे तो आप समझ पाएँगे कि बच्चों ने उन पुस्तकों को कितना पढ़ा व समझा है।

पुस्तकालय को सुचारू रूप से चलाने के लिए आपकी शाला कुछ नियम भी बनाए गए होंगे। अगर न हों तो आप बना सकते हैं।

पुस्तकालय संचालन के लिए बच्चों की समिति: एक सुझाव:-

अधिकांश विद्यालयों में जहाँ पुस्तकालय का नियमित उपयोग होता है वहाँ यही व्यवस्था लागू की जाती है।

यह देखा गया है कि बच्चों के साथ मिल कर बनाए गए नियम ज्यादा कारगर रहते हैं। अपने स्कूल में इस सन्‍दर्भ में आपके अनुभव भी होंगे।

हमारा सुझाव है कि आप पुस्तकालय की जिम्मेदारी भी बच्चों पर छोड़कर देखें। पुस्तकालय के लिए बच्चों की एक कमेटी बनाई जा सकती है जो पुस्तकों का लेन देन, रख रखाव आदि की जिम्मेदारी सम्‍भाले।

कुछ समय के अन्‍तराल पर कमेटी के कुछ बच्चों को बदला जा सकता है।

हालांकि इस काम में उन्हें नियमित तौर पर आपके मार्गदर्शन की आवश्यकता पड़ेगी। जब एक बार नियम बन जाएँगे, रिकार्ड रखने के तरीके तय हो जाएँगे, कौन-सी कक्षा किस वक्त पुस्तकालय का इस्तेमाल करेगी आदि तय हो जाएगा तब बच्चे सारी चीजें खुद सम्‍भालने लगेंगे। तब पुस्तकालय में आपका समय कुछ विशेष गतिविधियों के लिए ही लगेगा।

पुस्तकालय में उपलब्ध बालसाहित्य की तरफ बच्चों को आकर्षित करने के लिए आप निम्न गतिविधियाँ कर सकते हैं-       

आप नियमित रूप से अपनी कक्षा में ही बच्चों को कुछ और पढ़ने को प्रेरित कर सकते हैं। इसे surprise reading session कहा जाता है। सप्ताह में किसी भी दिन शिक्षक अचानक बच्चों से कह सकते हैं कि आज हम सब चुपचाप एक-एक पुस्तक पढेंगे। इस समय में शिक्षक स्वयं भी कोई पुस्तक पढ़ें। अगर समय हो तो बच्चों से उनके द्वारा पढ़ी गई पुस्तक पर बातचीत भी कर सकते हैं। ऐसे सत्र में यदि कोई बच्चा पुस्तकालय से ली गई या तुरन्‍त कोई अन्य पुस्तक लाकर पढ़ना चाहे तो उसे यह छूट दें। यह गतिविधि सप्ताह में कम से कम दो बार तो करवाई ही जा सकती है।

विद्यालय में नई आई पुस्तकों को इस तरह प्रदर्शित करें कि बच्चों की नजर उन पर पड़े और वे उनकी तरफ आकर्षित हों।

अगर विद्यालय में पुस्तकों की संख्या कम हो तो बच्चों को जोड़ी बनाकर पुस्तक पढ़ने को कहा जा सकता है। ये जोड़ियाँ आपस में बातचीत कर पुस्तकों का चुनाव कर सकती हैं। कोई जोड़ी एक पुस्तक पढ़कर ( या उसका सार) दूसरी जोड़ी को सुनाए और फिर वे उस पर चर्चा करें। कुछ समय बाद शिक्षक इन जोड़ियों को बदल भी सकते हैं।

शिक्षक कभी-कभी स्वयं भी बच्चों के साथ बैठकर पुस्तकों के बारे में बातचीत करें। बातचीत के बिन्दु ऐसे हों जिनसे बच्चों में पुस्तक के प्रति जिज्ञासा पैदा हो। जैसे बच्चों से पुस्तक के कवर पेज और उस पर बने चित्रों के बारे में बात की जा सकती है। बातचीत इस प्रकार हो सकती है - पुस्तक के शीर्षक से तुम्हें क्या लगता है यह पुस्तक किसके बारे में होगी, कवर पर किसका चित्र बना है - चित्र से संबंधित बातें बच्चों को बताने को कहा जा सकता है, आदि।

छोटे बच्चों को स्वयं पढ़ने को प्रेरित करने के लिए नियमित रूप से उनके साथ बैठने की आवश्यकता है। छोटे बच्चों को शुरू में केवल चित्रों वाली पुस्तकें दें और उनसे उन पर बातचीत करें। बच्चे उन चित्रों को समझ कर अपनी कहानी स्वयं गढ़ लेते हैं, जो कई बार उनके अपने परिवेश पर आधारित होती है। कई बार उसका परिवेश या मूल कहानी से कोई सम्‍बन्‍ध नहीं होता। ऐसे में परेशान होने की जरूरत नहीं है। क्योंकि उस पुस्तक से बच्चे का एक रिश्ता तो बन ही जाता है। वह बार-बार उस पुस्तक को या वैसी पुस्तकों को उलटना-पलटना चाहेगा।

शिक्षक पुस्तक के अन्दर के चित्रों के बारे में भी बात कर सकते हैं। उन चित्रों के बारे में बच्चों से बगैर पुस्तक पढ़े ही उनके मन में जो बातें आ रही हैं वो बताने को कह सकते हैं। चित्रों को सभी बारीकी से देख पाएँ इसके लिए सभी बच्चों में पुस्तक घुमाई जा सकती है।

शिक्षक कभी-कभी बच्चों से किसी एक पुस्तक के बारे में विस्तार से बातचीत कर सकते हैं। कोशिश करें कि यह बातचीत बहुत ही अनौपचारिक तरीके से हो। जैसे कि हम अपने परिवार के सदस्यों या दोस्तों से बात करते हैं। इस दौरान उस पुस्तक में वर्णित कहानी के कुछ पात्रों, आदि के बारे में भी बता सकते हैं। उस पुस्तक के बारे में अपने व्यक्तिगत मत भी व्यक्त कर सकते हैं। लेकिन कोशिश होनी चाहिए कि बच्चे उस पुस्तक को पढ़कर अपना मत स्वयं बनाएँ और आपके मत पर निर्भर न करें। अगर आप उस कहानी के लेखक के बारे में कुछ और जानते हैं या फिर उस लेखक की लिखी किसी और पुस्तक के बारे में जानते हैं तो बच्चों को भी बताएँ।
चित्र : प्रशांत सोनी


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  1. 📌 MAN KI BAAT : शिक्षक के बतौर हम सभी इस बात को जानते हैं कि बच्चों को पढ़ने के लिए प्रेरित करना काफी महत्वपूर्ण है, यह न केवल उनकी पढ़ाई के लिए आवश्यक है बल्कि यह एक ऐसी दक्षता है जो ताउम्र........

    👉 http://www.basicshikshanews.com/2017/11/man-ki-baat_16.html

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