MAN KI BAAT : कई बार हम शिक्षकों से जब मिलते हैं तो उनसे बात करने पर लगता है कि उनकी सोच कितनी अच्छी है, बच्चों के लिए कितना कुछ करना चाहते/चाहती हैं, पर जब पूछो की आप जो सोचते हो उसे अपने विद्यालय मे कर क्यों........?
🔴 कोमल का मानना है कि जो बच्चे जितने शरारती होते हैं वो पढ़ाई में भी होशियार होते हैं.......
कई बार हम शिक्षकों से जब मिलते हैं तो उनसे बात करने पर लगता है कि उनकी सोच कितनी अच्छी है। बच्चों के लिए कितना कुछ करना चाहते/चाहती हैं। पर जब पूछो की आप जो सोचते हो उसे अपने विद्यालय मे कर क्यों नहीं पाते तो काफी लोगों से यह जवाब सुनने को मिलता है कि अकेले क्या कर सकते हैं? विद्यालय के बाकी शिक्षक साथ नहीं देते वे तो अपने तरीके से ही पढ़ाते हैं। तो हम एक कुछ करेंगे भी तो क्या फर्क पड़ेगा? कई शिक्षक यह भी सोचते हैं कि बहुत पहले प्रयास तो किया था पर कुछ बना नहीं। इस तरह की कई और कहानी सुनने को मिलती हैं। ऐसी बातों को सुनकर हमें भी यही लगने लगता है कि क्या करें माहौल ही नहीं है काम करने का? यह सच भी है कि हमारे आसपास का माहौल का काफी असर हमारे काम पर पड़ता है, लेकिन यह भी उतना ही सच है कि अगर हम पूरे आत्मविश्वास के साथ कुछ करें तो उसका असर तो होता ही है।
मैं एक ऐसी शिक्षिका के बारे में बताना चाहती हूँ, जिनका नाम कोमल सोनी है। इन्होंने मार्च 2015 में उच्च प्राथमिक शाला,मोरा, रेलमगरा ब्लाक, जिला राजसमंद,राजस्थान में शिक्षिका के तौर पर पदभार ग्रहण किया था। इस विद्यालय में लगभग 126 बच्चों का नामांकन है और 5 शिक्षक हैं। इस विद्यालय के लिए JIVA नामक NGO भी काम करता है, जिसने यहाँ के भौतिक वातावरण को काफी अच्छा बनाया हुआ है। यहाँ के बच्चों को विद्यालय समय के बाद भी पढ़ाया जाता है। यही एक कारण रहा था कि वहाँ के शिक्षकों को लगता था कि बच्चे को तो सब कुछ आता ही होगा, उन्हे ज्यादा मेहनत की जरूरत नहीं है ये ऐसे ही सीख जाएँगे।
कोमल आईं तो उन्हें यह महसूस हुआ कि यहाँ काफी कुछ किए जाने की जरूरत है। जैसे यह जगह बच्चों के लिए रुचिकर हो, कुछ नया हो हमेशा, बच्चे उत्साहित होकर भाग लें इत्यादि। पर शुरुआत कहाँ से करें यह समस्या थी। उन्होंने सबसे पहले उस विद्यालय के बाकी शिक्षकों से बात की, कुछ नवाचार करने को लेकर। शिक्षकों ने कहा आपको जो करना हो, आप करो। आपको पूरी छूट है, आजादी है, पर हमसे ज्यादा अपेक्षा न करो। हम यह सब पहले कर चुके हैं कोई फायदा नहीं होता, पर आप जो करना चाहोगे हम आपका साथ देंगे।
कोमल ने शुरुआत सुबह की प्रार्थना सभा से की। कक्षा 6,7 व 8 के बच्चों को सप्ताह के दो दिन प्रार्थना से लेकर विद्यालय की उस दिन से जुड़ी सभी गतिविधियों की जिम्मेदारी दी। कक्षा में भी सभी बच्चों को मौका मिले उसके लिए सभी की बारी निर्धारित की। उसके बाद उन्हें सुझाव दिया कि हम प्रार्थना में क्या-क्या कर सकते हैं ? जैसे कोई कहानी, समाचार, पहेली, चुट्कुले, कविता इत्यादि कर सकते हैं। उसके बाद से हर दिन बच्चे ढोल मंजीरे के साथ प्रार्थना करते हैं और सभी उसमें मजे से शामिल होते हैं। यही नहीं उन्होंने यह भी ध्यान रखा कि गाने और ढोल मंजीरे बजाने का काम लड़कियाँ और लड़के दोनों करेंगे।
शैक्षणिक गतिविधि - कोमल कक्षा 1 एवं 2 के बच्चों को हिन्दी भाषा पढ़ाती हैं। पहले कुछ महीने तक सिर्फ चित्र बनाना और रंग भरना सिखाती हैं। इससे बच्चे की रुचि विकसित होती है, साथ ही बच्चे पेंसिल पकड़ना सीख जाते हैं, और फिर कविता के माध्यम से एक एक शब्द सिखाती हैं उसके बाद उससे वर्ण तक ले जाती हैं। कोमल बच्चों के साथ नीचे गोले में बैठकर काम करती हैं ताकि वो सभी बच्चों के द्वारा किए गए काम को देख सकें और बच्चे उन्हें अपनी शिक्षिका नहीं दोस्त समझें। कोमल ने यह महसूस किया कि चौथा कालांश होते-होते बच्चों को भूख लग जाती है और फिर उनका मन पढ़ने में मन नही लगता। तो उन्होंने यह तय किया की बच्चों को दो कालांश तक पढ़ाएँ और उसके बाद उनके साथ खेल खेंले, जिससे उनका मन भी लगा रहेगा और कुछ सीख भी रहे होंगे खेल के माध्यम से। इस तरह बच्चे बहुत खुशी-खुशी पढ़ते हैं, क्योंकि उन्हें पता है पढ़ने के बाद खेलने का मौका मिलेगा। इस खेल के माध्यम से बच्चे काफी सहज हो जाते हैं और अपने दिल- दिमाग की सारी बातें बिना झिझक के बोल देते हैं।
विद्यालय के पीछे जहाँ बच्चे खेलते हैं उसकी बाउंड्री के पास कुछ घर हैं। उनमें रहने वाले बच्चे विद्यालय नहीं आते थे। क्योंकि साल के 6 महीने वो चंडीगढ़ में रहते हैं और झाड़ू बेचने का काम करते हैं। इसलिए किसी शिक्षक ने उनके अभिभावकों से बात कर उनका नामांकन करवाना उचित नहीं समझा। पर जब उन बच्चों ने कुछ दिन ये देखा कि छोटे-छोटे बच्चे खेल रहे हैं तो उन्हें बहुत अच्छा लगने लगा। और एक दिन वे खुद ही विद्यालय आ गए और बोले हमारा भी नाम लिख दो हमें भी पढ़ना है। उन्हें उनकी उम्र के अनुसार कक्षा 1 एवं 2 में एडमिशन मिल गया। अगले दिन उन्हें कॉपी लेकर आने को कहा गया तो वे कॉपी लेकर आ गए। अब वे रोज आते हैं। यह बात सभी को पता है कि वो ज्यादा दिन नहीं आ पाएँगे पर जितने दिन भी आएँ, कोमल की यह कोशिश है कि वे कुछ सीखें और अगली बार जब वे यहाँ वापस आएँ तो फिर से खुशी-खुशी खुद से विद्यालय आ जाएँ।
सह शैक्षणिक गतिविधि - इस विद्यालय मे कोई PTI शिक्षक नहीं हैं। इसके लिए कोमल रोज विद्यालय समय से आधा घण्टे पहले आती हैं और बच्चों के साथ बैडमिंटन खेलती हैं। इससे उन्हें विश्वास है कि कुछ समय में बच्चे टूर्नामेंट मे खेलने के लिए तैयार हो जाएँगे। मैडम के रोज इस तरह जल्दी आने से बाकी शिक्षकों पर यह असर हुआ है कि उन्होंने अब यह तय किया है कि अक्टूबर में जब समय बदलेगा तो वो भी समय से पहले आएँगे और बच्चों के साथ खेलेंगे।
बाल संसद - इसमें विद्यालय के बच्चे काफी आत्मविश्वास के साथ अपनी बात रखते हैं। शायद इसीलिए यहाँ का बाल संसद काफी सक्रिय है। इसकी एक घटना को साझा करती हूँ । एक बार प्रधान शिक्षक जो कक्षा 4 व 5 में गणित पढ़ाते हैं, वो टूर्नामेंट मे व्यस्त होने के कारण नही पढ़ा पाए और जब विद्यालय आए तो SA-2 का समय हो गया था तो उन्होंने बच्चों को किताब के अनुसार वर्कशीट दे दी और बनाने को कहा। इस बात को बाल संसद की मीटिंग में रखा गया कोमल मैडम के सामने। मैडम ने सुझाव दिया कि जिससे जुड़ी बात है उन्हें बुलाकर लाओ और उनसे साझा करो। बच्चों ने ऐसा ही किया और प्रधान शिक्षक को यह कहना पड़ा की अगली बार पढ़ाने के बाद ही प्रश्न दूँगा।
बाल संसद में 6 से 8 के बच्चे जिम्मेदारी लेते हैं और उसे निभाते भी हैं। विद्यालय प्रांगण की साफ-सफाई से लेकर मध्यान भोजन में खाने की बर्बादी न हो इसका ख्याल रखते हैं। जिस बच्चे कि जिस दिन जिम्मेदारी होती है वो ध्यान रखते हैं और अगर किसी ने उल्लंघन किया तो उसका नाम लिखकर अगली बाल सभा में मीटिंग में रखते हैं और उस बच्चे से यह वादा लेते हैं कि वो इस गलती को दुबारा नहीं करेगा। साफ-सफाई से लेकर भोजन की बरबादी के बारे मे शिक्षक बच्चों से बात कर उन्हें सही और गलत के बीच के अन्तर के बारे में बताते हैं।
शिक्षिका की सोच - कोमल का मानना है कि जो बच्चे जितने शरारती होते हैं वो पढ़ाई में भी होशियार होते हैं। ऐसे कई उदाहरण वो बताती भी हैं, जो उनके कक्षा मे हैं। उनका यह भी मानना है कि अगर अपने काम को बोझ समझ कर करेंगे तो वो हमेशा सर दर्द जैसा लगेगा, पर अगर हम उसी काम को खुश होकर मजे लेकर करें तो उसे करने में मजा आता है। मैंने जब उनसे पूछा कि आपकी प्रेरणा का राज क्या है? इस पर उनका कहना था कि मुझे बच्चों के साथ मजा आता है और हमेशा कुछ नया करने का मन करता है। यहाँ के बाकी शिक्षक कभी रोक-टोक नहीं करते, पूरी आजादी है नया करने की।
लार्ज स्केल कैंप जो दिसम्बर 2015 में हुआ था सिरोही में, उसमें कोमल ने हिन्दी समूह में भाग लिया था। साथ ही जब भी समय रहता है, वे स्वैच्छिक शिक्षक मंच में अवश्य आती हैं। उनका यह सुझाव भी है कि स्वैच्छिक शिक्षक मंच में हम कुछ नया करने की बात करें और उदाहरण दें तो वो काम से सीधे जुड़ेगा। और उदाहरण भी ऐसा दे जो हमारे विद्यालय से जुड़ा हो।
मैं इस विद्यालय में 5-6 बार गई हूँ। इस दौरान कोमल जी से लगातार बातचीत होती रही है। विद्यालय में जाकर जो मैंने महसूस किया और इस दौरान कोमल जी से जो बातचीत होती रही है, यह विवरण उसी के आधार पर लिखा है।
प्रस्तुति : शांति प्रिया, स्रोत व्यक्ति, अज़ीम प्रेमजी फाउण्डेशन,
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📌 MAN KI BAAT : कई बार हम शिक्षकों से जब मिलते हैं तो उनसे बात करने पर लगता है कि उनकी सोच कितनी अच्छी है, बच्चों के लिए कितना कुछ करना चाहते/चाहती हैं, पर जब पूछो की आप जो सोचते हो उसे अपने विद्यालय मे कर क्यों........?
ReplyDelete👉 http://www.basicshikshanews.com/2017/09/man-ki-baat_21.html
वह विद्यालय बहुत भाग्यशाली है कि उसमें 5 अध्यापक हैं,जिसकी बात आपने की है। अन्यथा तो सरकारी विद्यालय 1 या 2 अध्यापकों के भरोसे ही चल रहे हैं।
Deleteआप नवाचार में बच्चों को खेल के साथ पढ़ाने की बात कर रहे हैं।लेकिन सरकारी विद्यालयों में सभी किताबों का पाठ्यक्रम ही पूरे वर्षभर में पूरा नहीं हो पाता है।
ऐसे में अब आप ही बताइये कि विद्यालय का 1 अकेला या 2 अध्यापक खेल खिलाएं या पाठ्यक्रम को पढाऐं?
आप अगर खेल खिला कर या अन्य नवाचर से कुछ नए बच्चों को विद्यालय ला पाए तो यह अच्छी बात है इसमें कोई शक नही है।लेकिन जो बच्चे ज्ञान अर्जन के लिए प्रतिदिन विद्यालय आते हैं अगर उन्हें पाठ्यक्रम पूरा न कराएं और समय को नवाचार में व्यतीत कर दें(क्योंकि नवाचार करने में विद्यालय का अधिकतर समय समाप्त हो जायेगा) तो यह उन गरीब और ज्ञानपिपाशु बच्चों के प्रति अन्याय और अपराध होगा।
नवाचार एक अच्छा विचार हो सकता है लेकिन पाठ्यक्रम के पूरा न होने की कीमत पर नहीं।
और पाठ्यक्रम पूरा पढ़ाने के लिये प्रत्येक विषय के अध्यापक होने चाहिए।
अगर आप सरकारी विद्यालयों में शिक्षा व्यवस्था के हितैषी हैं तो सरकारी विद्यालयों में रिक्त पड़े अध्यापकों के पदों को भरने की बात करिए और सरकार पर दबाव भी बनाइये। इस बात को मुद्दा बनाइये।
अगर विद्यालयों में अध्यापकों की संख्या पूरी हो जाए तो अन्य किसी सोच-विचार की जरूरत ही नहीं पड़ेगी सब कुछ अपने आप ही ठीक हो जाएगा। लेकिन अध्यापकों की भर्ती किये बिना कोई भी नवाचार किसी काम का नहीं है। वह बस ढकोसला है।