SUPREME COURT : प्राथमिक स्कूलों में शिक्षकों का बने विकल्प, एक ओर शीर्ष कोर्ट ने शिक्षामित्रों का समायोजन रद किया, वहीं दूसरी ओर परिषदीय स्कूलों में तैनात 99 हजार एकेडमिक भर्ती के शिक्षकों की बल्ले-बल्ले
राज्य ब्यूरो, इलाहाबाद : एक ओर शीर्ष कोर्ट ने शिक्षामित्रों का समायोजन रद किया, वहीं दूसरी ओर परिषदीय स्कूलों में तैनात 99 हजार शिक्षकों को जश्न मनाने का मौका दिया है। शिक्षक नियमावली में संशोधन करके परिषदीय स्कूलों में तैनात होने वाले शिक्षकों की नियुक्ति को कोर्ट ने जायज ठहराया है। यह जरूर है कि कोर्ट ने टीईटी मेरिट के आधार पर नियुक्ति करने पर नाराजगी जताई, लेकिन संशोधनों पर मुहर लगा दी है।
प्रदेश भर में बेसिक शिक्षा परिषद के प्राथमिक व उच्च प्राथमिक स्कूलों में पिछले वर्षो में बड़े पैमाने पर नियुक्तियां हुई हैं। इसमें उच्च प्राथमिक स्कूलों में 29334 विज्ञान-गणित शिक्षक, प्राथमिक स्कूलों में सहायक अध्यापकों की 15 हजार, 10 हजार, 10 हजार 800 और कई उर्दू शिक्षक भर्तियों में करीब 99 हजार शिक्षकों को नियुक्तियां दी गई हैं। ये वह शिक्षक हैं जिनकी नियुक्ति टीईटी उत्तीर्ण और एकेडमिक मेरिट (शैक्षणिक योग्यता के अंक) के आधार पर हुई थी।
जिस संशोधित अधिनियम यानी शिक्षक नियमावली के 12वें, 15वें और 16वें संशोधन के तहत ये नियुक्तियां हुई थीं, उसे इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सुनवाई के दौरान खारिज कर दिया था, तब यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा और वहां सुनवाई पूरी होने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया गया। अब शीर्ष कोर्ट ने प्रदेश की सपा सरकार की ओर हुए शिक्षक नियमावली में संशोधन पर फैसला सुनाया है इसमें शिक्षकों को राहत दे दी गई है। इससे नियुक्त शिक्षकों की खुशी का ठिकाना नहीं है। कोर्ट ने इस संबंध में एनसीटीई से हलफनामा मांगा था उसके आधार पर फैसला सुनाया गया है।
एनसीटीई के रुख से टीईटी अनिवार्य
राज्य ब्यूरो, इलाहाबाद : सूबे के बेसिक शिक्षा परिषद के विद्यालयों में शिक्षकों की बड़े पैमाने पर कमी रही है। शिक्षकों के विकल्प के रूप में शिक्षामित्रों को प्रदेश सरकार ने तैनाती दी थी। 1999 में पहली बार बेसिक शिक्षामित्र के रूप में नियुक्त शिक्षामित्र के प्रयोग को सर्व शिक्षा अभियान लागू होने पर विस्तार मिला। सत्रवार संविदा शिक्षक के रूप में तैनाती पाने वाले शिक्षामित्र आगे चलकर सहायक अध्यापक के पद पर समायोजित हुए।
प्रदेश सरकार ने प्राथमिक स्कूलों में उप-शिक्षक यानी पैरा टीचर रखे। इन्हें पूर्ण शिक्षकों के बराबर वेतन नहीं दिया गया और इनकी नियुक्ति संविदा के आधार पर सत्रवार होती रही। ऐसा नहीं है कि प्रदेश सरकार ने ही यह नूतन प्रयोग किया था, बल्कि देश के अन्य प्रदेशों महाराष्ट्र व मध्य प्रदेश आदि में भी इस तरह के उप-शिक्षकों की नियुक्ति की जा चुकी है। 2001 में सर्व शिक्षा अभियान लागू होने पर केंद्र सरकार ने 65 तथा राज्य सरकार ने 35 फीसद धन का सहयोग करके प्राथमिक विद्यालयों में शिक्षकों की कमी दूर करने की योजना बनाई और बड़े पैमाने पर संविदा पर शिक्षक रखे गए।
गांव के शिक्षितों को मिला मौका : शिक्षामित्रों की नियुक्ति में यह ध्यान दिया गया कि विद्यालय जिस गांव में हो उसी गांव का शिक्षित युवा वहां के विद्यालय में 11 माह के शिक्षा सत्र के लिए तैनाती मिले। इसके लिए ग्राम शिक्षा समिति के प्रस्ताव पर जिलाधिकारी की अध्यक्षता में गठित समित के माध्यम से चयन कर उसे नियुक्ति देने का प्रावधान किया गया। नियुक्ति के पहले चयनित संविदा शिक्षकों को एक माह के आवासीय प्रशिक्षण को संबंधित जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान से प्रशिक्षण दिलाने का इंतजाम भी किया गया।
पहले 2250 फिर 3500 मानदेय : शिक्षामित्रों की न्यूनतम योग्यता इंटरमीडिएट रखी गई लेकिन, चयन में बीएड को वरीयता दी गई। इनको कोई भी विशेष अवकाश दिये जाने का नियम नहीं था, साथ ही प्रति माह इस कार्य के लिए पहले 2250 रुपये मानदेय दिया जाता रहा। इनकी सेवाओं से प्रभावित होकर राज्य सरकार ने 2006 में बढ़ाकर 3500 रुपये प्रति माह मानदेय देना शुरू किया।
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