SHIKSHAMITRA : शिक्षामित्रों का वोटबैंक में तब्दील होना उनकी ताकत और कमजोरी दोनों बन गई, सरकार के पाले में 'वेटेज' की गेंद, सुप्रीम कोर्ट ने शिक्षामित्रों के समायोजन रद्द करने का फैसला सही ठहराया,
कब क्या हुआ
19 जून 2014 को अखिलेश सारकार ने बिना टीईटी शिक्षामित्रों के समायोजन का आदेश जारी किया
1.35 लाख शिक्षामित्र समायोजित किए गए दो चरणों में
12 सितंबर 2015 को हाई कोर्ट ने शिक्षामित्रों का समायोजन रद किया
07 दिसंबर 2015 को सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के आदेश को स्टे कर दिया
25 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने समायोजन रद करने का फैसला सही ठहराया
1999 में ग्राम शिक्षा समिति के जरिए शिक्षामित्रों की नियुक्ति हुई थी
2009 तक 1.78 लाख शिक्षामित्रों की भर्ती की गई
23 जुलाई 2012
को माया सरकार ने दूरस्थ बीटीसी प्रशिक्षण के लिए एनसीटीई ने अनुमति ली
जो शक के दायरे में, उसे बनाया वादी
दरोगा भर्ती पेपर लीक जांच पर उठे सवाल, बोर्ड ने एसटीएफ को भी किया शामिल
प्रदेश के शिक्षामित्र धैर्य बनाए रखें फैसले से आहत होकर कोई अप्रिय कदम न उठाएं संगठन प्रदेश सरकार से वार्ता कर रहा है, जल्द ही कोई सार्थक निर्णय लिया जाएगा ।
- शिव किशोर द्विवेदी , प्रदेश अध्यक्ष, असमायोजित शिक्षक उत्थान समिति उत्तर प्रदेश
लखनऊ : सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने शिक्षामित्रों के साथ ही योगी सरकार की भी मुसीबत बढ़ा दी है। कोर्ट ने वेटेज व उम्र में छूट जैसी विशेष व्यवस्था करने के लिए राज्य सरकार को कहकर गेंद उसके पाले में डाल दी है। सरकार के लिए अगली भर्तियों में नए आवेदकों के अनुपात में शिक्षामित्रों के लिए वेटेज तय करना इतना आसान नहीं होगा। वेटेज ज्यादा होने पर नए आवेदक फिर कोर्ट जा सकते हैं।
बीजेपी ने अपने घोषणापत्र में शिक्षामित्रों के मसले का न्यायिक तौर पर हल कराने का वादा किया था। सरकार को उम्मीद थी कि सुप्रीम कोर्ट से शिक्षामित्रों को राहत मिल जाएगी और अगर कोर्ट सीधे तौर पर रिजेक्ट करती है तब भी उस पर बहुत दबाव नहीं होगा। अब कोर्ट ने वेटेज का पेंच फंसा कर मुश्किल बढ़ा दी है। सबसे अहम बात यह है कि बेसिक शिक्षा विभाग का दावा है कि उसके पास करीब 65 हजार शिक्षक सरप्लस हैं। ऐसे में करीब 1.35 लाख शिक्षामित्र जो सहायक अध्यापक बनाए जा चुके हैं उनके पद को रिक्त मान लेने पर भी महज 70 हजार ही पदों पर भर्ती की गुंजाइश होगी। ऐसे में सीधी भर्ती पर भी सभी शिक्षामित्रों की नियुक्ति हो पाना असंभव है। पिछली बार भी मामला कोर्ट तक इसलिए पहुंचा था क्योंकि शिक्षामित्रों की सीधी भर्ती कर दूसरे योग्य अभ्यर्थियों को मौका नहीं दिया गया था। इसलिए वेटेज का अनुपात तय करना सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती होगी। वहीं इसकी भी कोई गारंटी नहीं होगी कि वेटेज के बाद भी सभी समायोजित हुए शिक्षामित्र नियुक्त ही हो जाएंगे। करीब 40 हजार शिक्षामित्र ऐसे हैं जो टीईटी पास हैं। बाकी शिक्षामित्रों के सामने पहली चुनौती तो टीईटी पास करने की ही है। सरकार के फैसले शिक्षामित्रों के हक में नहीं गए तो फिर चुनावी नफा-नुकसान के तराजू में उसके तौले जाने का संकट बढ़ जाएगा।
वोटबैंक ही ताकत और कमजोरी भी
शिक्षामित्रों का वोटबैंक में तब्दील होना उनकी ताकत और कमजोरी दोनों बन गई। 1.78 लाख शिक्षामित्रों के जरिए बीएसपी को लगा कि वह गांवों में एक बड़े वोटबैंक में पैठ बना सकती है। इसलिए सरकार जाते-जाते उन्होंने दूरस्थ बीटीसी प्रशिक्षण की कवायद शुरू कर दी जिससे चुनाव में फायदा मिल सके। अखिलेश यादव ने उनसे एक कदम आगे बढ़कर कह दिया कि शिक्षामित्रों को सरकार बनने पर सहायक शिक्षक बनाएंगे। शिक्षामित्रों के पास संख्या बल था और उन्होंने अखिलेश सरकार पर वादा पूरा करने का दबाव बनाना शुरू कर दिया। 2011 में ही यूपी में आरटीई लागू होने के साथ ही तय हो चुका था कि बना टीईटी किसी को शिक्षक नहीं बनाया जा सकेगा। बावजूद इसके बेसिक शिक्षा सेवा नियमावली 1981 में संशोधन कर शिक्षामित्रों को टीईटी से छूट दे दी गई। प्रक्रिया के दौरान शिक्षामित्रों के लिए विशेष टीईटी कराए जाने की भी बात उठी थी लेकिन शिक्षामित्रों के दबाव में सरकार ने अधिकारियों के सुझाव को दरकिनार कर दिया था। नियमविरुद्ध संशोधनों ने शिक्षामित्रों का भविष्य अब दांव पर लगा दिया है। इसके चलते वह शिक्षामित्र भी फंस गए हैं जो टीईटी पास हैं। उनके पास भी नई भर्तियों में शामिल होने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा है।
एसएलपी दायर करेंगे शिक्षामित्र
फैसले से निराश शिक्षामित्रों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा फिर खटखटाने का फैसला किया है। जल्द ही फैसले का अध्ययन कर एसएलपी दाखिल की जाएगी। यूपी दूरस्थ बीटीसी शिक्षक संघ के अध्यक्ष अनिल कुमार यादव ने कहा कि निर्णय हमारे पक्ष में आने की उम्मीद थी लेकिन हमारे साथ अन्याय हुआ। हम जल्द ही इसको लेकर फिर सुप्रीम कोर्ट जाएंगे। वहीं प्रदेश सरकार से भी जल्द टीईटी कराने और शिक्षामित्रों को विशेष वेटेज दिए जाने की भी मांग की जाएगी।
शिक्षामित्र मामला : सुप्रीम कोर्ट के फैसले से बढ़ सकती है मुसीबत
• एनबीटी ब्यूरो,लखनऊ: दरोगा भर्ती निरस्त होने के फैसले के बाद अब इस मामले की जांच पर भी सवाल उठने लगे हैं। यूपी पुलिस भर्ती एवं प्रोन्नति बोर्ड ने उसी कंपनी के मैनेजर को पेपर लीक के मुकदमे का वादी बना दिया जो खुद शक के दायरे में है। गृह विभाग से लेकर भर्ती बोर्ड के अफसर कंपनी को क्लीन चिट देने में लगे हैं। ऐसा तब है जबकि शुरुआती पड़ताल में कंपनी से जुड़े लोग ही फंसते दिए रहे हैं। परीक्षा प्रक्रिया में एसटीएफ को न शामिल करना भी कई सवाल खड़े कर रहा है। इससे पहले हर परीक्षा में एसटीएफ को पूरी प्रक्रिया और उससे जुड़े लोगों के बारे में ब्रीफ कर दिया जाता था। एसटीएफ हर कमजोर कड़ियों पर नजर रखती थी। लेकिन इस बार एसटीएफ को परीक्षा के बारे में बताया ही नहीं गया।
इनक्रिप्टेड फॉर्म में पेपर लीक होना खड़े कर रहा कंपनी पर सवाल
दरोगा भर्ती परीक्षा के जो पेपर लीक बताए जा रहे हैं, उनमें से कुछ इनक्रिप्टेड फॉर्म में हैं। इनको पेपर शुरू होने से एक घंटे पहले डिक्रिप्शन की के जरिए डिकोड किया जाता है। लेकिन इनक्रिप्टेड फॉर्म में पेपर बाहर आने से लग रहा है कि पहले लीक करने वालों को डिक्रिप्शन की के बारे में जानकारी नहीं थी। जब ये प्लानिंग फेल हो गई तो कम्प्यूटर स्क्रीन से खुफिया कैमरे के जरिए रेकॉर्डिंग करके पेपर को वॉटसऐप के जरिए भेजा गया। इस पूरी प्रक्रिया में कंपनी के लोग इसलिए सवालों के घेरे में हैं क्योंकि पूरी परीक्षा प्रणाली इंट्रानेट सिस्टम पर आधारित थी। भर्ती बोर्ड की तरफ से सभी पेपर इनक्रिप्टेड फॉर्म में थे। उन्हें डिकोड करने वाली की कंपनी के लोगों के पास ही थे।
तीन स्तरीय सुरक्षा भेदने वाला कोई अपना ही/
परीक्षा के लिए तीन स्तरीय सुरक्षा इंतजाम किए गए थे। बाहरी स्तर पर पुलिस फोर्स तैनात की गई थी। इसके बाद परीक्षा कराने वाली एजेंसी के लोग चेकिंग में थे। इसमें मोबाइल फोन व अन्य इलेक्ट्रॉनिक गैजेट चेक किए जा रहे थे। तीसरे स्तर पर रिसेप्शन डेस्क थी जहां बायोमीट्रिक टेस्ट हो रहे थे। ताकि कोई नकलती अंदर नहीं जा सके। पेपर लीक का एक विडियो भी वायरल हुआ है, इसमें साफ दिख रहा है कि कोई व्यक्ति स्क्रीन से जल्दी जल्दी प्रश्नों को आगे बढ़ाकर उनकी विडियो रिकॉर्डिंग कर रहा है। परीक्षा कक्ष तक कैमरा ले जाना किसी अंदर के व्यक्ति के लिए ही संभव है।
तीन सदस्यीय समिति
ने चुनी थी कंपनी
ऑनलाइन परीक्षा कराने के लिए तीन सदस्यीय समिति ने कंपनी एनएसईआईटी का चुनाव किया था। इस कमिटि में तत्कालीन एडीजी तकनीकी सेवाएं आरके विश्वकर्मा, एडीजी भर्ती बोर्ड एसएन साबत और आईजी स्थापना वितुल कुमार शामिल थे। 10 जून को एमओयू साइन हुआ था।
21 को ही डीजीपी के पास
आई थी लीक की खबर
जानकारी के मुताबिक डीजीपी सुलखान सिंह को 21 जुलाई को ही एक चिट्ठी के जरिए दारोगा भर्ती परीक्षा का पेपर लीक होने की सूचना मिली थी। जिसके बाद डीजीपी ने एसटीएफ को इस मामले की पड़ताल में लगा दिया था। 24 जुलाई को लीक पेपर के स्क्रीन शॉट और विडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गए। सूत्रों के मुताबिक तीन लोग 24 जुलाई को भर्ती बोर्ड मुख्यालय भी पहुंचे थे इस संबंध में शिकायत करने। सभी तरफ से जानकारियां आने के बाद और एसटीएफ द्वारा हैकिंग के जरिए पेपर लीक की पुष्टि होने पर परीक्षाएं स्थगित करने का फैसला लिया गया।
कोर्ट न पहुंचे मामला
इसलिए रद की सारी परीक्षाएं
प्रमुख सचिव गृह के मुताबिक 21 और उसके बाद हुई परीक्षा के पेपर सोशल मीडिया पर वायरल थे। इसके चलते बाकी परीक्षाओं को लेकर भी शंका हो गई। परीक्षा में शामिल होने वाले अभ्यर्थी इस मामले को लेकर कोर्ट न जाएं इसलिए सभी परीक्षाओं को निरस्त करने का फैसला किया गया।
पहली बार भर्ती
बोर्ड में पेपर लीक
उत्तर प्रदेश पुलिस भर्ती एवं प्रोन्नति बोर्ड की परीक्षा कराने की साख पर पहली बार सवाल उठे हैं। मायावती सरकार के कार्यकाल में बने भर्ती बोर्ड की स्थापना के बाद से पहली बार है जब उस पर पेपर लीक होने का दाग लगा है। माना जा रहा है यह चूक पहली बार ऑनलाइन परीक्षा कराए जाने के चलते हुई है।
इससे पहले सपा सरकार के कार्यकाल में सिपाही भर्ती परीक्षा से पहले पेपर ले जाने वाली पुलिस की गाड़ी के हादसे का शिकार होने के बाद परीक्षा निरस्त की गई थी। उस दौरान आशंका हुई थी कि पेपर लीक हो गया है। लेकिन इस मामले में कोई एफआईआर नहीं हुई थी।
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