MAN KI BAAT : परिषदीय विद्यालयों में यूनिफार्म का चक्कर शुरू हो गया पर सरकार ने सत्र शुरू होने के साथ ही नए रंग की यूनिफार्म के वितरण की जिम्मेदारी तय कर दी गई किंतु प्राथमिक शिक्षा व्यवस्था को संचालित करने वाला तंत्र अपनी मानसिकता नहीं..........
विद्यालयों में शिक्षकों की शत-प्रतिशत उपस्थिति, समय से बस्ते, कापी-किताब की उपलब्धता पर जोर देकर सरकार ने अपनी मंशा तो साफ कर दी लेकिन, इसे लागू कराने वाली व्यवस्था अब भी पुरानी परिपाटी पर ही चल रही है। ऐसे कई व्यवस्थागत परिवर्तन किए गए हैं जो सकारात्मक बदलाव का संकेत देते हैं लेकिन, विद्यालयों से हैरान करने वाली तस्वीरें भी आ रही हैं।
प्राथमिक विद्यालयों में यूनिफार्म कोड लागू करने की व्यवस्था नई नहीं है। बसपा सरकार में नीली पैंट और आसमानी शर्ट थी तो सपा सरकार में पैंट और शर्ट का रंग खाकी था। योगी सरकार ने नया यूनिफार्म कोड लागू कर दिया है। अखिलेश सरकार ने जो कोड निर्धारित किया था, उसे आकर्षक नहीं माना गया। इसका कारण उसका खाकी रंग में एकरस होना था। समय-समय पर भाजपा सहित विपक्ष ने भी बच्चों की इस खाकी यूनिफार्म की आलोचना की थी।
योगी सरकार ने सत्र शुरू होने के साथ ही नए रंग की यूनिफार्म के वितरण की जिम्मेदारी तय कर दी गई किंतु प्राथमिक शिक्षा व्यवस्था को संचालित करने वाला तंत्र अपनी मानसिकता नहीं बदल पा रहा। सरकार ने यूनिफार्म तैयार कराने के लिए धन ग्राम शिक्षा समितियों के खातों में भेज दिया लेकिन, न यूनिफार्म की क्वालिटी बदली और न बच्चों की सुविधा के अनुरूप इसे तैयार किया जा सका है। बच्चा लंबा हो, मोटा हो या छोटा सबको एक ही नाप की यूनिफार्म दे दी गई। हरदोई में कक्षा एक से लेकर कक्षा आठ तक के बच्चों की यूनिफार्म बनवाने का एक ही मानक बना दिया गया।
यूनिफार्म तैयार करने वालों की धारणा है कि परिषदीय विद्यालयों में पढ़ने वाले बच्चों में आयु के अनुसार न कपड़ा कम-ज्यादा होता है और न महंगाई का कोई असर पड़ता है। सरकार भले ही पर्याप्त बजट देने का दावा कर रही है, पर जिलों में तो बच्चों की आयु और शारीरिक बनावट को ध्यान में रखने की बजाय अनुमान के आधार पर सिलाई कराई जा रही है।
हालत यह है कि एक ही साइज की यूनिफार्म पहनने को मजबूर हैं बच्चे। क्वालिटी पर भी जोर नहीं है। सरकार को इस दिशा में सोचना चाहिए और संबंधित अफसरों की जवाबदेही तय करनी चाहिए।
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