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एक छत के नीचे 'प्राइमरी का मास्टर' से जुड़ी शिक्षा विभाग की समस्त सूचनाएं एक साथ

BUDGET, SANITATION : बच्चियों के ड्रॉप आउट को कम करने की एक कोशिश अब फेल नजर आ रही, मुफ्त सैनिटरी पैड्स के लिए नहीं आया बजट, पिछले साल शुरू हुई थी योजना

BUDGET, SANITATION : बच्चियों के ड्रॉप आउट को कम करने की एक कोशिश अब फेल नजर आ रही, मुफ्त सैनिटरी पैड्स के लिए नहीं आया बजट, पिछले साल शुरू हुई थी योजना

लखनऊ: स्कूलों में बच्चियों के ड्रॉप आउट रेट को कम करने की एक कोशिश अब फेल होती नजर आ रही है। सरकारी स्कूलों में कक्षा 6 से 12वीं तक की बच्चियों को मुफ्त सैनिटरी पैड्स दिए जाने की योजना का बजट नहीं जारी किया गया। मानव संसाधन एवं विकास मंत्रालय ने यूनिवर्सिटीज, कॉलेजों और स्कूलों में भी सैनिटरी नैपकिन पैड्स मुहैया करवाने के निर्देश दिए थे। इसके पीछे तर्क था कि छात्राओं को मेंस्ट्रुएशन के समय घर पर ही रहना पड़ता है। जिससे उनकी पढ़ाई भी प्रभावित होती है।

सर्वे में सामने आई बात

साल 2011-12 में मंत्रालय की स्टेटिक्स ऑन स्कूल एजुकेशन में जारी किए गए आंकड़े चौकाने वाले थे। इसमें इस वर्ष दसवीं तक स्कूल छोड़ने वाली बच्चियों का आंकड़ा 50.7 फीसदी रहा। यूपी का आंकड़ा 52 फीसदी रहा। बच्चियों में आधे से ज्यादा दसवीं तक पहुंचते-पहुंचते स्कूल छोड़ देती हैं। एलयू में इंस्टिट्यूट ऑफ विमिन स्टडीज की पूर्व डायरेक्टर प्रफेसर निशी पांडेय के मुताबिक स्कूल छूटने का एक प्रमुख कारण मेंस्ट्रुएशन है।

प्रशिक्षण भी नहीं दिया

बीते साल किशोरी स्वास्थ्य योजना के तहत शहर को 13 लाख रुपये का बजट आवंटित किया गया था। सरकारी स्कूलों में स्वास्थ्य विभाग ने सैनिटरी पैड्स तो खरीदकर बांट दिए, लेकिन शिक्षकों और छात्राओं को प्रशिक्षण के लिए कोई कवायद नहीं की।

बजट नहीं तो कैसे बांटे

सीएमओ डॉ. जीएस बाजपेई ने बताया कि पिछले साल 4 महीने का बजट दिया गया था। इसके बाद इसके लिए कोई बजट ही आवंटित नहीं किया गया। स्कूल खुले हैं, लेकिन कोई भी पैसा इस मद में नहीं आया है।

सरकार को इस पर फोकस करना चाहिएयह योजना ड्रॉपआउट रेट कम करने में काफी मददगार होगी। यह बच्चियों के स्वास्थ्य के लिए भी काफी महत्वपूर्ण है।
-प्रोफेसर निशी पांडेय, लखनऊ यूनिवर्सिटी

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