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एक छत के नीचे 'प्राइमरी का मास्टर' से जुड़ी शिक्षा विभाग की समस्त सूचनाएं एक साथ

MAN KI BAAT : उ़फ यादों का यह सिलसिला शुरू हुआ तो पता नहीं खत्म कर पाऊंगा भी कि नहीं? फिर एक शिक्षक को सेवानिवृत होना है, हर विभाग की समय के साथ अपनी भी आयु बढ़ती जाती है, जब विभाग पुराना हो चलता है तब शैक्षिक सत्र के माह के अंतिम दिन कोई न कोई शिक्षक सेवानिवृत्त......

MAN KI BAAT : उ़फ यादों का यह सिलसिला शुरू हुआ तो पता नहीं खत्म कर पाऊंगा भी कि नहीं? फिर एक शिक्षक को सेवानिवृत होना है, हर विभाग की समय के साथ अपनी भी आयु बढ़ती जाती है, जब विभाग पुराना हो चलता है तब शैक्षिक सत्र के माह के अंतिम दिन कोईकोई शिक्षक सेवानिवृत्त......

आज शैक्षिक सत्र का प्रथम दिन है लेख शैक्षिक सत्र के अंतिम दिन को ध्यान में रखते हुए लिखा जा रहा है क्योंकि फिर एक शिक्षक को सेवानिवृत होना है । हर विभाग की समय के साथ अपनी भी आयु बढ़ती जाती है । जब विभाग पुराना हो चलता है तब शैक्षिक सत्र के माह के अंतिम दिन कोई न कोई शिक्षक सेवानिवृत्त होता रहता है पर कुछ सख्सियत ऐसी होती है जिनकी अपनी अलग सी छाप होती है ।

आज की पोस्ट महराजगंज जनपद के उत्तर प्रदेशीय प्राथमिक शिक्षक संघ के ब्लाक ईकाई लक्ष्मीपुर के हमारे बेदाग और बेबाक ब्लाक अध्यक्ष श्री जनार्दन पाण्डेय पर दृष्टिपात करते हुए समर्पित है, जो उच्च प्राथमिक विद्यालय में प्रधानाध्यापक के पद पर कार्यरत रहें हैं। दिनांक 31/03/2017 को अपने पद से सेवा-निवृत्ति प्राप्त कर रहे हैं। जो अपने स्वभाव, मूल्यों और सिद्धांतों से परे कभी नहीं हटे। जाहिर सी बात है जैसा पराभव का काल आज है, उसमें इन पदों पर रह कर स्वयं की 'गुरुता' बनायें रखना महानता का प्रतीक है । इस अवसर पर जल्दबाजी में ही सही यह समर्पण पोस्ट आप सब के समक्ष प्रस्तुत है। अपने सेवा के जीवन के उनके साथ बिताये उन पलों को याद करना बहुत आसान है क्योंकि बहुत कुछ कहे बगैर आचरण से भी सीखा जा सकता है ब्लाक अध्यक्ष जी का आचरण, धैर्य, स्वभाव और चरित्र ही उनकी असली पहचान रही है और रहेगी, कोई माने या न माने ऐसा मैं मानता हूं ।

हमें गर्व है कि आप हमेशा 'गुरु' जैसा बने रह पाए !

गुरु वही जो ज्ञान दे बदले समाज ये ध्यान दे,
अनुभव कराये ज्ञान का जीवन को इक पहचान दे
आत्म ज्ञान सबसे बड़ा पर तीन शर्तें हैं जुड़ी
जिज्ञासा का भाव हो और दोष मिट जाए सभी
सार यही जीवन का है पितु मातु गुरु को मान दें
उत्सव मने हर पल तभी और स्वयं को सम्मान दे
गुरु वही जो ज्ञान दे बदले समाज ये ध्यान दे,
अनुभव कराये ज्ञान का जीवन को इक पहचान दे ।

(साभार: दीपक सक्सेना @ रीडर्स ब्लॉग)

''सेवानिवृत्त को सेवानिवृत्त मानिए ही नहीं''

दरअसल, सेवानिवृत्त शब्द अपने आप में बड़ा बोझिल सा लगता है। मानो कुछ खत्म ही हो गया हो ऐसा आभास देता है। जबकि वास्तव में ऐसा है नहीं। सच तो यह है कि हम जीवन भर किसी न किसी से निवृत्त होते रहते हैं और फिर किसी नई चीज से, नये काम से जुड़ जाते हैं, यानी कहीं कुछ खत्म नहीं होता बल्कि परिवर्तित होता है। मिसाल के तौर पर हमारे बचपन की पोशाक बदल जाती है, हम हाईस्कूल से कॉलेज पहुंच जाते हैं, अविवाहित से विवाहित जीवन में प्रवेश करते हैं। फिर हम बच्चे नहीं रह जाते बल्कि बच्चों को जन्म देते हैं, माता-पिता बन जाते हैं कहने का तात्पर्य है कि सेवानिवृत्त को हमें परिवर्तन काल समझ लेना चाहिए।

लम्बी सेवा व्यतीत करने के बाद व्यक्ति को अपार अनुभव हो जाता है । उसने अपने सेवाकाल में अनेक प्रकार की परिस्थितियों का सामना किया होता है । इस अनुभव को अगर कोई संस्था/विभाग बाज़ार से खरीदना चाहे तो उसे कन्सल्टेंट की एक बड़ी कीमत दे कर खरीदना पड़ता है । जबकि यही अपार अनुभव सेवानिवृत्त होने वाले व्यक्ति से शिक्षक को मुफ्त में मिल सकता है । ऐसे अवसर पर सेवानिवृत्त होने वाले व्यक्ति से उसके जीवन की उपलब्धियां, जिसे वह समझता हो, विषम परिस्थितियां, जिनसे होकर वह गुजरा हो और कैसे उसने उनसे सामना किया, इस सब के सम्बन्ध में विस्तार से सुनना चाहिये । अगर हो सके तो उसके अनुभवों का एक 'राइट अप' भी बना कर सभी में बांटना चाहिये ।

   ✍ क्योंकि....।

कभी मार्गदर्शक तो कभी माँ बाप सा डांटता।
मष्तिष्क के कोरे पन्नों में ज्ञान के अक्षर सजाता।
लड़खड़ाते क़दमों को चलना सिखाता।
कभी अन्धकार में दिए सा कभी प्यास में पानी सा,
ऊँचे आकारों और विचारों को धरती पर चलवाता।
दूर खड़ा छिपा मेरी प्रगति को निहारता,
मेरा पिता, मेरी माँ, मेरा गुरू।

(साभार: पैडी देओल का ब्लॉग)

जैसा कि आप सब जानते हैं .....कोई भी व्यक्ति किसी भी सरकारी पद पर आसीन होते ही उसकी सेवानिवृति की तिथि दर्ज तो हो ही जाती है इसी कारण मुझे जो अब तक समझ आया कि जन्म देने वाले से अच्छी शिक्षा देने वालों को अधिक सम्मान दिया जाना चाहिए क्योंकि माता पिता ने तो केवल जन्म दिया है, लेकिन एक शिक्षक ने अपने जीवन के अनमोल समय को खपाते हुए अच्छी शिक्षा देकर उन्हें जीना सिखाया है।

👉 जैसे......'हाइवे' पर सामने से आती गाड़ी पर अगर धूल पड़ी हो तो आगे के रास्ते के धूल भरे होने का अनुमान लग जाता है और अगर गाड़ी भीगी हो तो अनुमान हो जाता है कि आगे कहीं बारिश मिलने वाली है इसी प्रकार लम्बी सेवा पूरी करने वाले व्यक्ति से जब संवाद होता है तब सेवाकाल के दौरान आगे आने वाली परिस्थितियों का स्पष्ट भान हो जाता है ।

इस कारण मेरा मानना है कि सेवानिवृत्त होने वाला व्यक्ति अगर स्वस्थ है तब तो सारी बातें छोड़कर उससे बस स्वस्थ रहने के गुर ही सीखने चाहिये । कोई भी व्यक्ति किसी भी श्रेणी का कार्मिक क्यों न हो सभी में कुछ न कुछ गुण अवश्य होते हैं और कितना भी खराब कर्मचारी क्यों न हो कभी न कभी उसने विभाग हित में कार्य अवश्य किया होता है । सेवानिवृत्त के अवसरों पर पर बस इन्ही गुणों और कार्यों को याद कर सेवानिवृत्त होने वाले व्यक्ति से कोई न कोई सीख अवश्य प्राप्त करने का प्रयास किया जाना चाहिये ।

एक बात और सेवानिवृत्त होने वाले शिक्षक को परम पिता परमेश्वर का आभार जरूर व्यक्त करना चाहिये कि उसने अपनी सेवा अवधि भली भांति पूरी की । सेवानिवृत्त होने के बाद भी वह अपनी और अपने परिवार की जरूरतों के अनुसार अनेक अन्य कार्य भी कर सकता है । हमें लगता है कि सेवानिवृत्त तो बस यह जताता है कि उस व्यक्ति के उसकी बंधी हुई सेवा से निवृत्ति हुई है न कि यह कि उस व्यक्ति की क्षमता का ह्रास हो गया ।

   अन्त में अर्चना वर्मा कि एक कविता से......

भूमिका अब बहुत हुई
सुन लो पहेली भी
सुकरात ने बनाया था
जहाज एक, टूट गया।
टूटे हुए टुकड़ों को जोड़ कर
फिर से गढ़ा प्लेटो ने
अब वह बताओ तो,
प्लेटो का जहाज है याकि सुकरात का,
या फिर ऐसा हुआ, दोनो ने बनाए थे
दो जहाज अलग अलग
दोनो ही टूट गये
कुछ टुकड़े इसमें कुछ उसमें से लेकर
तीसरे किसी ने बनाया जहाज जो
वह बोलो किसका है?
पूछ ही सकती हूँ पहेली बस,
उत्तर मेँ आशंका है ऐसा कुछ सुनने की
प्लेटो सुकरात यहाँ का यथार्थ नहीं,
विदेशी प्रभाव, जाओ,
गोष्ठी सेमिनार में निपटाओ
वसुधैव कुटुम्बकम का गाना
ग्लोबल किसी मंच पर गाओ
जीवन को विचार मेँ
विचार को दर्शन में
ना ही उलझाओ
या शायद यह भी हो उत्तर कि
हमें कहाँ मालूम था
प्लेटो सुकरात बनाते थे जहाज भी,
चलाते भी थे क्या़? हवा का? या पानी का?
बनाते भी रहे हों तो
कहाँ है जहाज अब? अब तो बाकी है
उत्तर-अधिकार का सवाल सिर्फ़, हल करो
प्लेटो या सुकरात या तीसरा कोई और वह
जहाज के टुकड़ों के सिवाय
और क्या क्या छोड़ गया?
तोड़ कर जहाज को निकालो अब
टुकड़े अलग अलग
जिनके वे दादा परदादा थे, लकड़-सकड़
उनको पहचानो
जो जिसके हिस्से का वह उसको सौंप दो
ऐसे निपटारा अगर संभव न हो सके
तो आओ फिर लड़ जाएँ, जूझ लें
जितने सब खेत रहें उतना ही अच्छा
बचे रहे लोगों का हिस्सा बढ़ जाएगा
जो जितना जीत ले, उसका कहलाएगा।
जहाज तो जा ही चुका
हिस्सा तो रह जाएगा।।।।

     उ़फ यादों का यह सिलसिला शुरू हुआ तो पता नहीं खत्म कर पाऊंगा भी कि नहीं?

           आपका अदना सा शिक्षक
                । दयानन्द त्रिपाठी ।

       🚩 जय शिक्षक जय भारत 🚩




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1 Comments

  1. 📌 MAN KI BAAT : उ़फ यादों का यह सिलसिला शुरू हुआ तो पता नहीं खत्म कर पाऊंगा भी कि नहीं? फिर एक शिक्षक को सेवानिवृत होना है, हर विभाग की समय के साथ अपनी भी आयु बढ़ती जाती है, जब विभाग पुराना हो चलता है तब शैक्षिक सत्र के माह के अंतिम दिन कोई न कोई शिक्षक सेवानिवृत्त......
    👉 http://www.basicshikshanews.com/2017/04/man-ki-baat.html

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