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एक छत के नीचे 'प्राइमरी का मास्टर' से जुड़ी शिक्षा विभाग की समस्त सूचनाएं एक साथ

PRIMARY SCHOOL : स्कूल प्राइमरी, शिक्षा कॉन्वेंट जैसी, कॉन्वेंट स्कूल के बच्चों की तरह टाई-बेल्ट और शू में स्कूल आते हैं प्राइमरी स्कूल के बच्चे

PRIMARY SCHOOL : स्कूल प्राइमरी, शिक्षा कॉन्वेंट जैसी, कॉन्वेंट स्कूल के बच्चों की तरह टाई-बेल्ट और शू में स्कूल आते हैं प्राइमरी स्कूल के बच्चे

अभिभावकों का मिला सहयोग : प्रमोद की इस पहल को लेकर गांव के लोग भी उत्साहित हैं। वह छात्रों को घर में पढ़ाने के साथ ही उनके स्वास्थ्य का भी ध्यान देते हैं। सफाई के साथ छात्र प्रतिदिन खुशी से विद्यालय भी आते हैं।

क्या कहते हैं अधिकारी : प्रमोद ने ऐसा कार्य किया जो दूसरे शिक्षकों के लिए नजीर बन गया है। अन्य शिक्षकों को भी ऐसा करने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा। 
- डीएस यादव, बेसिक शिक्षा अधिकारी

अनोखी पहल

पढ़ाई में भी हैं आगे - साफ-सफाई और उठने-बैठने जैसी आदतों पर ध्यान देने से बच्चों में पढ़ाई के प्रति भी रुचि बढ़ी है। विद्यालय के बच्चे अन्य प्राथमिक विद्यालयों के मुकाबले पढ़ने में भी तेज हैं। यही कारण है कि छात्र संख्या को लेकर विद्यालय को कभी गांव-गांव नहीं घूमना पड़ा। अब आसपास के गांवों के भी लोग इस विद्यालय में अपने बच्चों को पढ़ाना चाह रहे हैं।

कॉन्वेंट स्कूल के बच्चों की तरह टाई-बेल्ट और शू में स्कूल आते हैं अमवा प्राइमरी स्कूल के बच्चे

नीरज सिंह, कौशांबी । साफ-सुथरा विद्यालय परिसर। बच्चों के गले में आइकार्ड व टाई। पैर में लकदक जूते। खाकी ड्रेस पर लाल रंग का स्वेटर और खिलखिलाते बच्चे। हम मोटी फीस लेकर शिक्षा देने वाले किसी कॉन्वेंट स्कूल की नहीं, बल्कि बेसिक शिक्षा परिषद द्वारा संचालित नेवादा ब्लाक के प्राथमिक विद्यालय अमवा के बच्चों की बात कर रहे हैं। यहां तैनात प्रधानाध्यापक प्रमोद कुमार सिंह के सकारात्मक प्रयास ने अभिभावकों के अंदर प्राथमिक विद्यालय में बच्चों को पढ़ाने की ललक भर दी है। सरकारों और प्राथमिक शिक्षा व्यवस्था को सिर्फ कोसने वालों के लिए यह प्रयास आंख खोलने वाला है। इलाहाबाद के शंकरगढ़ निवासी प्रमोद कुमार सिंह को वर्ष 2011 में प्रधानाध्यापक के पद पर प्रोन्नति मिली। उनकी तैनाती प्राथमिक विद्यालय अमवा नेवादा में की गई। उसके बाद से वह लगातार विद्यालय की स्थिति को सुधारने के लिए अपने स्तर पर प्रयास करने लगे। उनकी छोटी सी पहल ने क्षेत्र में विद्यालय की पहचान ही बदल दी। हालांकि यह इतना आसान नहीं था। रूढ़िवादी शिक्षा- व्यवस्था में लीक से हटकर काम करने पर शुरू में विभाग के लोगों ने ही हतोत्साहित करने का काम किया।

प्रमोद कुमार बताते हैं कि कॉन्वेंट स्कूलों में ड्रेसकोड एक जैसा होने के कारण एक बच्चों में एक अलग की आत्मविश्वास आता है। यहां बच्चों की डेस तो एक जैसी थी पर स्वेटर अलग अलग रंग के सभी पहनकर आते थे। इसी से लगा क्यों न सारी ड्रेस एक जैसी की जाय। अब फंड की व्यवस्था कैसे हो। इसका समाधान खुद से निकाला। बच्चों को अपने पास से ही टाई और आइकार्ड दिया। इस पहल का परिणाम यह रहा कि छात्र संयमित होकर खुद की सफाई व शिक्षा के प्रति सजग हो गए।

उन्होंने कहा कि इससे छात्रों के अंदर आत्मविश्वास भी बढ़ा, जैसा कान्वेंट विद्यालय के छात्रों में होता है। इस पहल का गांव के लोगों ने भी स्वागत किया। साफ सुथरे गणवेश ने पूरे विद्यालय का कायाकल्प कर दिया। 1जनवरी 2017 में प्रधानाध्यापक ने अपनी पहल से विद्यालय के करीब 115 बच्चों को एक रंग के स्वेटर भी बांटे, जिससे विद्यालय के सभी छात्र एक जैसे दिखने लगे। इससे उनमें गजब का आत्मविश्वास आया। बच्चे साफ-सुथरे रहें इसके लिए उनके घर के लोगों को भी प्रेरित किया गया।

🔴 एक शिक्षक की पहल ने बदल दी विद्यालय की तस्वीर

🔵 पहल ने बढ़ाया बच्चों का आत्मबल, पढ़ने में भी हैं आगेप्राथमिक विद्यालय अमवा नेवादा में ड्रेस कोड में बच्चों के साथ प्रधानाध्यापक।

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