SCHOOL, SYLLABUS : स्कूलों में ही पढ़ाई जा रही भेदभाव की बात, साझी दुनिया व यूनिसेफ की ओर से हुई चर्चा, पाठ्यक्रम में बदलाव पर विशेषज्ञों ने रखी राय
लखनऊ : बचपन से ही बच्चों को स्कूल में भेदभाव का पाठ पढ़ाना शुरू कर दिया जाता है। आज भी जब महिलाओं और पुरुषों में समानता की बात हो रही है। पाठ्यक्रम से ऐसे अध्याय हटाने की जरूरत है जो महिलाओं और पुरुषों के बीच भेदभाव दिखाते या सिखाते हैं। अब किस तरह का पाठ्यक्रम बनाया जाए/ क्या स्टडी मटीरियल होना चाहिए/ क्या चीजें पाठ्यक्रम से बाहर होनी चाहिए इस बात पर मंगलवार को चर्चा हुई।
आरिफ कैसल होटल में साझी दुनिया और यूनिसेफ के साथ आयोजित चर्चा में कई विशेषज्ञों ने अपनी राय रखी। साझी दुनिया की फाउंडर डॉ. रूपरेखा वर्मा ने बताया कि कक्षा एक से लेकर 12वीं तक के पाठ्यक्रम में बदलाव की जरूरत है। उन्होंने बताया कि 'खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी', इस कविता में महिलाओं के साथ भेदभाव नजर आता है। 'मर्दानी' शब्द से साफ है कि सिर्फ पुरुष ही शक्तिशाली होते हैं। साझी दुनिया ने जो पाठ्यक्रम तैयार किया है, उसमें शाब्दिक परिवर्तन करके मर्दानी शब्द की जगह साहसी शब्द का प्रयोग किया है। इसी तरह कविता 'मम्मी की रोटी गोल और पापा का पैसा गोल' भी भेदभाव दर्शाता है। पाठ्यक्रम में चित्रों में भी भेदभाव होता है। बेटियों को गुड़िया खेलते और बेटों को क्रिकेट खेलते दिखाया जाता है।
एनसीआरटी के पाठ्यक्रम डिपार्टमेंट की हेड अनीता नूना ने कहा कि टीचर ट्रेनिंग मॉड्यूल में परिवर्तन की बात हो रही है, जबकि पाठ्यक्रम में बदलाव की जरूरत है। पाठ्यक्रम ज्यादा से ज्यादा प्रश्नगत होना चाहिए। चित्रों या शब्दों में पुरुषों या महिलाओं का भेदभाव नहीं होना चाहिए। किशोरावस्था और सेक्सुअल हैरेसमेंट भी पाठ्यक्रम में शामिल होना चाहिए। विशेषज्ञ आफताब ने कहा कि पाठ्यक्रम में सिर्फ डॉक्टर, इंजीनियर ही नहीं बल्कि किसानों और कारीगरों के पाठ्यक्रम भी जोड़ना चाहिए। इस मौके पर जामिया मिलिया के शिक्षा शास्त्र विभाग की प्रफेसर डॉ. फरहा फार्रुखी, यूनिसेफ की रिद्विक पात्रा, एससीईआरटी की पूनम और इश्तियाक, निशि मेहरोत्रा, अंकिता, कुलदीप, तस्नीन ने भी विचार रखे।
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