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एक छत के नीचे 'प्राइमरी का मास्टर' से जुड़ी शिक्षा विभाग की समस्त सूचनाएं एक साथ

MAN KI BAAT : आज मल्टी शिक्षक बनना किसी की भी प्राथमिकता नहीं है, डाक्टर, इंजीनियर, सीए, डीएम, एसपी बनना सबका सपना है, जब कुछ न बन सके......

MAN KI BAAT : आज मल्टी शिक्षक बनना किसी की भी प्राथमिकता नहीं है, डाक्टर, इंजीनियर, सीए, डीएम, एसपी बनना सबका सपना है, जब कुछ न बन सके......

इस बात से शायद ही कोई असहमत हो कि जीवन के सर्वाधिक आनन्द भरे क्षण हमारा बचपन है, विशेष रुप से चर्चा करें तो विद्यालय जीवन में बिताया हुआ हर वो क्षण अविस्मरणीय होता है। यही वह काल है जब हमारे भविष्य की इमारत की नींव की ईटों को सुव्यवस्थित ढंग से रखा जा सकता है। भारतीय संस्कृति में गुरू का स्थान सदा से ही सर्वोपरि रहा है। बदलते परिवेश में गुरु का दायरा व्यापक होता गया। प्राचीन काल में शिष्य गुरु के आश्रम में रहकर ज्ञानार्जन करते और जीवन में शिक्षा एवं ज्ञानार्जन के साथ श्रम की महत्ता को समझकर युवा होकर गृहस्थ जीवन में प्रवेश करते थे। गुरु संदीपन के आश्रम में रहकर बाल कृष्ण योगीराज श्रीकृष्ण बने। महान गुरु विश्वामित्र के आश्रम में रहकर राजकुमार राम मर्यादा पुरुषोतम श्रीराम बने।

आज शिक्षक, गुरु या आचार्य कहने को पर्यायवाची शब्द हैं । हम शिक्षक को राष्ट्रनिर्माता घोषित करते हैं क्योंकि हमारा विश्वास है कि वर्तमान के फिसलन भरे दौर में केवल शिक्षक ही अपनी सच्ची निष्ठा, योग्यता और क्षमता से देश के भविष्य का निर्माण करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। यदि एक शिक्षक संकल्पित हो तो अपने शिष्यों का सर्वांगीण विकास करते हुए अपने छात्रों में जीवन मूल्यों के संस्कार भरकर उन्हें राष्ट्रभक्त नागरिक बना सकता है। आज के बिगड़े हुए माहौल में हमें ऐसा भी लगता है कि एक साधारण शिक्षक से समाज बहुत अधिक आपेक्षाएं लगाये बैठा है ।

ऐसा करते हुए हम यह भूल भी जाते हैं कि वर्तमान शिक्षा पद्धति जहाँ एक ओर शिक्षक पर अनेक प्रतिबंध लगाती है वहीं दूसरी ओर छात्रों में राष्ट्र-प्रेम की भावना एवं मानव मूल्य उत्पन्न करने में असमर्थ है। उसका सर्व-धर्म समभाव से भी कोई लेना देना नहीं है क्योंकि पाठ्यक्रमों का निर्माण मनमाने ढ़ंग से किया गया। विदेशी शासकों के बाद भी हमारे अपनो ने हमें हीनभावना से ग्रसित रखने में अपने हित तलाशते ही जा रहे हैं आज शिक्षा का प्रथम उद्देश्य बेहतर इंसान बनाना नहीं, कमाऊ पूत हो, तो ऐसे परिवेश में इससे ज्यादा की आशा की भी जाए तो कैसे?

व्यावसायिकता के वर्तमान दौर में गुरू का वास्तविक अर्थ ही बदल गया है। सामाजिक, अध्यात्मिक मंच से लेकर शिक्षण संस्थाओं तक के क्षेत्र में फैली आज अर्थ की प्रधानता ज्ञान से सर्वोपरि हो चली है। ज्ञान बांटने के नाम पर अधिक से अधिक अर्थ उपार्जन की उपजी मानसिकता ने गुरू के स्वरूप एवं कार्य को स्वार्थपरक बना डाला है जिससे गुरू का वास्तविक स्वरूप ही बदला नजर आने लगा है। इसके बदलते विभिन्न स्वरूप एवं पड़ते प्रतिकूल प्रभाव को साफ-साफ देखा जा सकता है।

क्या यह सत्य नहीं लगता कि आज शिक्षक के जो दो स्वरूप हमारे सामने है उनमें एक सरकारी कर्मचारी है जिसे पढ़ाने से ज्यादा दूसरे कार्यों में व्यस्त रखा जाता है। सरकारी स्कूलों में दूध, फल दाल-दलिया बांटने से मतदाता बनाने, जांचने, वोट डलवाने, गिनती करने से जनगणना और न जाने कौन-कौन से मल्टी कार्यों से घोषित अघोषित कार्य जिसके जिम्मे हो उसे गुरु (शिक्षक) कहें भी तो कैसे?

वहीं दूसरी ओर सजे-धजे प्राईवेटों स्कूलों में कार्यरत शिक्षक हैं जो किसी भी दृष्टि में मेरे स्वयं के विचार से गुरु नहीं कहे जा सकते क्योंकि महंगे निजी स्कूल गुरु-शिष्य परम्परा नहीं ‘सर्विस प्रोवाइडर और क्लाइंट’ के पोषक हैं। स्पष्ट है कि प्राचीन काल के गुरूकुल एवं वर्तमान के शिक्षण संस्थानों के परिवेश पर तुलनात्मक दृष्टिपात करने पर काफी अन्तर दिखाई देगा जबकि वास्तविक वैचारिक धरातल पर दोनों का मूल अर्थ एवं उद्देश्य एक ही रहा है। गुरूकुल में गुरू एवं शिष्यों के बीच जो सम्बन्ध स्थापित रहा है, वर्तमान के शिक्षण व्यवस्था में वह टूट कर चकनाचूर होता दिखाई दे रहा है। इन सब झंझावतों के बीच समय समय पर "बेसिक शिक्षा न्यूज । आज का प्राइमरी का मास्टर" आप सबको जगाने और बताने के लिए अपनी भूमिका को प्रस्तुत करने का प्रयास करता ही रहता है ।

कहने का तात्पर्य है कि आज शिक्षण संस्थान व्यावसायिक संस्थान बनकर रह गये हैं, जहां ज्ञान अर्थ के साथ जुड़कर अर्थहीन हो चला है। इस परिवेश ने शिक्षकों की परिभाषा एवं स्वरूप को ही बदल दिया है। ऐसे में हम लाख गाते रहें- ‘गुरु कुम्हार शिष कुंभ है’ या ‘सब धरती कागद करु.... गुरु गुण लिखा न जाय’ पर सत्य यह है कि शिक्षा के मामले में हमने सर्वाधिक अनपढ़ता दिखाई है। पाठ्यक्रम बनाने से उसे लागू करने तक अनेक छेद है। सर्वाधिक आश्चर्यजनक है शिक्षा को नैतिक शिक्षा से रहित करना। जिन्हें ‘नैतिकता’ की सुगंध  ‘साम्प्रदायिकता’ की दुर्गन्ध से भी ज्यादा खतरनाक लगती हो वे शिक्षक का अर्थ जानते भी है या नहीं इस पर सवाल उठना चाहिए।

हाँ, यह सत्य है कि जहाँ शिक्षा व्यापार बनेगी वहाँ नैतिक मूल्यों की तलाश में गिरावट तो आनी ही है जो निरर्थक है। आज हम अपने बच्चों को गली-गली खुले तथाकथित अंग्रेजी माध्यम से पढ़ाने की होड़ में उन स्कूलों के हवाले कर निश्चिंत हो जाते हैं, जहाँ गुड मार्निंग, मैडम, सदियों से गाई जा रही दो-चार अंग्रेजी ‘पोयम्स’ रटाना या ब्लैक, व्हाइट, ग्रीन, काउ, कैट, जंग, मैंगो, एप्पल, और वन, टू, का पट्टा अपने बच्चे के गले में टांगें देख हम फूले नहीं समाते हैं, जिससे मैं भी दिखावे की परिवेश से दो चार हूं पर माफ करें जो किसी अबोध बालक को उसकी मातृभाषा, उसकी मातृ संस्कृति से दूर ले जाए वह शिक्षा हो ही नहीं सकती। पर संकट यह है कि हमें अपने बच्चे को श्रेष्ठ मानव नहीं, ‘मनी मेकिंग मशीन’ बनाना है।

मेरा मानना है कि शिक्षक को सम्मान दिए बिना शिक्षा का कोई महत्व नहीं है। आज मल्टी शिक्षक बनना किसी की प्राथमिकता नहीं है, डाक्टर, इंजीनियर, सीए, डीएम, एसपी बनना सबका सपना है। जब कुछ न बन सके तो चलो टीचर ही बन जाए आज के बिगड़े माहौल में ऐसा स्पष्ट हो रहा है मजबूरी में अध्यापक बनने वाला जीवन भर मजबूर ही रहेगा । उससे बहुत ज्यादा आशाएं भी करें तो क्या और कैसे? तो कैसे नाम लें कि उससे अन्याय नहीं होगा। एक प्रसिद्ध कहावत है- ‘टीचर्स शुड बी दि बेस्ट माइंड्स ऑफ दि कंट्री।’ एक गलत अध्यापक का चयन सैकड़ों बच्चों के कैरियर को ध्वस्त कर सकता है। एक सच्चा अध्यापक उस दीये के समान है जो स्वयं जलकर संसार को रोशनी देता है। वह न सिर्फ अबोध बच्चों का हाथ थामता है, उसकी प्रतिभा भी निखारता है। वह शैक्षिक ही नहीं जीवन दोनों का पाठ भी पढ़ाता है।

अन्त में मेरा मानना है कि यदि हम अपने बच्चे को आज नहीं सिखा सके तो कल बहुत देर हो चुकी होगी। जैसा की प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक थोमस ए हैरिस अपनी बेस्ट सेलिंग बुक "आई एम ओके यू आर ओके" में लिखते है -‘मनोजन्य रोगों का मूलाधार बच्चों की गलत शिक्षा एवं लर्निंग में ही है। मनुष्य के व्यक्तित्व का निर्धारण बारह वर्ष तक हो जाता है, बाद में तो वह मात्र टेप को रिप्ले करता है।’ तो मेरा भी विचार है कि स्वामी विवेकानन्द जी का अनमोल वचन "उठो, जागो और लक्ष्य की प्राप्ति तक मत रूको ! को अपने में समाहित कर आगे बढ़े ।

              । जय शिक्षक । जय भारत ।

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1 Comments

  1. 📌 MAN KI BAAT : आज मल्टी शिक्षक बनना किसी की भी प्राथमिकता नहीं है, डाक्टर, इंजीनियर, सीए, डीएम, एसपी बनना सबका सपना है, जब कुछ न बन सके......
    👉 http://www.basicshikshanews.com/2016/12/man-ki-baat_7.html

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