logo

Basic Siksha News.com
बेसिक शिक्षा न्यूज़ डॉट कॉम

एक छत के नीचे 'प्राइमरी का मास्टर' से जुड़ी शिक्षा विभाग की समस्त सूचनाएं एक साथ

MAN KI BAAT : आज गुणवत्तापरक शिक्षा पर चर्चा आम है, इसे लेकर चिंता जताई जा रही है तो इसके हर स्तर पर सोचना जरूरी भी है, सबसे पहले तो इसी बात पर विचार किया जाना चाहिए कि गुणवत्तापरक शिक्षा..........

MAN KI BAAT : आज गुणवत्तापरक शिक्षा पर चर्चा आम है, इसे लेकर चिंता जताई जा रही है तो इसके हर स्तर पर सोचना जरूरी भी है, सबसे पहले तो इसी बात पर विचार किया जाना चाहिए कि गुणवत्तापरक शिक्षा..........

आज गुणवत्तापरक शिक्षा पर चर्चा आम है, इसे लेकर चिंता जताई जा रही है तो इसके हर स्तर पर सोचना जरूरी भी है। सबसे पहले तो इसी बात पर विचार किया जाना चाहिए कि गुणवत्तापरक किसे कहेंगे। मुझे लगता है कि किसी भी विचार या वस्तु के लिए हम कोई मानक निर्धारित करते हैं। अगर परिणाम वांछित हों तो हम मानते हैं कि किया गया कार्य गुणवत्तापरक था। शिक्षा के लिए भी इसी प्रकार के मानक हमने निर्धारित किए हैं।

भारत के परिप्रेक्ष्य में देखें तो ये मानक संवैधानिक मूल्यों से आते हैं, जिसमें धर्मनिरपेक्षता, न्याय, समता, समानता, स्वतंत्रता और भाईचारा आदि हैं। अगर शिक्षा के नजरिए से देखें तो वही शिक्षा गुणवत्तापरक कही जा सकेगी जो इन मूल्यों को प्रतिपादित कर सके। सवाल यह है कि क्या हम इन संवैधानिक मूल्यों को आज तक स्थापित कर पाए हैं। अगर नहीं, तो गुणवत्तापरक शिक्षा पर कई सवाल हैं।

समाज बनने की एक प्रक्रिया होती है। समाज भी अपने लिए कुछ मूल्य निर्धारित करता है और उन मूल्यों का आधार समाज बनने की प्रक्रिया में आए नए सवालों और उन पर बने विचार होते हैं। भारत के संदर्भ में देखा जाए तो यहां भी इसी प्रक्रिया से समाज का निर्माण हुआ। इस समाज के निर्माण में कुछ ऐसे मूल्य भी स्थापित हो गए जो आज के परिप्रेक्ष्य में एक स्वस्थ सामाजिक व्यवस्था के प्रतिकूल हैं। सामंतवादी विचार, ऊंच-नीच का भेदभाव, लिंग, जाति, वर्ग और धर्म का विभेद आदि कई विचार हैं जो भारत जैसे देश के स्वस्थ विकास में बाधक हैं। शिक्षा एक ऐसा उपक्रम है जिससे इन विचारों पर प्रहार किया जा सकता है और अगर हम स्कूली शिक्षा का पाठ्यक्रम भी देखें तो उसमें निहित विचार भी यही है कि समाज में स्थापित ऐसे विचारों में बदलाव हो। फिर ऐसा क्या है कि आजादी के लगभग सात दशक बाद भी हम इस सामाजिक विचारों को वांछित रूप में नहीं बदल पाए हैं।

सामाजिक बदलाव शिक्षा से ही होगा यह तय है। फिर वे कौन-से कारण हैं जो इस बदलाव को नहीं होने दे रहे हैं। इसके लिए हमें वर्तमान शिक्षा प्रणाली को देखना होगा। क्या हमारे स्कूलों की कक्षाओं में वही हो रहा है जिस तरह के समाज की संकल्पना हमने की है। अगर कक्षा में समाज के अवांछित मूल्य ही पोषित हो रहे हैं तो फिर हम बदलाव नहीं कर रहे हैं, बल्कि एक प्रकार के समाज की प्रतिलिपि ही तैयार कर रहे हैं। बदलाव तब होगा जब हम निर्धारित संवैधानिक मूल्यों को कक्षा में देख पाएंगे।

उदाहरण के तौर पर ज्ञान प्राप्त करने के लिए दंड के प्रावधान पर विचार करें। अगर हम दंड देकर कुछ सिखाना चाहते हैं तो फिर हम किस तरह का समाज बनाना चाहते हैं? सिखाने की प्रक्रिया क्या है, यही तय करेगी कि बच्चा समाज के किन मूल्यों को लेकर जाएगा। दंड देकर सिखाने से बच्चे में कौन से मूल्य पल्लवित होंगे, इस पर विचार करना होगा। इसी प्रकार स्कूली शिक्षा के लिए कुछ विचार, जैसे कि पास-फेल, प्रतिस्पर्धा और अन्य ऐसी मान्यताओं पर विचार करना होगा।

समाज के नागरिक कैसे होंगे, यह इस बात पर निर्भर करता है कि हमारे स्कूल और वहां पर पाठ्यचर्या कैसी है। किसी पुस्तक के पाठ की उपयोगिता इस बात पर निर्भर नहीं करती कि उसकी सामग्री कैसी है, बल्कि इस बात पर कि उसका संपादन कैसा हो रहा है।

इसलिए बात यह ज्यादा महत्त्वपूर्ण है कि पाठ्यवस्तु के इतर स्कूल की प्रक्रिया या पाठ का संपादन कैसा है। पाठों में लैंगिक असमानता पर प्रहार करने से यह तय नहीं हो जाएगा कि उससे बच्चे लैंगिक असमानता के विरोध में विचार बना पाएंगे, बल्कि क्या इस कक्षा की प्रक्रियाओं में लैंगिक असमानता का विरोध स्पष्ट है। इसलिए जरूरत इस बात की है कि पाठ्यवस्तु कक्षा के जीवन में उतरे, न कि मात्र पाठ वाचन के रूप में हो। तभी हम वांछित सामाजिक परिवर्तनों की ओर बढ़ पाएंगे और अपने संवैधानिक मूल्यों को स्थापित कर पाएंगे।

स्थापित अवांछित सामाजिक मूल्य और शिक्षा से उन मूल्यों को चुनौती देना एक सतत प्रक्रिया है, लेकिन यह इस बात पर निर्भर करता है कि इस शिक्षा के वाहक क्या अपने अंतर्मन से स्थापित सामाजिक मूल्यों से मुक्त हैं और शिक्षा से दिए जा रहे मूल्यों के लिए उनकी मान्यता प्रबल है। अगर उनके मन में ही इसको लेकर संघर्ष है या शिक्षा के मूल्यों में कोई आस्था नहीं है तो इस बात की कोई संभावना नहीं है कि वे समाज के लिए वांछित आदर्श मूल्यों को कक्षा में स्थापित कर एक ऐसे समाज का निर्माण कर पाएंगे। इस बात के लिए यह जरूरी हो जाता है कि शिक्षा के वाहक ऐसे हों जो दी जा रही शिक्षा के संदर्भ को भली-भांति समझें। उन मूल्यों को स्थापित करने के प्रति कटिबद्ध हों, जिन उद्देश्यों के लिए शिक्षा का उपक्रम रचा गया है? तभी गुणवत्तापरक शिक्षा के निर्धारित लक्ष्य प्राप्त हो सकेंगे।
  लेख - कैलाश चंद्र काण्डपाल


Post a Comment

1 Comments

  1. 📌 MAN KI BAAT : आज गुणवत्तापरक शिक्षा पर चर्चा आम है, इसे लेकर चिंता जताई जा रही है तो इसके हर स्तर पर सोचना जरूरी भी है, सबसे पहले तो इसी बात पर विचार किया जाना चाहिए कि गुणवत्तापरक शिक्षा..........
    👉 http://www.basicshikshanews.com/2016/12/man-ki-baat.html

    ReplyDelete