MAN KI BAAT : सभी के लिए समान शिक्षा की पहल के तहत समान शिक्षा प्रणाली की प्रतिबद्धता के साथ स्कूली शिक्षा में नीजि भागीदारी को समाप्त कर समान शिक्षा प्रणाली को लागू करने के लिए जब तक निरन्तर प्रयास नहीं किया जायेगा तब तक सरकारी विद्यालयों, शिक्षकों और अभिभावकों पर लगे कलंक.........
शिक्षा एवं शिक्षकों के हित में बाधा बनने वाली समस्त सरकार नीतियां तथा व्यवस्थाओं का प्रतिरोध करते हुए अपेक्षित नीतियां एवं सुधारों का मार्ग प्रशस्त करना होगा, किन्तु खेद होता है कि प्राथमिक शिक्षा को उतना महत्व नहीं दिया जा रहा जितना दिया जाना चाहिए । वह देश जो ज्ञान और विज्ञान के मामले में विश्व की अगुवाई करता था वह देश आज साक्षरता और शिक्षा के सार्वजनीकरण के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए अपनी संकटों से जूझ रहा है ।
कहने का तात्पर्य है कि प्राइवेट पब्लिक पार्टनरशिप सिस्टम जैसी जन - विरोधी सोच के कारण शिक्षा में पूंजी निवेश होने लगी है, जो पूंजीपतियों को शिक्षा में निवेश का आमंत्रण दे रहा है । परिणाम यह है कि दोहरी शिक्षा व्यवस्थाओं को मजबूती प्रदान हुई है । पूंजी आधारित शिक्षा से गरीबों की शिक्षा में एक बड़ी खायी बन गयी है, जिसका परिणाम हो रहा है की गरीबों और अमीरों की शिक्षा अलग-अलग हो गयी है । जिसका प्रतिकूल प्रभाव वर्गविहीन समाज की संरचना के रूप में पड़ा है ।
यहीं यह कहना पड़ रहा है कि जब शिक्षा का दायित्व सरकार का है तो उसे पूरी करने की जिम्मेदारी भी सरकार को ही लेना चाहिए, साथ ही प्राइवेट विद्यालयों पर लगाम कसते हुए तत्कालीन उदाहरण स्वरूप 500-1000 हजार के नोट बन्दी आदेश का संज्ञान लेते हुए शिक्षा के क्षेत्र में भी सर्जिकल स्ट्राइक की जरूरत को देखते हुए कड़े कदम उठाना ही चाहिए, जिससे सरकारी विद्यालयों पर देखा देखी के चलते हो रही उपेक्षा और प्राइवेट विद्यालयों में बढ़ रहे जमावड़े पर लगाम लगाई जा सके क्योंकि यदि समस्त प्रकार के किसी न किसी माध्यम से सरकारी योजनाओं का लाभ जन मानस ले रहा है तो सरकारी विद्यालयों की उपेक्षा क्यों हो ???
आज देश में गरीबी और अशिक्षा की वजह से वह बच्चे जिन्हें विद्यालयों में होनी चाहिए वह बच्चे होटलों, फैक्ट्री, ईंट भट्टों, जैसे तमाम स्थानों पर कार्यरत हैं । बच्चों के खिलते हुए बचपन को गरीबी और अशिक्षा का शिकार होना पड़ता है और असमय उन नन्हें-मुन्ने बच्चों के हाथों में फावड़ा कुदाल थमा दिये जाते हैं । इनमें वे बच्चे भी होते हैं जो बीच से ही पढाई छोड़ देते हैं । यदि अभिभावक शिक्षित होते तो सम्भवत: वह अपने बच्चों को बालश्रम से दूर रखते ।
हमें लगता है कि बच्चों की शिक्षा के सार्वजनीकरण के लक्ष्य की चुनौतियों का सामना करना अकेले सरकार के बस का नहीं है हम सबको मिलकर विचार करते हुए एक सम्यक निर्णय लेकर कार्य योजना का निर्माण कर उस योजना के तहत कार्य करते हुए मजबूती से योगदान देने की जरूरत है । यह तभी सम्भव लगता है जब समाज के सभी व्यक्ति मिलकर जिसमें राजनीतिज्ञ, शिक्षाविद और शिक्षा में रूचि रखने वाले जन समुदाय, जन प्रतिनिधि एवं मीडिया के साथी सार्थक सहयोग दें ।
हमारा मानना है कि जब तक समाज में व्याप्त विषमताओं, स्कूली शिक्षा में नीजि भागीदारी को समाप्त कर समान शिक्षा प्रणाली को लागू करने के लिए जब तक निरन्तर प्रयास नहीं किया जायेगा तब तक सरकारी विद्यालयों, शिक्षकों और अभिभावकों पर लगे कलंक को नहीं मिटाया जा सकता है, देखना होगा कि इस दिशा में सार्थक प्रयास कब और कैसे शुरू होतें हैं जिसमें किसकी महती भूमिका प्रदर्शित होती है ????
।।। जय हिन्द, जय शिक्षक, जय भारत ।।।
। आपका अदना सा शिक्षक ।
। दयानन्द त्रिपाठी ।
शिक्षा एवं शिक्षकों के हित में बाधा बनने वाली समस्त सरकार नीतियां तथा व्यवस्थाओं का प्रतिरोध करते हुए अपेक्षित नीतियां एवं सुधारों का मार्ग प्रशस्त करना होगा, किन्तु खेद होता है कि प्राथमिक शिक्षा को उतना महत्व नहीं दिया जा रहा जितना दिया जाना चाहिए । वह देश जो ज्ञान और विज्ञान के मामले में विश्व की अगुवाई करता था वह देश आज साक्षरता और शिक्षा के सार्वजनीकरण के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए अपनी संकटों से जूझ रहा है ।
कहने का तात्पर्य है कि प्राइवेट पब्लिक पार्टनरशिप सिस्टम जैसी जन - विरोधी सोच के कारण शिक्षा में पूंजी निवेश होने लगी है, जो पूंजीपतियों को शिक्षा में निवेश का आमंत्रण दे रहा है । परिणाम यह है कि दोहरी शिक्षा व्यवस्थाओं को मजबूती प्रदान हुई है । पूंजी आधारित शिक्षा से गरीबों की शिक्षा में एक बड़ी खायी बन गयी है, जिसका परिणाम हो रहा है की गरीबों और अमीरों की शिक्षा अलग-अलग हो गयी है । जिसका प्रतिकूल प्रभाव वर्गविहीन समाज की संरचना के रूप में पड़ा है ।
यहीं यह कहना पड़ रहा है कि जब शिक्षा का दायित्व सरकार का है तो उसे पूरी करने की जिम्मेदारी भी सरकार को ही लेना चाहिए, साथ ही प्राइवेट विद्यालयों पर लगाम कसते हुए तत्कालीन उदाहरण स्वरूप 500-1000 हजार के नोट बन्दी आदेश का संज्ञान लेते हुए शिक्षा के क्षेत्र में भी सर्जिकल स्ट्राइक की जरूरत को देखते हुए कड़े कदम उठाना ही चाहिए, जिससे सरकारी विद्यालयों पर देखा देखी के चलते हो रही उपेक्षा और प्राइवेट विद्यालयों में बढ़ रहे जमावड़े पर लगाम लगाई जा सके क्योंकि यदि समस्त प्रकार के किसी न किसी माध्यम से सरकारी योजनाओं का लाभ जन मानस ले रहा है तो सरकारी विद्यालयों की उपेक्षा क्यों हो ???
आज देश में गरीबी और अशिक्षा की वजह से वह बच्चे जिन्हें विद्यालयों में होनी चाहिए वह बच्चे होटलों, फैक्ट्री, ईंट भट्टों, जैसे तमाम स्थानों पर कार्यरत हैं । बच्चों के खिलते हुए बचपन को गरीबी और अशिक्षा का शिकार होना पड़ता है और असमय उन नन्हें-मुन्ने बच्चों के हाथों में फावड़ा कुदाल थमा दिये जाते हैं । इनमें वे बच्चे भी होते हैं जो बीच से ही पढाई छोड़ देते हैं । यदि अभिभावक शिक्षित होते तो सम्भवत: वह अपने बच्चों को बालश्रम से दूर रखते ।
हमें लगता है कि बच्चों की शिक्षा के सार्वजनीकरण के लक्ष्य की चुनौतियों का सामना करना अकेले सरकार के बस का नहीं है हम सबको मिलकर विचार करते हुए एक सम्यक निर्णय लेकर कार्य योजना का निर्माण कर उस योजना के तहत कार्य करते हुए मजबूती से योगदान देने की जरूरत है । यह तभी सम्भव लगता है जब समाज के सभी व्यक्ति मिलकर जिसमें राजनीतिज्ञ, शिक्षाविद और शिक्षा में रूचि रखने वाले जन समुदाय, जन प्रतिनिधि एवं मीडिया के साथी सार्थक सहयोग दें ।
हमारा मानना है कि जब तक समाज में व्याप्त विषमताओं, स्कूली शिक्षा में नीजि भागीदारी को समाप्त कर समान शिक्षा प्रणाली को लागू करने के लिए जब तक निरन्तर प्रयास नहीं किया जायेगा तब तक सरकारी विद्यालयों, शिक्षकों और अभिभावकों पर लगे कलंक को नहीं मिटाया जा सकता है, देखना होगा कि इस दिशा में सार्थक प्रयास कब और कैसे शुरू होतें हैं जिसमें किसकी महती भूमिका प्रदर्शित होती है ????
।।। जय हिन्द, जय शिक्षक, जय भारत ।।।
। आपका अदना सा शिक्षक ।
। दयानन्द त्रिपाठी ।
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📌 MAN KI BAAT : सभी के लिए समान शिक्षा की पहल के तहत समान शिक्षा प्रणाली की प्रतिबद्धता के साथ स्कूली शिक्षा में नीजि भागीदारी को समाप्त कर समान शिक्षा प्रणाली को लागू करने के लिए जब तक निरन्तर प्रयास नहीं किया जायेगा तब तक सरकारी विद्यालयों, शिक्षकों और अभिभावकों पर लगे कलंक.........
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