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एक छत के नीचे 'प्राइमरी का मास्टर' से जुड़ी शिक्षा विभाग की समस्त सूचनाएं एक साथ

MAN KI BAAT : आज महात्मा गांधी जी की जयंती है जिसे हम सब अर्थात् पूरे समाज का एक बड़ा हिस्सा बड़ी धूमधाम से मना रहा है तो "आज का प्राइमरी का मास्टर/बेसिक शिक्षा न्यूज डॉट कॉम" की पूरी टीम की ओर से इसके लिए आप सबको ढेर सारी बधाईयां और...........

MAN KI BAAT : आज महात्मा गांधी जी की जयंती है जिसे हम सब अर्थात् पूरे समाज का एक बड़ा हिस्सा बड़ी धूमधाम से मना रहा है तो "आज का प्राइमरी का मास्टर/बेसिक शिक्षा न्यूज डॉट कॉम" की पूरी टीम की ओर से इसके लिए आप सबको ढेर सारी बधाईयां और...........

आज महात्मा गांधी जी की जयंती है जिसे हम सब अर्थात् पूरे समाज का एक बड़ा हिस्सा बड़ी धूमधाम से मना रहा है तो "आज का प्राइमरी का मास्टर/बेसिक शिक्षा न्यूज डॉट कॉम" की पूरी टीम की ओर से इसके लिए आप सबको ढेर सारी बधाईयां और शुभकामनाएं । राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के जन्म दिवस के मौके पर ये जानना जरूरी होगा कि जिस व्यक्ति ने अपने जीवन को मानव समाज और देश को समर्पित कर अहिंसा की ताकत का मूल्य समझाया आखिर उसकी सोच, दर्शन और सिद्धान्त क्या थे? समाज के रचना की तकनीक कैसी और क्या रही होगी, उनका सत्याग्रह कितना प्रासंगिक रहा होगा। इन सब को जानने के लिए सबसे पहले हमें गांधीवाद जैसे शब्द से बचना होगा क्योंकि वाद में जड़ता होती है।

वैसे मुझे ठीक-ठीक याद नहीं (किस वर्ष में) देखा तो मैंने भी था एक फिल्म आई थी "लगे रहो मुन्ना भाई", इस फिल्म ने बापू अर्थात महात्मा गांधी जी की गांधीगिरी को कुछ दिनों के लिए ही सही, लोकप्रिय तो कर ही दिया था। वैसे तो सही शब्द गांधीवाद ही है, गांधीगिरी नहीं। चूंकि गांधीवाद के वाद शब्द में जड़ता होती है, इस कारण यदि सही शब्द ही इस्तेमाल करेंगे तो फिर फिल्मी दुनिया के लोग फिल्म वाले कैसे कहलाएंगे? चूंकि उस समय युवा वर्ग इससे खासा प्रभावित होता नज़र आया था। भ्रष्ट कर्मचारियों को फूलों के गुच्छे अगले दिन से ही भेंट किये गए थे, ये ठीक है कि फिल्मों का असर समाज में कुछ हद तक अच्छाइयों के साथ दिखा था लेकिन आखिर कितने दिन रहता? धीरे-धीरे हम सब भूल गए किन्तु इसको देखते हुए महात्मा गांधी जी की जयन्ती की प्रासंगिकता पर पुनर्विचार करना आवश्यक है।

सच बात तो यह है कि बापू भी पहले एक साधारण आदमी ही थे। महात्मा तो उन्हें उनके कर्मों ने बनाकर साबित किया। और ऐसा भी नहीं है कि अहिंसा की परिकल्पना सबसे पहले गांधी जी ने ही की थी । यह तो सदियों पुरानी अवधारणा है जो गौतम बुद्ध और माहवीर स्वामी ने भी की थी । अपनी जिद के कारण सम्राट अशोक ने कलिंग युद्ध जीत तो लिया था किन्तु उसमें हुई मारकाट और जनहानि को वह बर्दाश्त नहीं कर पाये और उनका हृदय परिवर्तन हो गया तथा वह अहिंसावादी हो गया। उन्होंने बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार के द्वारा अहिंसा को फैलाया भी। किन्तु अहिंसा के इतने सशक्त उपयोग महात्मा गांधी जी से पहले शायद ही किसी ने किया हो और फिलहाल अभी ऐसा हो कहीं से दिखाई नहीं देता ।

एक बात और साफ कर देना बेहद जरूरी है कि गांधी जी बाहर की चीजों का एकदम निषेध नहीं करते बल्कि वे इसके कम मात्रा में प्रयोग करने के आवश्यकता के पक्षधर थे, क्योंकि उनका मानना था कि बाहरी शक्तियों के सीमा से अधिक होने पर वे हम पर हावी होती जाएंगी, परिणामस्वरूप हमारी स्वतंत्रता कम होती जाएगी। कुछ विचारकों का मानना है कि गांधी विचार का अनुसरण करके हम दुनिया से अलग-थलग पड़ जाएगें। जबकि यदि गम्भीरता से विचार किया जाए तो वास्तविक परिदृश्य एकदम अलग है।

एक बात और आज जब हम स्वच्छता के अभियान को जोर शोर से चला रहे हैं तो क्या जो महात्मा गांधी जी कहा करते थे कि "आजादी से पहले स्वच्छता जरूरी है" सम्भव है? हमें लगता है भारत जैसे विविधता वाले देश में एक विचार पर न चलने वाले लोग क्या ऐसा सम्भव बना पायेगें, यदि सम्भव बना लेते हैं तो निश्चित ही गांधी जी की परिकल्पना सही हो पाये क्योंकि गांधी जी ने स्वच्छता के साथ भारत की परिकल्पना की थी ।

हम सब जाने हैं कि न्यूटन का तीसरा नियम है, प्रत्येक क्रिया की विपरीत और बराबर प्रतिक्रिया होती है। विज्ञान के ज़्यादातर नियम आम जीवन में भी हर दिन लागू होते रहते हैं। इनमें से यह नियम भी एक है कि यदि आप किसी को मारने दौड़ोगे तो वह भी लाठी भाला लेकर आपको मारने आऐगा ही यह एक सामान्य सी बात है, यानि प्रत्येक क्रिया की विपरीत और बराबर प्रतिक्रिया होती ही है, किन्तु गांधी जी ऐसे शख्स़ थे जिन्होंने इस नियम को नकारा यानि केवल सामने वाला ही क्रिया करता जाऐ, आप विपरीत प्रतिक्रिया मत करिये अर्थात् हिंसा के जवाब में प्रतिहिंसा नहीं, अहिंसा होना चाहिए होता है न आश्चर्य आपको इसीलिए समाज के लोगों ने गांधी जी को उनके जीवन काल में ही महात्मा बना दिया।

अन्त में मेरा मानना है कि हम अपने महापुरुषों के जन्मदिन और पुण्यतिथियों पर बड़ी बड़ी बाते तो करतें हैं और उनके आदर्शों पर चलने का संकल्प और शपथ भी लेते है लेकिन फिर अगली सुबह हम उसी जड़ समाज का सक्रिय हिस्सा बन जाते हैं। मेरा कहना है कि अब वक्त आ गया है कि हम अपनी इस परिपाटी को छोड़ें और इसके लिए हमें महात्मा गांधी जी की जयंती से अच्छा मौका नहीं मिलेगा क्योंकि जितनी सामाजिकता और नैतिकता के ज्ञान का सजीव और निर्मल चित्रण हमें उनकी छवि से मिलेगा उतना किसी अन्य से नहीं, आगे के विचार आप सबके हैं क्या करना है ? कैसे करना है? और कब करना है? यह सब आप सब अर्थात पूरा समाज तय करता है बस! यही देखना है कि समाज में चैतन्यता कब आती है की जब बिना कहे, बिना टोका-टाकी कहीं भी कभी भी सबकी आंखें खुल जाएं...........

     ।।।। जय शिक्षक, जय भारत, जय हिन्द ।।।।



 MAN KI BAAT : स्कूलों में बच्चों के मनमाफिक माहौल तभी बनेगा जब शिक्षकों को शिक्षणेत्तर कार्यों से मुक्त किया जाए और शिक्षा में अनुशासन के लिये पुरस्कार और दंड दोनों बहुत जरूरी हैं, तो आसान शब्दों में कहा जाए तो बच्चे के सही करने पर ‘बकअप’ जबकि गलत करने पर ‘शटअप’ का शिक्षण सूत्र......... 


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  1. 📌 MAN KI BAAT : आज महात्मा गांधी जी की जयंती है जिसे हम सब अर्थात् पूरे समाज का एक बड़ा हिस्सा बड़ी धूमधाम से मना रहा है तो "आज का प्राइमरी का मास्टर/बेसिक शिक्षा न्यूज डॉट कॉम" की पूरी टीम की ओर से इसके लिए आप सबको ढेर सारी बधाईयां और........... क्लिक कर पूरा लेख पढ़ें ।
    👉 http://www.basicshikshanews.com/2016/10/man-ki-baat.html

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