CHILDREN : सरकारी स्कूलों के बच्चों से अछूतों जैसा सलूक, आईवीआरआई में महात्मा गांधी के जन्मदिन पर कराई गई पेंटिंग प्रतियोगिता में भी अमीरी-गरीबी का भेदभाव साफ देखा गया, जमीन पर बैठे थे केवल प्राइमरी स्कूल के बच्चे
बरेली : आईवीआरआई में महात्मा गांधी के जन्मदिन पर कराई गई पेंटिंग प्रतियोगिता में भी अमीरी-गरीबी का भेदभाव साफ देखा गया। स्वच्छ भारत अभियान के तहत हुई पेंटिंग प्रतियोगिता के दौरान सरकारी स्कूल के बच्चों से अछूतों जैसा व्यवहार करते हुए परीक्षा हॉल में जमीन पर बैठाकर पेंटिंग बनवाई गई। वहीं, कान्वेंट स्कूलों के बच्चे कुर्सी-मेज पर बैठाए गए।
मालूम हो कि स्वच्छ भारत विषय पर हुए पेंटिंग प्रतियोगिता में बरेली शहर के 40 स्कूल और कॉलेजों के लगभग 300 छात्र-छात्राएं शामिल हुए। इसमें कक्षा एक से 12वीं तक के छात्र थे। तीन अलग-अलग श्रेणियों में बंटी प्रतियोगिता के दौरान भेदभाव का मामला कक्षा एक से चार तक के वर्ग के छात्रों के बीच किया गया। इसमें आईवीआरआई कैंपस के भी प्राइमरी स्कूल के बच्चे पहुंचे। आईवीआरआई डीम्ड यूनिवर्सिटी के परीक्षा हॉल में कान्वेंट स्कूल के बच्चों को कुर्सियों पर बिठाया गया। वहीं पीली ड्रेस पहने आईवीआरआई कैंपस के प्राइमरी स्कूल के बच्चों को जमीन पर बैठाकर परीक्षा दिला दी गई। यह मामला सामने आने के बाद हड़कंप मचा हुआ है । आईवीआरआई डायरेक्टर ने मामला सामने आने के बाद आयोजकों से पूरे मामले में रिपोर्ट मांगी है।
जमीन पर बैठे थे केवल प्राइमरी स्कूल के बच्चे
आईवीआरआई प्रशासन भेदभाव से इनकार कर रहा है पर जमीन पर खाकी ड्रेस पहने जूनियर स्कूल के बच्चों की तस्वीर कुछ और हकीकत बयान कर रही है। यह भेदभाव नहीं था तो जमीन पर बैठे बच्चों में कानवेंट स्कूल के बच्चे भी शामिल होने चाहिए थे पर ऐसा नहीं किया गया। हालांकि तीन बच्चे कुर्सियों पर बैठे थे पर ये कॉन्वेंट स्कूलों की तुलना में संख्या नाकाफी थी।
समाज को बांटने वाला काम है यह
सामाजिक संस्था जागर के सचिव डॉ. प्रदीप कुमार ने कहा कि इस तरह के आयोजनों में ऐसा भेदभाव समाज को बांटने वाला है। आईवीआरआई जैसे संस्थानों से ऐसी उम्मीद नहीं की जा सकती। गांधीजी समाज से भेदभाव खत्म करना चाहते थे। अब आईवीआरआई वाले ही बताएं कि उनकी इस गलती से भेदभाव खत्म होगा या और ज्यादा बढ़ेगा। ऐसी गलती के लिए कोई माफी नहीं होनी चाहिए।
हीन भावना का शिकार हो जाते हैं बच्चे
मनोवैज्ञानिक डॉ. मीना गुप्ता ने बताया कि बेसिक स्कूलों के बच्चे अपने आप को वैसी ही पब्लिक स्कूल वालों से कमतर मानते हैं। इतने बड़े आयोजनों में इस तरह के भेदभाव से उनकी हीन भावना और भी बढ़ जाएगी। जब आयोजकों को यह मालूम था कि बच्चे आने वाले हैं तो उन्हें पहले से पर्याप्त इंतजाम करके रखने चाहिए। आयोजकों की चूक की सजा बच्चों को नहीं मिलनी चाहिए।
डायरेक्टर की सुनिए
आईवीआरआई के डायरेक्टर डॉ. आरके सिंह का कहना है कि पेंटिंग कंपटीशन में 40 विद्यालयों के 300 बच्चे शामिल हुए, इससे काफी भीड़ बढ़ गई थी। जिन बच्चों को जमीन पर बिठाकर परीक्षा दिलाने की बात हो रही है, उनको पहुंचने में देर हो गई थी तब तक बाकी बच्चे कुर्सियों पर बैठ चुके थे, ऐसे में उनको हटाया नहीं जा सकता था। ऐसे में बेसिक स्कूल के कुछ बच्चे कुर्सियों पर बैठे बाकियों को जगह नहीं मिलने के कारण डायस के रैंप पर बैठाए गए।
प्रतियोगिता शुरू होने से पहले ही यह एनाउंस किया गया था कि अपनी सुविधा के अनुसार वे जहां चाहे बैठ सकते हैं। स्कूल के शिक्षकों से बात की गई तो उन्होंने कहा कि बच्चे जमीन पर बैठकर बेहतर कर सकते हैं। भेदभाव की बात गलत है। फिर भी आयोजकों का इस बात का ध्यान रखना चाहिए था कि प्रतियोगिता में ऐसा भेदभाव न हो। इसके लिए आयोजकों की ओर से मैं खेद प्रकट करता हूं।
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