MAN KI BAAT : सुधार के लंबे इंतजार की प्रकिया में शिक्षा में गुणवत्ता का सवाल रह-रहकर सामने आता रहता है, जिसमें यह भी निराशाजनक है कि प्राथमिक शिक्षा के ढांचे में सुधार राज्य सरकारों के प्राथमिक दायित्वों में भी मुश्किल से दिखता.......
शिक्षा में गुणवत्ता का सवाल रह-रहकर सामने आता रहता है। कभी नीति-नियंताओं के स्तर पर, कभी शिक्षाविदों के स्तर पर तो कभी महत्वपूर्ण पदों पर बैठे लोगों के स्तर पर। यह सिलसिला लंबे अर्से से कायम है, लेकिन शिक्षा में सुधार का कार्य अभी भी शेष है और यह कार्य इतना अधिक है कि आवश्यक कदम उठाने की दिशा में मीलों चलने वाली स्थिति है।
विगत दिवस राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने दिल्ली में राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार वितरण समारोह में यह जो कहा कि देश में शिक्षा की गुणवत्ता में बड़ी कमी है उससे भला कौन असहमत हो सकता है। सभी इससे परिचित हैं कि उच्च शिक्षा ही नहीं प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा के स्तर पर भी तमाम खामियां व्याप्त हैं और वे दूर होने का नाम नहीं ले रही हैं। सभी इससे भी अवगत हैं कि एक बड़ी संख्या में भारतीय छात्र शिक्षा के लिए विदेश जाते हैं और इसके चलते भारी-भरकम विदेशी मुद्रा का व्यय होता है।
आखिर हमारे नीति-नियंता यह कब समझेंगे कि इस धन का उपयोग गुणवत्ताप्रधान उच्च शिक्षा के केंद्रों की स्थापना में किया जाना कहीं अधिक उपयोगी साबित होगा? यह निराशाजनक है कि इस दिशा में आवश्यक कदम उठते नहीं दिख रहे हैं। कभी-कभार कुछ कदम उठते भी हैं, लेकिन वे पर्याप्त साबित नहीं हो रहे हैं।
मोदी सरकार ने सत्ता में आने के बाद जिन क्षेत्रों में सुधार की उम्मीद जगाई थी उनमें शिक्षा भी था, लेकिन अभी तक स्मृति ईरानी के नेतृत्व में मानव संसाधन विकास मंत्रलय विवादों से ही अधिक घिरा रहा और वे कदम नहीं उठाए जा सके जो पिछले दो वर्षो में उठा लिए जाने चाहिए थे। नए मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने भिन्न रीति-नीति से काम करने के न केवल संकेत दिए हैं, बल्कि आश्वासन भी दिया है। उन्हें यह आभास होना चाहिए कि बहुत तेजी से बहुत अधिक करने की जरूरत है।
उनका सबसे पहला दायित्व नई शिक्षा नीति को अंतिम रूप देना है। कायदे से अब तक तो यह नीति तैयार हो जानी चाहिए थी। हो सकता है कि जल्द ही यह काम हो जाए, लेकिन केवल नीति ही शिक्षा में सुधार की गारंटी नहीं बन सकती। जितना ध्यान उच्च शिक्षा के स्तर को दुरुस्त करने पर देने की जरूरत है उससे कहीं अधिक ध्यान प्राथमिक शिक्षा के ढांचे में सुधार करने पर दिया जाना चाहिए। प्राथमिक शिक्षा, शिक्षा की बुनियाद है, लेकिन वह बहुत कमजोर है। प्राथमिक शिक्षा की कमजोर बुनियाद को मजबूत करने का काम सही तरह से तब तक नहीं हो सकता जब तक राज्य सरकारें अपने हिस्से की जिम्मेदारी का निर्वहन करने के लिए संकल्पबद्ध नहीं होतीं।
यह निराशाजनक है कि प्राथमिक शिक्षा के ढांचे में सुधार राज्य सरकारों के प्राथमिक दायित्वों में भी मुश्किल से दिखता है। यदि शिक्षा के ढांचे में आवश्यक सुधार नहीं किया जा सका तो देश के निर्माण का काम आगे नहीं बढ़ सकता। किसी भी देश के उत्थान में उसकी युवा पीढ़ी सर्वाधिक मददगार बनती है। अच्छा हो कि हमारे नीति-नियंता इस बुनियादी बात को समङों कि समाज और राष्ट्र के उत्थान के उनके दावे कोरे ही साबित होते रहेंगे जब तक प्राथमिक से लेकर उच्च शिक्षा के स्तर के ढांचे को ठीक करने का काम प्राथमिकता के आधार पर नहीं किया जाता। यह काम इस ढंग से किया जाना चाहिए कि वह होता हुआ भी दिखे।
-द्वारा दैनिक जागरण सम्पादकीय पृष्ठ
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