logo

Basic Siksha News.com
बेसिक शिक्षा न्यूज़ डॉट कॉम

एक छत के नीचे 'प्राइमरी का मास्टर' से जुड़ी शिक्षा विभाग की समस्त सूचनाएं एक साथ

MAN KI BAAT : कर्मचारी नेताओं को यह समझना चाहिए कि वे जनता के लिए हैं, वे जिस बोनस, भत्ताें या अन्य सुविधाओं की मांग कर रहे हैं, उसके एवज में उन्हें जनसेवा करनी परन्तु इसमें बाधाब पहुंचने में सरकार कम दोषी नहीं है पूरे तीन सालों से सरकार मांगों पर विचार कर रही......

MAN KI BAAT : कर्मचारी नेताओं को यह समझना चाहिए कि वे जनता के लिए हैं, वे जिस बोनस, भत्ताें या अन्य सुविधाओं की मांग कर रहे हैं, उसके एवज में उन्हें जनसेवा करनी परन्तु इसमें बाधाब पहुंचने में सरकार कम दोषी नहीं है पूरे तीन सालों से सरकार मांगों पर विचार कर रही......

🔴 जनहित और कर्मचारी

हाल में खत्म हुई राज्य व्यापी कर्मचारी हड़ताल के दूसरे दिन कर्मचारी नेताओं ने बड़े गर्व से पत्रकारों को बताया कि अब तक सरकार को 1800 करोड़ रुपये का नुकसान हो चुका है। उन्होंने अपना यह अनुमान भी प्रेस से साझा किया कि सरकार न झुकी तो तीन दिन की हड़ताल में नुकसान ढाई हजार करोड़ रुपये से अधिक का होगा। उनके पास एक-एक विभाग का विवरण था कि किसको कितनी हानि हुई। यह भी बताया गया कि हड़ताल इतनी सफल रही कि मनरेगा श्रमिकों का भी भुगतान नहीं किया जा सका।

संवेदनहीनता का यह प्रत्यक्ष प्रमाण है। रोज कमाने-खाने वाले मजदूर को भी यदि पैसा नहीं मिलेगा तो उसकी और उसके परिवार की दशा की कल्पना की जा सकती है। दो दिनों की हड़ताल में अस्पतालों को भी नहीं बख्शा गया। इमरजेंसी सेवाएं भले ही चालू रहीं लेकिन, ओपीडी में आने वाले हजारों मरीजों और उनके तीमारदारों को बेतरह परेशान होना पड़ा। सुबह तीन घंटे तक सरकारी अस्पतालों में आम चिकित्सा सेवाएं बंद कर दी गईं।

हड़ताल बुधवार से शुरू होकर शुक्रवार तक चलनी थी। हड़ताल की अवधि ऐसी चुनी गई थी कि सरकार समझौता न करती तो आगामी मंगलवार तक दफ्तरों में कोई काम नहीं होता। सोमवार को पंद्रह अगस्त का अवकाश है। इस तरह लगभग पूरे हफ्ते सरकारी कामकाज प्रभावित रहता। कर्मचारी नेताओं को यह समझना चाहिए कि वे जनता के लिए हैं। वे जिस बोनस, भत्ताें या अन्य सुविधाओं की मांग कर रहे हैं, उसके एवज में उन्हें जनसेवा करनी है। उधर राज्य सरकार भी कम दोषी नहीं। कर्मचारी तीन साल से कैशलैस इलाज की सुविधा मांग रहे हैं लेकिन, उनकी नहीं सुनी गई। कर्मचारी अदालत तक हो आए जहां सरकार ने भी वादा कर लिया किंतु फिर भी बात बनी नहीं। तीन साल का समय बहुत होता है। इस अवधि में सारी अड़चनें दूर करके कर्मचारियों को राहत दी जा सकती थी। चिकित्सा सुविधा की मांग करना न्यायोचित है।

सच तो यह है कि सरकार ने ही कर्मचारियों को आंदोलन के मार्ग पर डाला। अब भी स्थिति बहुत स्पष्ट नहीं है। आंदोलित कर्मचारियों को पहले तो अगले ही दिन मांग पूरी करने का आश्वासन दिया गया लेकिन, जब उन्हें लिखित समझौता मिला तो उसमें से तारीख गायब थी। कर्मचारी फिर बिफरे तो पंद्रह दिन की घोषणा की गई। कर्मचारियों को अपना दायित्व समझना चाहिए लेकिन, सरकार को भी समझना होगा कि उसके शासन की रीढ़ कर्मचारी ही होते हैं।
   साभार : दैनिक जागरण सम्पादकीय पृष्ठ

Post a Comment

1 Comments

  1. 📌 MAN KI BAAT : कर्मचारी नेताओं को यह समझना चाहिए कि वे जनता के लिए हैं, वे जिस बोनस, भत्ताें या अन्य सुविधाओं की मांग कर रहे हैं, उसके एवज में उन्हें जनसेवा करनी परन्तु इसमें बाधाब पहुंचने में सरकार कम दोषी नहीं है पूरे तीन सालों से सरकार मांगों पर विचार कर रही......
    👉 http://www.basicshikshanews.com/2016/08/man-ki-baat_14.html

    ReplyDelete