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एक छत के नीचे 'प्राइमरी का मास्टर' से जुड़ी शिक्षा विभाग की समस्त सूचनाएं एक साथ

मन की बात : कर्मचारियों के दम पर ही इतने बड़े प्रदेश का राजकाज चलता है लिहाजा उन्हें अपने लिए आवाज उठाने का पूरा अधिकार है, अपने वेतन और पेंशन की चिंता में यदि वे अधिकारियों से मिलकर अपनी बात कहते हैं तो यह कतई जायज.......

मन की बात : कर्मचारियों के दम पर ही इतने बड़े प्रदेश का राजकाज चलता है लिहाजा उन्हें अपने लिए आवाज उठाने का पूरा अधिकार है, अपने वेतन और पेंशन की चिंता में यदि वे अधिकारियों से मिलकर अपनी बात कहते हैं तो यह कतई जायज.......

           🔴 दाम और काम

सोमवार को राज्य सरकार ने अपने कर्मचारियों का मकान किराया भत्ता 20 प्रतिशत बढ़ा दिया। इस वृद्धि से राज्य के खजाने पर सालाना 500 करोड़ रुपये अधिक भार पड़ेगा लेकिन, कर्मचारी खुश नहीं और उनका एक गुट बुधवार से तीन दिन की हड़ताल पर जा रहा है। इनमें शिक्षक, शिक्षणोतर और निगम कर्मचारी भी शामिल हैं।

आंदोलनकारियों की अनेक मांगें हैं जिनमें प्रमुख है कि उन्हें केंद्रीय कर्मचारियों के बराबर एचआरए चाहिए। वे कैशलेस इलाज की सुविधा मांग रहे हैं तो इसमें भी कोई हर्ज नहीं। फील्ड कर्मचारियों के लिए मोटरसाइकिल भत्ता और पुरानी पेंशन व्यवस्था की बहाली भी उनकी मांगों में शामिल है। कर्मचारियों के दम पर ही इतने बड़े प्रदेश का राजकाज चलता है लिहाजा उन्हें अपने लिए आवाज उठाने का पूरा अधिकार है। अपने वेतन और पेंशन की चिंता में यदि वे अधिकारियों से मिलकर अपनी बात कहना कहते हैं तो यह कतई जायज है।

समस्या यह नहीं कि कर्मचारियों या अधिकारियों को वेतन कितना मिलता है। वह उनका अपना परिश्रम और भाग्य है। प्रश्न उस जनता का है जो कर्मचारियों-अधिकारियों का वेतन, भत्ते बढ़ने की खबर सुनती है। जनता सोचती है कि इस वेतनवृद्धि के बाद क्या उन्हें सरकारी दफ्तरों में कर्मचारी अपनी सीट पर बैठा मिलेगा। क्या समस्या का समाधान करने के नाम पर उन्हें अब दस बार नहीं दौड़ाया जाएगा। क्या शिक्षा विभाग, सिंचाई विभाग, स्वास्थ्य विभाग और इन जैसे अन्य सरकारी कार्यालयों का माहौल जनोन्मुख हो जाएगा और क्या वहां कर्मचारियों द्वारा ई-गवर्नेस का विरोध बंद हो जाएगा। क्या सूचना का कानून प्रभावी और सक्रिय बनाने के लिए कर्मचारी भी प्रयासरत हो उठेंगे। जनता केवल यह चाहती है और जब कर्मचारियों की मांगें वाजिब हैं तो जनता की अपेक्षाओं में भी कोई दोष नहीं।

उत्तर प्रदेश के कर्मचारी एचआरए तो केंद्र के जैसा मांग रहे हैं लेकिन, उन्होंने वहां के जैसा हाजिरी सिस्टम भी मांग लिया होता तो जनता खुश होती। बेहतर यह होता कि कर्मचारी केंद्र के बराबर पैसा मांगते समय वहां का बायोमीटिक हाजिरी प्रबंध भी मांग लेते। इससे दफ्तर में उनकी दृश्यता बढ़ जाती और उन्हें दफ्तर से बाहर जाने के लिए हर बार मशीन पर अंगूठा लगाना होता। अब भी देर नहीं हुई। हड़ताल पर जाने से पहले कर्मचारी अपने ज्ञापन में बायोमीटिक सिस्टम की मांग शामिल कर सकते हैं। इसका चौतरफा अच्छा प्रभाव पड़ेगा।
    साभार - दैनिक जागरण सम्पादकीय पृष्ठ

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  1. 📌 मन की बात : कर्मचारियों के दम पर ही इतने बड़े प्रदेश का राजकाज चलता है लिहाजा उन्हें अपने लिए आवाज उठाने का पूरा अधिकार है, अपने वेतन और पेंशन की चिंता में यदि वे अधिकारियों से मिलकर अपनी बात कहते हैं तो यह कतई जायज.......
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