MAN KI BAAT : कुंजी-संस्कृति में बंद हो गई शिक्षा व्यवस्था पर दौरान ए चर्चा ऐसा लगता है कि नई शिक्षा नीति के साथ पास-फेल की व्यवस्था की वापसी होने वाली है, इसलिए समझदारी यही है कि "पास बुक खरीदकर" परीक्षा की तैयारी.......
मेरे स्कूल के दिनों में शायद ही कोई 'कुंजी' के साथ दिखना चाहता था। कुंजी किताबों का सार रूप होती थी, जो यह कहकर बेची जाती थी कि उसे पढ़ना परीक्षा में पास होने की गारंटी है। उसमें आमतौर पर ऐसे सवाल होते थे, जिनके परीक्षा में आने की संभावना होती थी। पिछले 30 वर्षों में यह कुंजी खत्म नहीं हुई है, अलबत्ता उनकी संख्या में बेतहाशा वृद्धि हुई है। अब ये और बेहतर तरीके से प्रकाशित होने लगी हैं। हालांकि कोई प्रकाशक इन्हें कुंजी नहीं कहता, मगर इसकी बुनियादी अवधारणा वही है- अच्छी शिक्षा की राह का एक कांटा।
पिछले सप्ताह एक राष्ट्रीय अखबार के पेज एक और दो पर मैंने खास ब्रांड के 'पास बुक' का विज्ञापन देखा। 'पास बुक' यानी कुंजी का सभ्य नाम। उसमें साफ तौर पर लिखा गया था कि चूंकि नई शिक्षा नीति के साथ पास-फेल की व्यवस्था की वापसी होने वाली है, इसलिए समझदारी यही है कि पास बुक खरीदकर परीक्षा की तैयारी शुरू की जाए। जिन दोस्तों ने मुझे यह विज्ञापन दिखाया, उनका मानना था कि इस नीति की वापसी के पीछे विशाल कुंजी उद्योग का हाथ है। वे ऐसा इसलिए मानते थे, क्योंकि शिक्षा मामलों के एक प्रमुख सचिव ने उन्हें बताया था कि किस तरह उनके हर प्रगतिशील प्रयासों को इस उद्योग ने कुंद करने की कोशिश की।
फिर उन्होंने खुद उन हालात का मुकाबला किया था, जब राज्य स्तर की परीक्षाओं में सीधे इन्हीं कुंजी से सवाल पूछे जाते थे। खैर, यह संस्कृति यूं ही नहीं पनपी है। असल में, यह हमारी परीक्षा-प्रणाली की विसंगतियों से पैदा हुई है और यह उस विकृति की भी प्रतीक है, जो इसकी वजह से पठन-पाठन की प्रकिया में पसर गई है।
हमारी शिक्षा व्यवस्था में सिर्फ यही समस्या नहीं है। नई शिक्षा नीति को लेकर सलाह देने के लिए सरकार ने एक उच्च-स्तरीय कमेटी बनाई थी। इसने हाल ही में अपनी रिपोर्ट दी है। रिपोर्ट कहती है कि शिक्षा के व्यवसायीकरण ने उसे हर तरह से हानि पहुंचाई है।
रिपोर्ट के शब्दों पर ही गौर करें, तो यह कहती है, 'तंत्र काफी हद तक बीमार हो गया है और इसे कायाकल्प की जरूरत है। चूंकि शिक्षा की गुणवत्ता सबसे ज्यादा प्रभावित हुई है, इसलिए शिक्षा में मौजूद बेकाबू कारोबारी व्यवस्था की कमर तोड़ी जाए।' कमेटी ने प्रकारांतर से यह भी पाया कि अव्वल तो कैपिटेशन फीस के नाम पर उल-जुलूल रकम वसूली जाती है, फिर पेशेवर संस्थानों में राजनेताओं की हिस्सेदारी की वजह से सुधार की जमीन भी तैयार नहीं हो पाती। लिहाजा आमूल-चूल बदलाव जरूरी है।
कुंजी संस्कृति इसी व्यवसायीकरण का एक हिस्सा है। इस व्यवसायीकरण का जाल हर जगह फैला है- निजी स्कूलों, प्रशासन व किताब छापने वाले प्रकाशकों के गठजोड़ में, निष्क्रिय बीएड कॉलेजों में और हर उस जगह, जहां से आपका वास्ता है। उम्मीद है कि नई शिक्षा नीति इसे खत्म करने का आधार बनेगी।
-अनुराग बहर, सीईओ, अजीम प्रेमजी फाउंडेशन
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
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📌 MAN KI BAAT : कुंजी-संस्कृति में बंद हो गई शिक्षा व्यवस्था पर दौरान ए चर्चा ऐसा लगता है कि नई शिक्षा नीति के साथ पास-फेल की व्यवस्था की वापसी होने वाली है, इसलिए समझदारी यही है कि "पास बुक खरीदकर" परीक्षा की तैयारी.......
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