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एक छत के नीचे 'प्राइमरी का मास्टर' से जुड़ी शिक्षा विभाग की समस्त सूचनाएं एक साथ

मन की बात : बदलाव के माड्यूल की प्रक्रिया में एससीईआरटी ने ऐसा मॉड्यूल तैयार किया है जिससे बच्चों में गणितीय दक्षता विकसित करने के लिए रोजमर्रा की जिंदगी से जुड़ी गतिविधियों को आधार बनाकर.............

मन की बात : बदलाव के माड्यूल की प्रक्रिया में एससीईआरटी ने ऐसा मॉड्यूल तैयार किया है जिससे बच्चों में गणितीय दक्षता विकसित करने के लिए रोजमर्रा की जिंदगी से जुड़ी गतिविधियों को आधार बनाकर.............

दो इकन्नम दो और दो दूनी चार.. सुनते ही जेहन में परिषदीय स्कूल का दृश्य उभर आता है, जहां बच्चों को रटंत विद्या में पारंगत किया जा रहा होता है। बेसिक शिक्षा विभाग राज्य शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (एससीईआरटी) के मदद से अब इसमें बदलाव के रंग भरने जा रहा है। बच्चों के बीच बोङिाल समङो जाने वाले गणित के गूढ़ विषय को आसान, मनोरंजक व रुचि पूर्ण बनाने के लिए पढ़ाई का नया तरीका खोजा गया है। एससीईआरटी ने ऐसा मॉड्यूल तैयार किया है जिससे बच्चों में गणितीय दक्षता विकसित करने के लिए रोजमर्रा की जिंदगी से जुड़ी गतिविधियों को आधार बनाकर शिक्षा दी जाएगी।

फिलहाल, प्रत्येक जिले में एक डायट प्रवक्ता, जिला समन्वयक (प्रशिक्षण) और दो सह-ब्लॉक समन्वयकों की टीम को माड्यूल का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। अब तक 40 जिलों में चार सदस्यीय टीम को प्रशिक्षण दिया जा चुका है। मंशा है कि अगस्त तक प्रशिक्षण पूरा कर लिया जाए और इसके बाद इसे स्कूलों में प्रयोग के तौर पर शुरू कर दिया जाए।

बेसिक शिक्षा विभाग और एससीईआरटी का यह प्रयास सराहनीय है। यह स्वीकार करने में कदापि संकोच नहीं किया जाना चाहिए कि जैसी गति केंद्रीय विद्यालय संगठन के स्कूलों में प्रयोगों की रही है, वैसी बेसिक शिक्षा परिषद के स्कूलों में नहीं रही। इसीलिए यहां से रटंत विद्या में पारंगत छात्र तो निकलते हैं लेकिन जब इसके व्यावहारिक अनुप्रयोग की बात आती है तो चुप्पी साधनी पड़ती है।

यह मॉड्यूल विकसित करने के पीछे धारणा है कि स्कूल में दाखिले से पहले किसी भी बच्चे को यह मालूम होता है कि मनुष्य के चेहरे में दो आंखें, एक नाक व दो कान होते हैं। यह भी कि उसका बड़ा भाई उससे लंबा है जबकि दुधमुंही बहन छोटी। थाली भारी होती है और चम्मच हल्का। यानी, स्कूली शिक्षा से पहले देख सुन कर उसे पता चल चुका होता है कि दूर-पास, हल्का-भारी, छोटा-बड़ा, ऊपर-नीचे, आगे-पीछे, मोटा-पतला में क्या फर्क होता है।

रोजमर्रा की इन्हीं गतिविधियों और वस्तुओं का उदाहरण देकर समझाया जाए तो गणित जैसा नीरस विषय भी वह रुचिपूर्वक पढ़ेगा और सीखेगा। उसमें व्यवहारिक समझ विकसित होगी। हालांकि, यह प्रयोग बच्चों के लिए तभी उपयोगी साबित होगा जब प्रशिक्षण प्राप्त करने वाली टीमें इसका लाभ वास्तविक तौर पर शिक्षकों को और शिक्षक बच्चों को हस्तांतरित करें। रुचि लेकर पढ़ायें और परिणामों का विश्लेषण करें। परिणामी सफलता के लिए प्रतिबद्धता जरूरी है।

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  1. 📌 मन की बात : बदलाव के माड्यूल की प्रक्रिया में एससीईआरटी ने ऐसा मॉड्यूल तैयार किया है जिससे बच्चों में गणितीय दक्षता विकसित करने के लिए रोजमर्रा की जिंदगी से जुड़ी गतिविधियों को आधार बनाकर.............
    👉 http://www.basicshikshanews.com/2016/07/blog-post_42.html

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