मन की बात : बाबुओं की बढ़ी पगार, सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों को मंजूरी देकर केंद्र सरकार ने अपने अमले को संतुष्ट करने की कवायद की है, लेकिन अभी कोई भी इससे खुश नहीं............
सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों को मंजूरी देकर केंद्र सरकार ने अपने अमले को संतुष्ट करने की कवायद की है, लेकिन अभी कोई भी इससे खुश नहीं दिख रहा। रेलवे, पोस्ट और सेना की ऑर्डिनेंस फैक्टरियों के कर्मचारियों ने इसके विरोध का फैसला किया है। राज्य के कर्मचारी और पेंशनर भी इन सिफारिशों से नाराज हैं। वेतन आयोग ने निचले स्तर पर मूल वेतन में 14.27 फीसदी बढ़ोतरी की सिफारिश की है, जो आजाद भारत के इतिहास में सबसे कम बताई जा रही है। कर्मचारी संघ 18 हजार रुपये के न्यूनतम वेतन को बढ़ाने की मांग कर रहे हैं, हालांकि वित्त मंत्री ने कहा है कि अगर कोई विसंगति है तो उसे दूर किया जाएगा। सरकार के सामने एक चुनौती तो अपने कर्मचारियों को मनाने की होगी, लेकिन इसके साथ ही उसे अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर भी संतुलन साधना होगा।
सरकार के साथ-साथ कई अर्थशास्त्री भी मान रहे हैं कि इससे अर्थव्यवस्था को गति मिलेगी, क्योंकि एक बड़े वर्ग की क्रय शक्ति बढ़ने वाली है। इससे कंस्यूमर ड्यूरेबल्स और कारों की बिक्री बढ़ सकती है और रियल्टी सेक्टर में उछाल आ सकता है। छठे वेतन आयोग का अनुभव बताता है कि लोगों ने बड़ी संख्या में मकान बुक कराए और गाड़ियां खरीदीं। लेकिन उसके बाद अर्थव्यवस्था में कई तरह के संकट पैदा हुए और रियल्टी सेक्टर दबाव में आ गया। आज हाल यह है कि सात साल पहले बुक कराए गए फ्लैटों का पजेशन भी लोगों को नहीं मिल सका है।
यह सही है कि पैसे का फ्लो बढ़ने से उपभोक्ता वस्तुओं की मांग बढ़ती है, लेकिन आज जब लगभग सारे उद्योग अपनी क्षमता का 70 फीसदी ही उत्पादन कर रहे हैं, तब दावे के साथ कोई भी नहीं कह सकता कि केंद्रीय कर्मचारियों की पगार बढ़ाने से देश में नए रोजगार पैदा होने लगेंगे। हां, बाजार में मुद्रा की अधिक आपूर्ति से मुद्रास्फीति का बढ़ना तय है। भारतीय रिजर्व बैंक ने अप्रैल में कहा था कि आयोग की रिपोर्ट लागू होने पर महंगाई डेढ़ फीसदी बढ़ सकती है। कई विशेषज्ञ मानते हैं कि सातवें वेतन आयोग की सिफारिशें अमल में आने से न्यूनतम और अधिकतम वेतन के बीच की खाई और चौड़ी होगी। रेटिंग एजेंसी फिच पहले ही कह चुकी है कि इन सिफारिशों को मानने से इस वित्त वर्ष में वित्तीय घाटे को 3.5 फीसदी तक सीमित रखने का लक्ष्य प्रभावित हो सकता है।
ऐसा न हो, इसके लिए जरूरी है कि सरकार अपने बाकी खर्च घटाए और टैक्स वसूली का स्तर सुधारे। राष्ट्रीय कार्यशक्ति के बड़े हिस्से के पास सरकारी अमले की बढ़ती अमीरी को चुपचाप देखते रहने के सिवाय कोई चारा नहीं है। 47 करोड़ वर्क फोर्स में इन बढ़ी तनख्वाहों का फायदा अगर एक फीसदी तक ही पहुंचना है तो सरकारी सेवाओं के बदतर होते कामकाज को देखते हुए इसकी उत्पादक भूमिका की बस कल्पना ही की जा सकती है।
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📌 मन की बात : बाबुओं की बढ़ी पगार, सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों को मंजूरी देकर केंद्र सरकार ने अपने अमले को संतुष्ट करने की कवायद की है, लेकिन अभी कोई भी इससे खुश नहीं............
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