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एक छत के नीचे 'प्राइमरी का मास्टर' से जुड़ी शिक्षा विभाग की समस्त सूचनाएं एक साथ

मन की बात : सुखद संदर्भ इसीलिए कि यदि विद्या भारती के इन स्कूलों और मदरसों की पढ़ाई से ऐसे ही सकारात्मक संदर्भ निकालकर समाज को प्रेरित किया जाए तो सही..........

मन की बात : सुखद संदर्भ इसीलिए कि यदि विद्या भारती के इन स्कूलों और मदरसों की पढ़ाई से ऐसे ही सकारात्मक संदर्भ निकालकर समाज को प्रेरित किया जाए तो सही..........

यह खबर सुखद अहसास कराने वाली है कि विद्या भारती के विद्यालयों में सिर्फ हिंदूुओं ही नहीं, बड़ी संख्या में मुस्लिमों के बच्चे भी तालीम ले रहे हैं। सुखद इसलिए कि विद्या भारती को राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का आनुषंगिक संगठन माना जाता है जो शिक्षा के क्षेत्र में कार्य कर रहा है।

यह भी धारणा है कि संघ के भगवा एजेंडे को इन्हीं विद्यालयों से धार दी जाती है। धर्मनिरपेक्षता को राजनीतिक चश्मे से देखने वाले लोग अक्सर ऐसे आरोप लगाते रहते हैं। तथ्य इस बात को झुठला रहे हैं। रिपोर्ट के अनुसार वाराणसी में विद्या भारती के स्कूलों में कई मुस्लिम बच्चे हैं। यहां के भारतीय शिक्षा मंदिर (इंग्लिशिया लाइन) के प्रधानाचार्य के मुताबिक हाईस्कूल परीक्षा में स्कूल में टॉप करने वाले प्रथम पांच बच्चों में एक मुस्लिम छात्र भी है।

यानी, मुस्लिम बच्चे यहां सिर्फ पढ़ ही नहीं रहे बल्कि हिंदूू बच्चों के साथ कड़ी स्पर्धा में भी हैं। यह स्थिति सिर्फ वाराणसी में ही नहीं, प्रदेश के अन्य जिलों में भी है। मीरजापुर के चार विद्यालयों में 29 मुस्लिम बच्चे शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। मऊ के नौ विद्यालयों में लगभग दो दर्जन मुस्लिम बच्चे हैं। यही स्थिति इलाहाबाद, गोरखपुर, अंबेडकरनगर, फैजाबाद, कानपुर, मुरादाबाद, रामपुर, अलीगढ़, सहारनपुर आदि जिलों में भी है। साफ है कि विद्या भारती के स्कूलों में मुस्लिम बच्चे सिर्फ अपवाद स्वरूप नहीं पढ़ रहे बल्कि शिक्षा ग्रहण करने के मूल मकसद से दाखिला ले रहे हैं।

वाराणसी के सरस्वती शिशु मंदिर में पढ़ रहे मुहम्मद दिलशान व उनके अभिभावक अयूब कहते हैं कि गुरु व शिष्य के बीच शिक्षा के अलावा कोई और धर्म नहीं होता। शिक्षा के बहाने समाज में सांप्रदायिकता का जहर घोलने वालों के लिए यह हकीकत आईना है। धर्म व जातिवाद से परे रहकर शिक्षा को ही सवरेपरि मानने वाले ऐसे छात्रों का मकसद सिर्फ शिक्षित होकर अच्छा नागरिक बनना और देश का नाम रोशन करना ही है। शिक्षा का यही मकसद भी है। शायद, इसीलिए कई मदरसों में संस्कृत की शिक्षा दी जाती है। ऐसे प्रयासों से ही शिक्षा का संकल्प और धर्मनिरपेक्षता सही मायनों में जड़ें तलाशती है।

हम यदि अभी तक शिक्षा के बजाय साक्षरता के आंकड़े ही इकट्ठा कर रहे हैं तो इसके पीछे संकीर्णता भरी सोच ही प्रमुख कारण है। यदि विद्या भारती के इन स्कूलों और मदरसों की पढ़ाई से ऐसे ही सकारात्मक संदर्भ निकालकर समाज को प्रेरित किया जाए तो सही मायनों में हम शिक्षित समाज का निर्माण कर सकते हैं।

साभार : दैनिक जागरण सम्पादकीय पृष्ठ

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  1. 📌 मन की बात : सुखद संदर्भ इसीलिए कि यदि विद्या भारती के इन स्कूलों और मदरसों की पढ़ाई से ऐसे ही सकारात्मक संदर्भ निकालकर समाज को प्रेरित किया जाए तो सही..........
    👉 http://www.basicshikshanews.com/2016/06/blog-post_248.html

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