क्यों नहीं बनी सेवा नियमावली : मुख्य सचिव को व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल करने का निर्देश, मदरसों को लेकर सरकार की उदासीनता पर हाईकोर्ट खफा
विसं, इलाहाबाद : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने प्रदेश के अरबी-फारसी मदरसों के लिए सेवा नियमावली बनाने में राज्य सरकार की उदासीनता को दुर्भाग्यपूर्ण करार दिया है। कोर्ट ने कहा है कि 2004 में उप्र मदरसा शिक्षा परिषद अधिनियम पारित होने के 12 साल बीत जाने पर भी सेवा नियमावली नहीं बनायी जा सकी। सरकार ने निर्देशों की अनदेखी की।
कोर्ट में स्थिति को गंभीरता से लेते हुए प्रदेश के मुख्य सचिव को व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल करने का निर्देश देते हुए पूछा है कि धारा 24 के अंतर्गत नियमावली क्यों नहीं बनायी गयी। याचिका की अगली सुनवाई 25 मई को होगी।1यह आदेश न्यायमूर्ति अश्वनी कुमार मिश्र ने मदरसा जियाउल उलूम गोरखपुर के चतुर्थ श्रेणी कर्मी अशोक की याचिका पर दिया है। याचिका पर वरिष्ठ अधिवक्ता एएन त्रिपाठी व एके मिश्र ने बहस की। इनका कहना है कि याची वित्तीय सहायता प्राप्त प्राइवेट मदरसे में कर्मचारी है। प्रबंध समिति ने याची को बर्खास्त कर दिया।
बीएसए का कहना है कि मदरसा अल्पसंख्यक संस्था है ऐसे में कर्मी की बर्खास्तगी के अनुमोदन की आवश्यकता नहीं है। याची ने बर्खास्तगी को चुनौती दी है। सहायक निदेशक बेसिक शिक्षा गोरखपुर को प्रत्यावेदन निर्णीत करने का आदेश पारित हुआ। सहायक निदेशक ने बर्खास्तगी अवैध करार दी। जिसे प्रबंध समिति ने चुनौती दी है। याची ने वेतन की मांग में याचिका दाखिल की।
कोर्ट ने जानना चाहा कि कौन सी सेवा नियमावली लागू होगी। अलाउद्दीन की दूसरी याचिका पर भी कोर्ट ने सरकार से पूछा है कि सेवा नियमावली क्यों नहीं बनायी जा रही है। निबंधक मदरसा बोर्ड ने बताया कि सेवा नियमावली तैयार करने की प्रक्रिया जारी है। अल्पसंख्यक कल्याण निदेशक के समक्ष विचाराधीन है। इसके बाद कैबिनेट के समक्ष रखा जाएगा। कोर्ट ने डायरेक्टर को दो हफ्ते में निर्णय लेने का आदेश दिया था। इसके बावजूद कोई कार्यवाही न होने पर कोर्ट ने कड़ा रुख अपनाया है।
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