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एक छत के नीचे 'प्राइमरी का मास्टर' से जुड़ी शिक्षा विभाग की समस्त सूचनाएं एक साथ

आदेशों की पोटली में दबे हैं शिक्षक : काम के बोझ का मारा मास्टर बेचारा, शिक्षकों की टीस है कि विभाग और शासन का यह अविश्वास ठीक नहीं 

आदेशों की पोटली में दबे हैं शिक्षक : काम के बोझ का मारा मास्टर बेचारा, शिक्षकों की टीस है कि विभाग और शासन का यह अविश्वास ठीक नहीं 

फतेहपुर : दशकों पहले जब दूर दराज के गांवों में एक स्कूल होता था तो वहां समाज के सभी वर्गो के लोग अपने बच्चों को उसी सरकारी स्कूल में भेजते थे। वहां मौजूद शिक्षक अपनी कर्तव्यपरायणता और निष्ठा से क्षेत्र में प्रतिष्ठा हासिल करता था। अभिभावकों और विभाग ने शिक्षकों को शिक्षा क्षेत्र में नए प्रयोगों और उन्नयन के लिए पूरी आजादी दी थी। शिक्षकों के पास न तो मिड डे मील था और न ही पोलियो। न तो डीएम साहब का डर था और न ही विभाग के हाकिम का। इन्हीं सरकारी स्कूलों के बच्चे आगे चलकर बड़े पदों पर आसीन हुए। अब मामला उलट गया है।

 स्कूलों में शिक्षकों को पहले से ही आदेशों की पोटली थमा दी गई है। बता दिया गया है कि आज यह दिवस है, कल वह दिवस है। कैलेण्डर के मुताबिक इस तारीख को स्वास्थ्य दिवस है तो उस तारीख को स्वच्छता दिवस है। शिक्षक कई औपचारिकताओं और गैर सरकारी कार्यो के बीच उलझ कर रह गए हैं। ऐसा लगता है कि उनकी काबिलियत और उत्साह कहीं खो से गए हैं। हर समय डरा और सहमा बेसिक शिक्षक। उसे मानीटर बनाकर अधिकारी और विभाग रिमोट कंट्रोल से चलाया जा रहा है। हेडमास्टरों के पास अब सीएल देने का भी अधिकार शेष नहीं है। जिले में बेसिक शिक्षकों के हालातों की पड़ताल करती एक रिपोर्ट..

 स्वास्थ्य दिवस

 आखिरी शनिवार को जन्मदिन

 शासन के शैक्षिक कैलेण्डर का पालन

 शिक्षकों के गैर शैक्षणिक कार्यो ने बढ़ाई मुश्किलें

 आदेशों की पोटली में दबे हैं शिक्षक

 स्कूलों में होती हैं यह गतिविधियां

  हैण्डवाश डे

  विभाग द्वारा दिए गए प्रश्नों को याद कराना

 काम के बोझ का मारा,मास्टर बेचारा

 प्रत्येक माह की पहली और पंद्रहवीं तारीख को झंडारोहण कर राष्ट्रप्रेम दिवस का आयोजन

 औपचारिकताओं को पूरा करने में गुम होने लगा उत्साह

 अभिभावक संपर्क दिवस

 प्रत्येक दिन 18 संकल्पों को बताना

 बच्चों को घरों से बुलाना

 शिक्षक के पास चपरासी, क्लर्क, ठेकेदार समेत कई के काम

 डीएम और विभागीय आदेशों के बीच कहीं खो गई शिक्षा

स्कूल चलो अभियान

 स्कूलों की सफाई कराना

🌕 काम ही काम

1-बालगणना 

2-स्कूल चलो अभियान 

3-छात्रवृत्ति के फार्म भराना 

4-बच्चों के बैंकों में अकाउन्ट खुलवाना 

5-ड्रेस वितरण कराना

6-मिड डे मील बनवाना 

7-निर्माण कार्य कराना 

8-एसएमसी की बैठक कराना 

9-पीटीए की बैठक कराना 

10-एमटीए की बैठक कराना 

11-ग्राम शिक्षा समिति की बैठक 

12-रसोइयों का चयन कराना 

13-लोक शिक्षा समिति के खाते का प्रबंधन 

14-एसएमसी के खाते का प्रबंधन 

15- मिड डे मील के खाते का प्रबंधन 

16-ग्राम शिक्षा निधि के खाते का प्रबंधन 

17-बोर्ड परीक्षा में ड्यूटी करना 

18- पोलियों कार्यक्रम में प्रतिभाग करना 

19- बीएलओ ड्यूटी में प्रतिभाग करना 

20-चुनाव ड्यूटी करना 

21- जनगणना करना 

22-संकुल की सप्ताहिक और बीआरसी की मासिक मीटिंग में भाग लेना 

23- अन्य विद्यालय अभिलेख तैयार करना 

24- विद्यालय की रंगाई पुताई कराना 

25-रैपिड सर्वे कराना

जनपद के बेसिक शिक्षकों के चेहरों में तैर रही बेचैनी को साफ देखा जा सकता है। स्कूल जाओ तो शिक्षक औपचारिकता कराते साफ देखे जा सकते हैं। स्कूलों में टीएलएम (टीचर लर्निग मैटेरियल) की जगह अधिकारियों के आदेश साफ देखे जा सकते हैं। शिक्षक और हेडमास्टरों के हाथ में अब कुछ भी नहीं है। सब कुछ तिथिवार पहले से तय हैं। साफ बता दिया गया है कि आज यह करना है, कल वह करना है। पूरा दिन इसी उधेड़बुन में गुजर रहा है।

डीएम राजीव रौतेला ने कई आदेश जारी कर स्कूली शिक्षा की गुणवत्ता और माहौल सुधारने के लिए एक के बाद एक आदेश जारी कर दिए। इसके अलावा शासन और विभागीय स्तर पर भी स्कूलों में होने वाले कई आयोजनों के बाबत पूर्व में ही आदेश दिए जा चुके हैं। माह के कई दिन इन्हीं औपचारिकताओं को पूरा करने और अधिकारियों को दिखाने के लिए उनका अभिलेखीकरण मे बीत रहे हैं।

 नौनिहालों के साथ स्वस्थ तन और मन से वक्त गुजारने के लिए सहमे शिक्षकों के पास वक्त नहीं है। अभी हाल ही में शासन ने एक शैक्षिक कैलेण्डर जारी कर स्कूलों की तिथिवार गतिविधियां तय कर दी हैं। न तो शासन स्तर पर और न ही विभागीय स्तर पर शिक्षकों और प्रधानाध्यापकों के विवेक पर कुछ नहीं छोड़ा गया है। 

इसलिए दिख जाती है संख्या 

बेसिक शिक्षकों का कहना है कि सभी शिक्षक कामचोर नहीं हैं। अन्य विभागों में करीब दस प्रतिशत लोग कामचोर होते हैं। दूसरे विभागों के निरीक्षण में भी आए दिन कर्मचारी और अधिकारी गैरहाजिर मिलते हैं, लेकिन उनका दस प्रतिशत काफी कम होता है। जिले में करीब पांच हजार शिक्षकों का दस प्रतिशत पांच सौ होता है। यह संख्या निरीक्षण के दौरान काफी बड़ी दिखती है। शिक्षकों की टीस है कि विभाग और शासन का यह अविश्वास ठीक नहीं है।

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1 Comments

  1. 📌 आदेशों की पोटली में दबे हैं शिक्षक : काम के बोझ का मारा मास्टर बेचारा, शिक्षकों की टीस है कि विभाग और शासन का यह अविश्वास ठीक नहीं 
    👉 http://www.basicshikshanews.com/2016/05/blog-post_85.html

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