कांपी न किताब चल रही कक्षाएं : नई कक्षा में पहुंचे बच्चे बगैर कॉपी व किताब के ज्ञान अर्जित कर रहे हैं, जिससे शिक्षा की गुणवत्ता का अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता
सीतापुर : बेसिक शिक्षा का हाल भगवान भरोसे है। तुलनात्मक दृष्टि से विभाग सीबीएसई व आइसीएसई बोर्ड के साथ कदमताल करने को उतावला है, मगर सुविधाओं में वह मीलों पीछे है। परिषदीय विद्यालयों में शिक्षण कार्य शुरू हो गया है, लेकिन विभाग द्वारा अभी तक किताबों की छपाई शुरू नहीं कराई जा सकी है। ऐसे में नई कक्षा में पहुंचे बच्चे बगैर कॉपी व किताब के ज्ञान अर्जित कर रहे हैं, जिससे शिक्षा की गुणवत्ता का अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है।
बेसिक शिक्षा विभाग के जिम्मेदार सीबीएसई व आइसीएसई बोर्ड से प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं। हैरानी की बात तो यह है कि विभाग के पास सुविधाएं तो इन बोडरें से अधिक हैं, मगर पूरा सिस्टम फेल है। मार्च माह में परीक्षाएं संपन्न कराकर बेसिक शिक्षा विभाग ने अप्रैल माह में परीक्षा का परिणाम भी घोषित करके दौड़ में तो बराबर रहा, मगर अभी तक किताबें व कॉपियां न होने से शिक्षण कार्य प्रभावित हो रहा है। नई कक्षाओं में पहुंचे बच्चों को बगैर कॉपी व किताबों के किताब ज्ञान कैसे दिया जा रहा होगा, इसका अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है। दूसरी कक्षा का छात्र नए शिक्षण सत्र में तीसरी क्लास में पहुंच तो गया, लेकिन उसके पास पढ़ने-लिखने के संसाधन ही नही हैं। सूत्रों की माने तो विभाग द्वारा अभी तक किताबों की छपाई का कार्य ही नहीं शुरू कराया जा सका है। बता दें कि परिषदीय विद्यालयों में किताबों से लेकर ड्रेस तक विभाग द्वारा मुहैया कराई जाती हैं, जिसके चलते दुकानों पर भी यह कोर्स उपलब्ध नही हैं। ऐसे में नौनिहालों को मिलने वाली शिक्षा व शैक्षिक माहौल कैसा होगा यह सर्वविदित है।
नई कक्षाओं में पहुंचे बच्चों को पुराने छात्रों से किताबें लेकर शिक्षण कार्य कराया जा रहा है। विभाग द्वारा किताबों मुहैया कराए जाने पर बच्चों को नि:शुल्क किताबें वितरित की जाएंगी।
-राजेंद्र सिंह, बीएसए
चार घंटे की शिक्षा उसमें भी भोजन : प्रार्थना से लेकर मध्याह्न भोजन में ही गुजर रहा वक्त
🌑 कोचिंग के समय तक ही संचालित हो पा रहे विद्यालय
सीतापुर : बदन झुलसाती धूप और लू के थपेड़ों ने बच्चों की पढ़ाई पर प्रतिकूल असर डाला है। प्रशासन ने नौनिहालों की परेशानी को देखते हुए स्कूल बंद होने का समय कम कर दिया है, मगर इन चार घंटों में बच्चे कैसे शिक्षित होंगे इसका जवाब किसी के पास नही है। स्कूल खुलने के समय प्रार्थना के बाद अधिकांश समय गुरुजन का मध्याह्न भोजन की देखरेख व बच्चों को खिलाने में गुजर जाता है। ऐसे में परिषदीय विद्यालयों की शिक्षा खिलवाड़ बनकर रह गई है।
बताते चलें कि परिषदीय समेत अधिकांश विद्यालयों के खुलने का समय छह घंटे होता था। बीते शिक्षण सत्र में भी छह घंटे विद्यालय खुले। समय से पहले गर्मी पड़ने से एक माह पूर्व सुबह सात बजे से दिन के 12 बजे तक स्कूल कर दिए गए। पांच घंटे की पढ़ाई का समय छात्रों को मिलने से कुछ हद तक राहत मिली। तापमान चढ़ने से बच्चे पसीने से लथपथ हुए तो जिला प्रशासन ने स्कूल बंद होने का समय कम कर दिया। प्रशासन के इस निर्णय से छात्रों को राहत तो मिली मगर इसका असर उनकी शिक्षा पर पड़ने लगा। देर से स्कूल पहुंचने के आदी हो चुके परिषदीय विद्यालयों के गुरुजन चार घंटे का समय भी छात्रों को भी नहीं दे पा रहे हैं। देर से स्कूल खुलने का सिलसिला अब भी जारी है। सुबह आधे घंटे से अधिक समय प्रार्थना व हाजिरी लगाने में गुजर जाता है। इसके बाद गुरुजी को मध्याह्न भोजन के लिए सब्जी व अन्य सामान लाना पड़ता है। शिक्षण कार्य शुरू हो सके इससे पूर्व मध्याह्न भोजन का समय हो जाता है। बच्चों को खिलाने व कक्षा तक पहुंचाने में भी तकरीबन पौन घंटे का वक्त जाया होता है। ऐसे में विद्यालय में महज ढाई घंटे की की पढ़ाई हो रही है।
स्कूलों में गुणवत्तापरक शिक्षा दी जाए इसके लिए मैं प्रयास करना शुरू करूंगा। स्कूल सुबह सात बजे खुलने हैं तो सात बजे से ही खुलें, इसमें लापरवाही बर्दाश्त नहीं की जाएगी।
-राजेंद्र सिंह, बीएसए
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📌 कांपी न किताब चल रही कक्षाएं : नई कक्षा में पहुंचे बच्चे बगैर कॉपी व किताब के ज्ञान अर्जित कर रहे हैं, जिससे शिक्षा की गुणवत्ता का अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता
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