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एक छत के नीचे 'प्राइमरी का मास्टर' से जुड़ी शिक्षा विभाग की समस्त सूचनाएं एक साथ

मन की बात : कम खर्च में शिक्षा को निपटाने का उपक्रम, आखिर हमें चाहिए क्या? बेशक इन मुल्कों ने शिक्षा पर पर्याप्त खर्च किया है, जबकि भारत अभी निवेश व निर्माण कार्य के दौर से गुजर रहा, पढ़ाने व सिखाने के लिए जरूरी वस्तुओं, शिक्षकों व प्राचार्यों के प्रशिक्षण जैसे मसलों पर होने वाले खर्च में......

मन की बात : कम खर्च में शिक्षा को निपटाने का उपक्रम, आखिर हमें चाहिए क्या? बेशक इन मुल्कों ने शिक्षा पर पर्याप्त खर्च किया है, जबकि भारत अभी निवेश व निर्माण कार्य के दौर से गुजर रहा, पढ़ाने व सिखाने के लिए जरूरी वस्तुओं, शिक्षकों व प्राचार्यों के प्रशिक्षण जैसे मसलों पर होने वाले खर्च में......

शिक्षा पर भारत को कितना खर्च करना चाहिए? कोठारी आयोग की अनुशंसा थी कि सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी का छह फीसदी हिस्सा शिक्षा पर खर्च होना चाहिए। 1986 की नई शिक्षा नीति और 1992 में इसमें हुए संशोधन में छह फीसदी से अधिक की वकालत की गई। उसके बाद से कोई नई शिक्षा नीति तो नहीं बनी है, मगर हर बदलती सरकार ने छह फीसदी की बात जरूर कही है।

हालांकि भारत कभी इस लक्ष्य तक नहीं पहुंच सका। वर्ष 2001 में सबसे अधिक 4.4 फीसदी हिस्सा शिक्षा पर खर्च किया गया था, मगर 1980 के दशक के बाद से यह खर्च 3.3 फीसदी और 3.8 फीसदी के बीच ही झूलता रहा है, और अभी 3.8 फीसदी है। पिछले कुछ वर्षों से छह फीसदी का यह खर्च दुनिया भर में एक मानक के रूप में उभरा है। पर भारत इसमें कहां है? आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (ओईसीडी) के सदस्य देश शिक्षा पर जीडीपी का औसतन 5.4 फीसदी खर्च करते हैं, जबकि ब्राजील 5.8 फीसदी। यह अंतर दशकों से है।

आखिर हमें चाहिए क्या? बेशक इन मुल्कों ने शिक्षा पर पर्याप्त खर्च किया है, जबकि भारत अभी निवेश व निर्माण कार्य के दौर से गुजर रहा है। फिर भी, शिक्षकों की शिक्षा, भौतिकी व समाज विज्ञान, मानविकी और व्यावसायिक शिक्षा जैसे कई क्षेत्रों में हमने बमुश्किल ही खर्च किया है। दूसरी कमी शिक्षकों के वेतन व कई अन्य बुनियादी जरूरतों से जुड़ी है। अभी कई राज्यों में शिक्षक की नियुक्ति नहीं हो रही, बल्कि बहुत कम तनख्वाह पर उनसे अनुबंध किया जा रहा है। शिक्षा तंत्र को बेहतर बनाने के लिए हमें वास्तव में जितना बजट चाहिए, कई राज्य उसमें कटौती कर रहे हैं।

पढ़ाने व सिखाने के लिए जरूरी वस्तुओं, शिक्षकों व प्राचार्यों के प्रशिक्षण जैसे मसलों पर होने वाले खर्च में भी कटौती की जा रही है। तीसरा मुद्दा उन बच्चों का है, जिन तक शिक्षा की लौ पहुंचनी चाहिए। छह से 21 वर्ष के आयु-वर्ग के बच्चे भारत की कुल आबादी के 29 फीसदी हैं, जबकि यह आंकड़ा ओईसीडी के लिए 18 फीसदी व ब्राजील के लिए 23 फीसदी है। यानी भारत को बहुत अधिक बच्चों को पढ़ाना है, और इसके लिए स्वाभाविक तौर पर अधिक पैसे चाहिए।

लिहाजा एक ऐसे दौर में, जब अर्थव्यवस्था को अधिक दक्ष व योग्य श्रम-बल की जरूरत है और शिक्षा से सामाजिक उम्मीदों के परवान चढ़ने की बात कही जा रही है। साफ है कि हमें वर्तमान से अधिक निरंतरता से सार्वजनिक खर्च बढ़ाना होगा, जो संभवत: जीडीपी की छह फीसदी से अधिक हो। मगर यह भारत में तब तक संभव नहीं है, जब तक टैक्स और जीडीपी का अनुपात न सुधरे। भारत में जीडीपी में टैक्स का अनुपात 18 फीसदी है, जबकि ओईसीडी और ब्राजील में 35 फीसदी। स्वाभाविक तौर पर ये कमियां राजनीतिक पहल से खत्म होंगी, इसलिए हम आम लोगों को भी आगे बढ़ने की जरूरत है।
- अनुराग बहर, सीईओ, अजीम प्रेमजी फाउंडेशन
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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  1. 📌 मन की बात : कम खर्च में शिक्षा को निपटाने का उपक्रम, आखिर हमें चाहिए क्या? बेशक इन मुल्कों ने शिक्षा पर पर्याप्त खर्च किया है, जबकि भारत अभी निवेश व निर्माण कार्य के दौर से गुजर रहा, पढ़ाने व सिखाने के लिए जरूरी वस्तुओं, शिक्षकों व प्राचार्यों के प्रशिक्षण जैसे मसलों पर होने वाले खर्च में......
    👉 http://www.basicshikshanews.com/2016/05/blog-post_328.html

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  2. 📌 मन की बात : कम खर्च में शिक्षा को निपटाने का उपक्रम, आखिर हमें चाहिए क्या? बेशक इन मुल्कों ने शिक्षा पर पर्याप्त खर्च किया है, जबकि भारत अभी निवेश व निर्माण कार्य के दौर से गुजर रहा, पढ़ाने व सिखाने के लिए जरूरी वस्तुओं, शिक्षकों व प्राचार्यों के प्रशिक्षण जैसे मसलों पर होने वाले खर्च में......
    👉 http://www.basicshikshanews.com/2016/05/blog-post_328.html

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