शिक्षा की गुणवत्ता पर उठ रहे सवाल, प्राइवेट स्कूलों में पढ़ने को मजबूर है नौनिहाल : आम आदमी में यह धारणा सरकारी स्कूलों में पढ़ाई के अलावा सब कुछ मिलता है, गुरूजी से लेकर सरकारी स्कूलों की व्यवस्था देखने वाले अधिकारियों के भ्रष्टाचार व कार्य के प्रति समर्पण की कमी से उपजी स्थिति
डेली न्यूज़ नेटवर्कमोहम्मदी-खीरी। बेसिक स्कूलों का बुरा हाल, प्राइवेट स्कूलों में पढ़ने को मजबूर है नौनिहाल। एक तरफ जहां प्रदेश सरकार सब पढे़, सब बढ़े, शिक्षा है अनमोल रतन, पढ़ने का सब करो जतन जैसे नारे देकर सबको शिक्षा लेने के लिए प्रेरित कर रही है। बेसिक शिक्षा पर अरबों रुपए का बजट प्रति वर्ष खर्च होता है। नए शिक्षकों की भर्ती सहित तमाम सुविधाएं जैसे मध्याहन भोजन, किताबें, फल, दूध आदि छात्रों को मुहैया कराया जाता है लेकिन आम आदमी अपने पाल्यों को सरकारी स्कूलों की जगह प्राइवेट स्कूलों में भेज रहा है।
आम धारणा है कि सरकारी स्कूलों में पढ़ाई के अलावा सब कुछ मिलता है। आम आदमी में यह धारणा गुरूजी से लेकर सरकारी स्कूलों की व्यवस्था देखने वाले अधिकारियों के भ्रष्टाचार व कार्य के प्रति समर्पण की कमी से उपजी है। क्षेत्र के सरकारी बेसिक स्कूलों की दशा खराब है। स्कूल समय से न खुलना, अध्यापकों का देरी से स्कूल पहुंचना, बिना अवकाश के गायब रहना, मानक के अनुरूप मध्याहन भोजन न मिलना, स्कूलों में गन्दगी रहना, सफाईकर्मी का महीनों स्कूल में न जाना, पीने के पानी की व्यवस्था तमाम स्कूलों में न होना और सबसे बड़ी बात गुरूजी द्वारा स्कूल आने वाले छात्रों को ठीक प्रकार से मन लगाकर शिक्षा न देना। यह कुछ ऐसे कारण है जिससे आम आदमी का सरकारी स्कूलों से मोहभंग होता जा रहा है।
आखिर क्या कारण है कि 35 हजार रुपए प्रतिमाह पाने वाले, उच्च शिक्षित गुरूजी छात्रों को वह शिक्षा नहीं दे पाते जो हजार दो हजार रुपए पाने वाला प्राइवेट स्कूल का अध्यापक देता है। सरकारी स्कूलों में रजिस्टर में दर्ज छात्रों की संख्या व प्रतिदिन स्कूल आने वाले छात्रों की संख्या में भारी अन्तर होता है। कुल मिलाकर सरकार का अरबों रुपया सरकारी स्कूलों की दशा को सुधारने पर प्रति वर्ष खर्च हो रहा है लेकिन अधिकारियों व गुरूजी की लापरवाही से स्कूलों में कोई सुधार नहीं हो रहा है।
आपको बता दें कि 30-35 हजार रुपए की भारी भरकम सैलरी पाने वाले गुरूजी का आलम यह है कि गुरूजी कभी समय पर स्कूल नहीं पहुंचते है। जब स्कूल जाते भी है तो आराम से कुर्सी पर टांगें फैलाकर आराम फरमाते हैं या मोबाइल पर बिजी रहते है। तमाम नये प्रशिक्षु शिक्षकों की भर्ती के बाद स्कूलों में शिक्षा देने के समय में मोबाइल पर अपने खास व घर वालों का हाल चाल लेने का चलन जोर पकड़ता दिख रहा है। सरकारी स्कूलों में शिक्षा का आलम यह है कि कक्षा पांच के बच्चे को नौ का पहाड़ा भी शायद ही याद हो।
फिलहाल गुरूजी की बच्चों को शिक्षित करने की इस लापरवाही से तमाम आला अधिकारी जान का भी अंजान बने हैं तथा ड्रेस, मध्याह्न भोजन सहित तमाम योजनाओं की बहती गंगा में अपने हाथ धो रहे हैं।
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📌 शिक्षा की गुणवत्ता पर उठ रहे सवाल, प्राइवेट स्कूलों में पढ़ने को मजबूर है नौनिहाल : आम आदमी में यह धारणा सरकारी स्कूलों में पढ़ाई के अलावा सब कुछ मिलता है, गुरूजी से लेकर सरकारी स्कूलों की व्यवस्था देखने वाले अधिकारियों के भ्रष्टाचार व कार्य के प्रति समर्पण की कमी से उपजी स्थिति
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