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एक छत के नीचे 'प्राइमरी का मास्टर' से जुड़ी शिक्षा विभाग की समस्त सूचनाएं एक साथ

आरटीई एक्ट (RTE) के तहत गरीब बच्चों के लिए निर्धारित सीटों का 1% भी न भरने से विशेषज्ञ चिंतित : प्रशासनिक इच्छाशक्ति से ही लागू होगा शिक्षा का अधिकार, ‘नेबरहुड’ के दायरे में हो बदलाव

आरटीई एक्ट (RTE) के तहत गरीब बच्चों के लिए निर्धारित सीटों का 1% भी न भरने से विशेषज्ञ चिंतित : प्रशासनिक इच्छाशक्ति से ही लागू होगा शिक्षा का अधिकार, ‘नेबरहुड’ के दायरे में हो बदलाव

लखनऊ। निशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम-2009 (आरटीई एक्ट) के तहत निजी स्कूलों में गरीब बच्चों को दाखिला न मिल पाने को विशेषज्ञ बड़ी प्रशासनिक विफलता बता रहे हैं। उनका कहना है कि समाज में गरीब और अमीर के बीच बढ़ती खाई को पाटने के लिए जरूरी है कि गरीब बच्चों को भी महंगे पब्लिक स्कूलों में पढ़ने का मौका मिले। इसलिए आरटीई एक्ट लागू न करने वाले स्कूलों पर सख्ती बहुत जरूरी है, ताकि मौजूदा सामाजिक स्थिति में बदलाव लाया जा सके।

लखनऊ विश्वविद्यालय में शिक्षाशास्त्र विभाग के प्रो. यूसी वशिष्ठ कहते हैं कि समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाने के लिए नए प्रयोग बहुत जरूरी हैं। आरटीई एक्ट के तहत इसी दिशा में पहल की गई है। नियम है कि निजी स्कूलों में 25 फीसदी तक सीटें गरीब और कमजोर तबकों के बच्चों से भरी जाएंगी। आरटीआई एक्ट में साफ कहा गया है कि गरीब बच्चों के लिए निर्धारित 25 फीसदी सीटें उन्हीं से भरने की प्राथमिक जिम्मेदारी निजी स्कूलों की है। अब ये स्कूल कह रहे हैं कि उनके एक किलोमीटर दायरे में बच्चे हैं ही नहीं। इसके लिए जरूरी है कि शिक्षा विभाग सर्वे कराए। साथ ही यह नियम भी बनाया जाए कि एक किलोमीटर के दायरे के सभी गरीब बच्चों के दाखिले के बाद भी उनके लिए निर्धारित सभी सीटें नहीं भरती हैं, तो उस सीमा से बाहर के बच्चे भी स्कूल में दाखिला ले सकते हैं। 

प्रो. वशिष्ठ कहते हैं कि एक्ट लागू होने के बाद निजी स्कूलों की यह संवैधानिक जिम्मेदारी है कि अपनी 25 फीसदी सीटें गरीब बच्चों से भरें। अगर वे ऐसा नहीं करते हैं तो प्रशासन को दृढ़ इच्छाशक्ति का परिचय देना होगा। इसमें गड़बड़ करने वाले स्कूलों के खिलाफ सख्ती करनी होगी।

 

आरटीई के क्षेत्र में काम कर रही संस्था ‘स्कोर’ के संयोजक विनोद कुमार सिन्हा कहते हैं, नियमानुसार निजी स्कूलों में गरीब बच्चों के लिए 6 लाख से ज्यादा सीटें हैं, लेकिन छह हजार बच्चों को भी दाखिला नहीं मिला। यानी, निर्धारित सीटों का एक फीसदी हिस्सा भी गरीब बच्चों को नहीं मिल पा रहा है। नियम है कि सरकारी स्कूल में कक्षा-1 में तीस बच्चों की संख्या पूरी होने पर उसके बाद आने वाले बच्चों को निजी स्कूलों में भेजा जा सकता है। गरीब अभिभावकों को नियमों की जानकारी नहीं होती और जिन्हें जानकारी है भी, वे इस स्थिति में नहीं हैं कि निजी स्कूलों के प्रबंधन से अपनी बात मनवा सकें। वह कहते हैं कि अगर ढंग से सर्वे हो तो निजी स्कूल के एक किलोमीटर दायरे में भी काफी बच्चे निकल सकते हैं।

‘नेबरहुड’ के दायरे में हो बदलाव

कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि इस एक्ट के तहत निजी स्कूलों के लिए ‘पड़ोस की सीमा (नेबरहुड)’ की परिभाषा में बदलाव की भी जरूरत है। निजी स्कूल के एक किलोमीटर दायरे में काम करने वाले अभिभावकों के बच्चों को भी इस परिभाषा के तहत लाना चाहिए, भले ही वे कहीं और रहते हों।

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  1. 📌 आरटीई एक्ट (RTE) के तहत गरीब बच्चों के लिए निर्धारित सीटों का 1% भी न भरने से विशेषज्ञ चिंतित : प्रशासनिक इच्छाशक्ति से ही लागू होगा शिक्षा का अधिकार, ‘नेबरहुड’ के दायरे में हो बदलाव
    👉 http://www.basicshikshanews.com/2016/03/rte-1.html

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