दाखिले को सरकारी स्कूल भी करेंगे मशक्कत : हाईकोर्ट में दायर जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने बीते सप्ताह यह शासनादेश रद्द कर दिया
लखनऊ। हाईकोर्ट द्वारा निशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा का अधिकार (आरटीई) अधिनियम संबंधी शासनादेश रद्द करने के बाद सरकारी स्कूल भी निजी स्कूलों के साथ एडमिशन के लिए होड़ करते नजर आएं तो बड़ी बात नहीं होगी। राज्य सरकार द्वारा जारी आदेश में सरकारी स्कूलों की सीट भरने के बाद ही निजी स्कूलों में 25 फीसदी सीटों पर गरीब बच्चों को निशुल्क दाखिला दिलाने की व्यवस्था की गई थी। शिक्षा के खराब स्तर की वजह से मजबूरी में ही अभिभावक अपने बच्चों को सरकारी स्कूल में भेजते हैं। हाईकोर्ट द्वारा शासनादेश रद्द होने के बाद सरकारी स्कूलों की सीट भरने की अनिवार्यता खत्म हो गई है। अब उन्हें भी सीटें भरने के लिए मशक्कत करनी पड़ सकती है।
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वर्ष 2010 में आरटीई एक्ट लागू होने के बाद से शासनादेश की कमियों की वजह से गरीब बच्चों को निजी स्कूल में दाखिला नहीं मिल पा रहा था। अधिनियम में साफ व्यवस्था है कि हर स्कूल को उसके यहां की 25 फीसदी सीटों पर गरीब बच्चों को निशुल्क दाखिला देना है। इसके बावजूद शासनादेश में निजी स्कूलों को 25 फीसदी सीटों पर निशुल्क दाखिले करना अनिवार्य नहीं किया गया है। इसके बजाय निजी स्कूलों में दाखिले के लिए दो स्थिति तय की गईं। पहली सूरत यह थी कि उस क्षेत्र में एक भी सरकारी स्कूल न हो और दूसरी यह कि सरकारी स्कूल में सीट खाली न हों। इस वजह से सरकारी स्कूलों की सीट फुल हुए बगैर निजी स्कूलों में निशुल्क दाखिला संभव नहीं था।
इन शर्तों की वजह से बीते पांच साल में राजधानी के 98 स्कूलों में केवल 679 दाखिले ही हो पाए। इस संबंध में दायर जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने बीते सप्ताह यह शासनादेश रद्द कर दिया है। अब अभिभावकों को बच्चे को सरकारी स्कूल में दाखिला दिलाने की मजबूरी नहीं होगी। इसके बजाय वे बच्चे की पसंद के निजी स्कूलों में दाखिला दिला सकेंगे ।
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