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मन की बात : बच्चों को पढ़ने के लिए कैसे प्रेरित करें?बच्चे किसी चीज़ को खेल-खेल में सीखने का आनंद लेते हैं, मगर जब बात सीखने के..........

मन की बात : बच्चों को पढ़ने के लिए कैसे प्रेरित करें?बच्चे किसी चीज़ को खेल-खेल में सीखने का आनंद लेते हैं, मगर जब बात सीखने के..........

बच्चे किसी चीज़ को खेल-खेल में सीखने का आनंद लेते हैं। मगर जब बात सीखने के लिए मेहनत करने की हो तो कुछ बच्चे बचने की कोशिश करते हैं। इस पोस्ट में इसी पहलू की तरफ ध्यान देने की कोशिश कर रहे हैं।



एक सरकारी स्कूल में एनसीईआरटी की रीडिंग सेल द्वारा छापी गयी किताबें पढ़ते बच्चे।

एक स्कूल में बच्चों की भाषा सीखने के मामले में तेज़ी से ग्रोथ हो रही थी। वे अक्षरों को बड़ी तेज़ी से पहचान रहे थे। कुछ बच्चे मात्राओं को पहचानने में बाकी बच्चों को भी पीछे छोड़कर तेज़ी से आगे निकल रहे थे। इसमें से एक बच्चे ने पूरी बारहखड़ी याद कर ली। जबकि अन्य बच्चों ने मात्राओं के कांसेप्ट को समझते हुए, आगे बढ़ने का प्रयास किया।

आज की तारीख में उस बच्चे के पढ़ने का प्रवाह सबसे अच्छा है, जिसने मात्राओं के कांसेप्ट को समझते हुए शब्दों को पढ़ने में अपनी क्षमता का बहुत अच्छे से विकास किया। ऐसे बच्चे वाक्यों को बहुत आसानी से पढ़ पा रहे हैं।

जबकि अन्य बच्चे अक्षरों में मात्राओं के बाद लगने वाले बदलाव को समझने की दिशा में बढ़ रहे हैं और शब्दों को एक-साथ पढ़ने की बजाय अटक-अटक कर पढ़ रहे हैं। मगर धीरे-धीरे पठन सामग्री का स्तर बढ़ रहा है, ऐसे में वे बाकी बच्चों के साथ-साथ आगे नहीं बढ़ पा रहे हैं। उनके लिए कुछ अलग योजना की जरूरत महसूस हो रही है। निरंतर अभ्यास प्रायः योग्यता से अधिक श्रेष्ठ सिद्ध होता है, यह बात भी देखने को मिल रही है।

खुद से पढ़ना है जरूरी

जिन स्कूलों में बच्चे खुद से पढ़ने में रुचि ले रहे हैं, पुस्तकालय की किताबों से एक रिश्ता बना रहे हैं, बाकी बच्चों से एक प्रतिस्पर्धा और सहयोग वाले भाव से पेश आ रहे हैं, उनके सीखने की रफ्तार बहुत तेज़ है। बाकी स्कूलों में ऐसा करने के लिए जरूरी है कि क्लास में बच्चों के पढ़ने की आवाज़े सुनाई दें। बच्चे ख़ुद से बैठकर शब्दों और वाक्यों को पढ़ने की कोशिश करें। एक अन्य स्कूल में बच्चों ने खुद से अपने स्तर के अनुरूप पहले अक्षरों और फिर शब्दों को पढ़ने का प्रयास किया।
जबकि दूसरे स्कूल में बच्चे पढ़ने से बचने का प्रयास कर रहे हैं। इसका असर उनकी ग्रोथ पर भी दिखाई दे रहा है। वे शिक्षक के सामने तो पढ़ते हैं, मगर ख़ुद से पढ़ने वाली बात आते ही पीछे हट जाते हैं। यानि अन्य कामों में दिलचस्पी लेने लगते हैं। ऐसी स्थिति का एक ही समाधान हो सकता है कि बच्चों को लायब्रेरी से वे किताबें दी जाएं जो उनके वर्तमान पठन स्तर के आसपास की हों। इससे उनको ख़ुद से पढ़ना सीखने की दिशा में नये सिरे से प्रेरित किया जा सकता है।

पहली क्लास के बच्चों की मौजूदगी से अगर लायब्रेरी में थोड़ी सी आपाधापी होती है तो उसके लिए शिक्षक को तैयार रहना चाहिए। क्योंकि आखिरकार बच्चों को पढ़ना सीखने की दिशा में आगे बढ़ाने के लिए माहौल का निर्माण करने की जिम्मेदारी तो अंततः भाषा शिक्षक और पुस्तकालय वाले शिक्षक के ऊपर हीआती है। बच्चों को कहानी सुनाना, बालगीत करने और जो भाषा वे सीख रहे हैं, उसमें संवाद करने का भरपूर मौका देकर इस समस्या का समाधान किया जा सकता है।

 साभार : http://educationmirror.org/2016/02/29/how-to-motivate-children-for-independent-reading-in-school/ 

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