मन की बात : पीएफ की सेफ मनी पर गड़ीं सरकार की नजरें क्योंकि सरकार चाहती है, लोग पेंशन स्कीम की तरफ भी मुड़ें, शायद इसी वजह से एनपीएस को थोड़ा ऊपर और ईपीएफ को थोड़ा.........
कॉमन रूम
सरकार चाहती है, लोग पेंशन स्कीम की तरफ भी मुड़ें, शायद इसी वजह से एनपीएस को थोड़ा ऊपर और ईपीएफ को थोड़ा नीचे करने की कोशिश की गई है ।
हल्ला होना था, हुआ। पीएफ की निकासी पर लगने वाले टैक्स का मुद्दा बजट का सबसे अहम पॉइंट बन गया और नौकरीपेशा लोगों को इससे घोर निराशा हुई। आनन-फानन सरकार को स्पष्टीकरण देना पड़ा कि टैक्स पीपीएफ से विड्रॉ की जाने वाली रकम पर नहीं लगेगा, ईपीएफ से निकाली जाने वाली रकम पर लगेगा और वह भी कुछ कंडिशंस के साथ। मसलन 1 अप्रैल 2016 के बाद ईपीएफ में होने वाले 60 फीसदी कॉन्ट्रिब्यूशन के इंटरेस्ट पर टैक्स लगेगा। इसमें भी जिन सैलरीड लोगों की मंथली सैलरी 15 हजार या उससे कम है, उन्हें इस नए नियम से बाहर रखा गया है। स्पष्टीकरण भले ही आ गया, लेकिन यह बिल्कुल साफ है कि इस बजट में सरकार ने लोगों के रिटायरमेंट के सबसे भरोसेमंद साथी पीएफ की रकम पर अपनी कमाऊ नजरें गड़ा दी हैं। पीएफ के तौर पर जमा हो रही रकम को अपने यहां एक ऐसे टूल के तौर पर देखा जाता है, जिसके जरिए बिना कुछ किए लोगों की रिटायरमेंट प्लानिंग होती रहती है। जो लोग रिटायरमेंट के लिए कोई स्पेशल प्लानिंग नहीं कर पाते, उन्हें भी यह तसल्ली रहती है कि कहीं कुछ पैसा अपने आप जमा हो रहा है, जो उनके लिए बाद के सालों में एक सॉलिड जमीन की तरह काम करेगा। बजट में किए गए प्रावधानों से सरकार ने उस जमीन को जैसे खिसका दिया है। स्थिति यह है कि बीजेपी और आरएसएस से जुड़े भारतीय मजदूर संघ (बीएमएस) को भी इस कदम का विरेाध करना पड़ा।
सरकार को टैक्स देने वालों में सैलरीड क्लास का बड़ा योगदान होता है। यह भी सच है कि वर्तमान सरकार ने सोशल सिक्युरिटी को काफी अहमियत दी है। फिर सरकार को ऐसा कदम क्यों उठाना पड़ा/ टैक्स रेवेन्यू बढ़ाने के अलावा इसकी दूसरी वजह एनपीएस को ईपीएफ जैसा आकर्षक बनाना हो सकती है। एनपीएस को चलाने वाले प्राइवेट प्लेयर्स को फायदा पहुंचाने के मकसद से सरकार ऐसा कदम उठाना चाहती है। एनपीएस के मार्केट लिंक्ड होने की वजह से भी सरकार उसे और ज्यादा प्रमोट करना चाहती है।
2004 में सरकारी कर्मचारियों को ध्यान में रखकर लॉन्च की गई रिटायरमेंट स्कीम एनपीएस को सरकार ने 2009 में सभी के लिए खोल दिया था। सरकार की कोशिश इसे ज्यादा-से-ज्यादा पॉपुलर बनाने की है, लेकिन यह भी सच है कि इसमें इन्वेस्टर्स ने उतनी दिलचस्पी नहीं दिखाई। स्कीम का मार्केट लिंक्ड होना और इसी वजह से यह पता न चलना कि रिटायरमेंट के बाद किसी को कितनी मासिक पेंशन मिलेगी, कुछ ऐसे पॉइंट्स हैं, जिनके चलते लोग अब भी इसमें इन्वेस्ट करने से हिचकिचाते हैं। जाहिर है, इस स्कीम को और ज्यादा आकर्षक बनाने के लिए सरकार समय-समय पर कदम उठाती रही है। एनपीएस में किए गए 50 हजार रुपये के इन्वेस्टमेंट पर टैक्स में एक्स्ट्रा छूट मिलना इसी दिशा में उठाया गया कदम था। इस बार के बजट में भी एनपीएस के टैक्स ट्रीटमेंट को ईईटी से बदलकर ईईई (कुछ सीमा तक विड्रॉल भी टैक्स फ्री) कर दिया गया है। अब तक एनपीएस में इन्वेस्ट रकम और उससे होने वाली आमदनी पर टैक्स छूट के फायदे मिलते थे, लेकिन निकासी की रकम पर टैक्स का प्रावधान था। अब कुछ सीमा तक निकासी की रकम को भी टैक्स से मुक्त कर दिया गया है। लगता है जैसे सरकार एनपीएस को लोगों के बीच ज्यादा प्रचलित करने के लिए ईपीएफ को कम आकर्षक बनाने की कोशिश कर रही है। सरकार चाहती है कि लोग रिटायरमेंट के लिए पेंशन स्कीम की तरफ भी मुड़ें, शायद इसी वजह से एनपीएस को थोड़ा ऊपर और ईपीएफ को थोड़ा नीचे करने की कोशिश की गई है। किसी एक आइटम को दूसरे के कॉम्पिटिशन में लाकर खड़ा करना बुरी बात नहीं है, लेकिन इसका तरीका दूसरा चुना जाना चाहिए था। एनपीएस में लोगों की दिलचस्पी बढ़ाने के लिए ईपीएफ को कम आकर्षक बनाने से बेहतर था कि एनपीएस में कुछ अच्छे बदलाव लाकर उसे ईपीएफ के दर्जे का प्रॉडक्ट बनाया जाता।
0 Comments