सुप्रीम कोर्ट में इलाहाबाद हाई कोर्ट की खंडपीठ का आदेश निरस्त : फर्जी विकलांगता प्रमाणपत्र से नौकरी पाने वालों पर लटकी तलवार
√फर्जी प्रमाणपत्र से नौकरी पाने वालों पर लटकी तलवार
√ सुप्रीम कोर्ट में इलाहाबाद हाई कोर्ट की खंडपीठ का आदेश निरस्त
नई दिल्ली । उत्तर प्रदेश में फर्जी तरीके से प्रमाणपत्र हासिल कर विकलांग कोटे से नौकरी पाने वाले प्राथमिक शिक्षकों की नौकरी पर तलवार लटक गई है। सुप्रीम कोर्ट ने विकलांग कोटे से नौकरी पाने वालों की मेडिकल बोर्ड से शारीरिक जांच कराने को हरी झंडी दे दी है। सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार की याचिका स्वीकार करते हुए इलाहाबाद हाई कोर्ट की खंडपीठ का आदेश निरस्त कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को चार महीने में प्रक्रिया पूरी करने को कहा है। यह मामला उत्तर प्रदेश में 2007-2008 में विकलांग कोटे से विशिष्ट बीटीसी करके प्राथमिक शिक्षक की नौकरी पाने का है। बुधवार को न्यायमूर्ति एमवाई इकबाल व न्यायमूर्ति अरुण मिश्र की पीठ ने प्रदेश सरकार की याचिका स्वीकार करते हुए ये फैसला सुनाया। कोर्ट ने प्रदेश सरकार के वकील एमआर शमशाद की दलीलें स्वीकार करते हुए कहा कि हाई कोर्ट ने इस महत्वपूर्ण तथ्य पर ध्यान नहीं दिया कि मेडिकल बोर्ड ने पहले ही जांच की है और उसमें पाया कि 21 फीसद लोगों ने फर्जी तरीके से विकलांगता प्रमाणपत्र हासिल किये हैं। पीठ ने कहा कि हाई कोर्ट ने अपने फैसले में अथॉरिटीज से कहा है कि वह ऐसे लोगों को सामने बुला कर जांच करें और अगर वह व्यक्ति प्रमाणपत्र के मुताबिक शारीरिक रूप से अक्षम न पाया जाए तो फिर उसका नये सिरे से मेडिकल टेस्ट कराया जाए। हाई कोर्ट ने फैसला देते समय इस बात पर ध्यान नहीं दिया कि कई तरह की शारीरिक अक्षमताओं जैसे देखने और सुनने की अक्षमता को महज शारीरिक निरीक्षण से नहीं जाना ज सकता। इसका पता सिर्फ मेडिकल जांच से ही चल सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में कहा है कि इस मामले में भारतीय विकलांग संघ ने ज्ञापन देकर फर्जीवाड़े का आरोप लगाया था और गंभीर सवाल उठाए थे। जांच के बाद पता चला कि 21 फीसद प्रमाणपत्र फर्जी ढंग से प्राप्त किये गये थे। ऐसी परिस्थिति में हाई कोर्ट की खंडपीठ को मामले में दखल नहीं देना चाहिए था। सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट का आदेश रद करते हुए सरकार से कहा है कि वो किसी के भी खिलाफ कार्रवाई करने से पहले उसे कारण बताओ नोटिस जारी करेगी और उसके बाद ही कानून के मुताबिक फैसला किया जायेगा।
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