फिर भी खाली हाथ नौनिहाल जाएंगे स्कूल
नहीं ले पाया निर्णय : पिछले वर्ष जुलाई में मिल पाई थीं किताबें, शासन स्तर नहीं हो पाया निर्णय
लखनऊ। सरकारी स्कूलों में शैक्षिक सत्र 2015-16 में बांटी गयी सरकारी किताबें जांच में तो फेल कर गयी। इसकी रिपोर्ट भी शासन को 31 दिसम्बर को सौंप दी गयी थी, लेकिन अभी तक कोई फैसला नहीं हो पाया है। सरकार उनका 50 फीसद भुगतान रोके है, लेकिन जुर्माना को लेकर अंतिम फैसला नहीं हो सका है। सूत्रों का कहना है कि इसको लेकर फिर से जांच कराकर मामले को रफा-दफा करने की तैयारी है।
नहीं ले पाया निर्णय
लखनऊ। सरकारी स्कूलों में शैक्षिक सत्र 2015-16 में बांटी गयी सरकारी किताबें जांच में तो फेल कर गयी। इसकी रिपोर्ट भी शासन को 31 दिसम्बर को सौंप दी गयी थी, लेकिन अभी तक कोई फैसला नहीं हो पाया है। सरकार उनका 50 फीसद भुगतान रोके है, लेकिन जुर्माना को लेकर अंतिम फैसला नहीं हो सका है। सूत्रों का कहना है कि इसको लेकर फिर से जांच कराकर मामले को रफा-दफा करने की तैयारी है।
पिछले वर्ष जुलाई में मिल पायी थीं किताबें
लखनऊ। सूबे में भले ही शिक्षा का अधिकार अधिनियम लागू हो और यह मौलिक अधिकार का हिस्सा हो, लेकिन हकीकत कुछ अलग है। अखिलेश सरकार भले ही सीबीएसई व कान्वेंट स्कूलों से मुकाबले को तैयार हो, लेकिन मुख्यमंत्री की मंशा को अफसर ही पलीता लगा रहे हैं। इसी का नतीजा है कि लगातार दूसरे वर्ष सूबे के नौनिहाल खाली हाथ सब पढ़े-सब बढ़े का नारा बुलंद करेंगे।प्रदेश में हर वर्ष करीब दो करोड़ विद्यार्थियों को मुफ्त में किताबें दी जाती है। सर्व शिक्षा अभियान के तहत मिलने वाली इस किताबों का बोझ केन्द्र व राज्य मिलकर उठाते हैं और तकरीबन पौने दो सौ करोड़ रुपये का भारी-भरकम बजट भी खर्च होता। इसके बाद भी अफसरों की खींचतान से सरकारी सब पढ़े-सब बढ़े का नारा भी बेमानी साबित हो रहा है।किताबों के प्रकाशन की नयी नीति तो जारी कर दी है, लेकिन अभी तक इसका टेण्डर जारी नहीं हो पाया है। अब टेंडर जारी होता भी है तो उसको 30 दिनों तक के लिए रखा जाएगा, इसके बाद भी टेण्डर प्रक्रिया से लेकर प्रकाशको को कार्य आवंटन में पूरा मार्च बीत जाएगा। पहली अप्रैल से नया शैक्षिक सत्र शुरू हो जाएगा और फिर जोर-शोर से सरकार नौनिहालों को स्कूलों तक लाने में जुट जाएगी। करीब दो करोड़ किताबों की छपाई से लेकर स्कूलों तक पहुंचाने में 90 दिनों से ज्यादा लगेगा। सूत्रों का कहना है कि टेंडर में तो प्रकाशक जाएंगे, लेकिन इसका एक बार फेल होना भी तय है, इसके पीछे उनका अपना तर्क है, बकौल प्रकाशकों के तो अभी तक बकाया 50 फीसद का भुगतान नहीं हो पाया है, सरकार ने प्री व पोस्ट जांच अलग-अलग लैब से करायी नतीजतन सैम्पल फेल हो गये और अब उन पर भारी भरकम जुर्माना लगाने की फिराक में है, ऐसे में काम करना मुश्किल होगा। उनका कहना है कि एक और मुसीबत नयी पॉलिसी को लेकर भी है, इसमें पूरा वाटरमार्क कागज कर दिया गया है ।
लखनऊ। सरकारी स्कूलों में शैक्षिक सत्र 2015-16 में बांटी गयी सरकारी किताबें जांच में तो फेल कर गयी। इसकी रिपोर्ट भी शासन को 31 दिसम्बर को सौंप दी गयी थी, लेकिन अभी तक कोई फैसला नहीं हो पाया है। सरकार उनका 50 फीसद भुगतान रोके है, लेकिन जुर्माना को लेकर अंतिम फैसला नहीं हो सका है। सूत्रों का कहना है कि इसको लेकर फिर से जांच कराकर मामले को रफा-दफा करने की तैयारी है।
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