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एक छत के नीचे 'प्राइमरी का मास्टर' से जुड़ी शिक्षा विभाग की समस्त सूचनाएं एक साथ

मन की बात : डंडा तो उठे मगर किस पर, किस तरह क्योंकि शिक्षकों की ऊर्जा, कल्पना और दृढ़ता स्कूल के सभी क्षेत्रों में दिखती है, हालांकि हमारी स्कूल प्रणाली का ढांचा और स्कूलों में............

मन की बात : डंडा तो उठे मगर किस पर, किस तरह क्योंकि शिक्षकों की ऊर्जा, कल्पना और दृढ़ता स्कूल के सभी क्षेत्रों में दिखती है, हालांकि हमारी स्कूल प्रणाली का ढांचा और स्कूलों में............
   

मैदानी इलाकों में मई की गुनगुनी सुबह जैसा मौसम था। आकाश पूरी तरह नीला था, सूर्य की रोशनी ऊंचे-ऊंचे पेड़ों से छिटककर स्कूल में पसर चुकी थी। करीब सौ वर्ष पुराने इस साफ-सुथरे स्कूल की यह आदर्श तस्वीर नीले यूनिफॉर्म पहने बच्चों ने पूरी कर दी थी। मगर वहां नशे में धुत एक शिक्षक की मौजूदगी देखकर मुझे लगा कि यह कोई स्वर्ग नहीं है।

पहले लगा कि बीमार होने की वजह से वह शायद लड़खड़ा रहे हैं। मगर जब उन्होंने चलना शुरू किया और वह मेरे नजदीक आए, तो दुर्गंध ने उनकी हालत बयां कर दी। वह मुझे अपनी क्लास में ले जाने का आग्रह करने लगे, मगर प्रधानाध्यापक मुझे अपने साथ दूसरी क्लास में ले गए। वह वाकई एक बेहतरीन क्लास थी, जहां जिज्ञासा व आत्मविश्वास से भरे बच्चे थे। यह सरकारी प्राइमरी स्कूल एक घने जंगल के करीब 30 किलोमीटर अंदर है। यहां ज्यादातर वंचित तबके के बच्चे पढ़ते हैं।

प्रधानाध्यापक की ऊर्जा, कल्पना और दृढ़ता स्कूल के सभी क्षेत्रों में दिखती है। आसपास के इलाके में उनकी सलाह को काफी तवज्जो मिलती है। वह यहां अपना काम दो शिक्षकों की सहायता से करते हैं। मैं यहां नशे में धुत तीसरे शिक्षक की गिनती नहीं कर रहा। उस शिक्षक की पहुंच राजनीति में है, इसलिए उसके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की स्कूल प्रधानाध्यापक की तमाम कोशिशें  नाकाम रही हैं। इस घटना के तीन दिन पहले दिल्ली में हुई एक अनौपचारिक बातचीत मुझे याद आ गई। मेरा मानना है कि कुछ स्थितियों में डंडा, यानी दंड आवश्यक है। खासकर तब, जब शिक्षक नशे में हो, अनुपस्थित रहने की उनकी आदत हो।

मगर इस दंड का असर क्या होगा? यह ऐसा हो, जो दोषी को तत्काल सजा दे और निर्दोष पर जोर आजमाइश न करे। हालांकि अपने देश में ऐसा डंडा तंत्र बनाना मुश्किल है और लागू करना तो लगभग नामुमकिन। दिक्कत यह है कि डंडा सिर्फ निर्दोषों पर बरसता है, क्योंकि नशे में या अनुपस्थित रहने वाले शिक्षक इस सिस्टम को लागू करने वाले लोगों के साथ मित्रता साध लेते हैं।

हालांकि हमारी स्कूल प्रणाली का ढांचा और स्कूलों में स्थानीय समुदायों के हित, एक उम्मीद पैदा करते हैं। स्कूल के स्थानीय समूहों को इतना मजबूत होना ही चाहिए कि वे डंडा तैयार कर सकें। हर स्कूल में मैनेजमेंट कमेटी होती है, जो स्थानीय लोगों से बनती है। इस कमेटी को अपने से बड़े तंत्र (जैसे कि गांवों में ग्राम पंचायत) के सहयोग से डंडा बनाने की अनुमति देनी चाहिए। बेशक यह तंत्र पूरी तरह काम नहीं करेगा, मगर कई दूसरे उपायों से यह बेहतर होगा। स्थानीय समुदाय कभी भी अच्छे शिक्षकों को सजा दिए जाने के पक्ष में नहीं होता, और बच्चों के साथ बदमाशी करने वाले को बर्दाश्त भी नहीं करता। बहरहाल, यहां उस प्रधानाध्यापक और दो अन्य शिक्षकों की सराहना होनी चाहिए, जो इन प्रतिकूल स्थितियों में भी अपनी जिम्मेदारी को ईमानदारी से निभा रहे हैं।

- अनुराग बेहर, सीईओ, अजीम प्रेमजी फाउंडेशन
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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  1. 📌 मन की बात : डंडा तो उठे मगर किस पर, किस तरह क्योंकि शिक्षकों की ऊर्जा, कल्पना और दृढ़ता स्कूल के सभी क्षेत्रों में दिखती है, हालांकि हमारी स्कूल प्रणाली का ढांचा और स्कूलों में............
    👉 http://www.basicshikshanews.com/2016/02/blog-post_32.html

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