मन की बात : कौन फैला रहा है स्कूलों के बंद होने का भ्रम? शिक्षा जैसे जनहित के क्षेत्र का व्यवसायीकरण होगा, तो ऐसे विवाद स्वाभाविक तौर पर उठेंगे की क्या बुनियादी मानकों को पूरा कराने को लेकर.......
🌔 कौन फैला रहा है स्कूलों के बंद होने का भ्रम
स्कूली शिक्षा पर काम करने वाले हममें से ज्यादातर लोग उन मीडिया खबरों या विचारों को सुनकर हैरान हो जाते हैं, जिनमें यह दावा किया जाता है कि शिक्षा का अधिकार कानून, यानी आरटीई के कारण हजारों निजी स्कूल बंद हो रहे हैं। इस दावे की पड़ताल करने के लिए हमने एक जमीनी अध्ययन किया। ऐसा शोध आसान नहीं होता, क्योंकि इसके लिए प्राथमिक स्रोत के पास पहुंचना होता है। लिहाजा हमारे लिए जरूरी था कि हम ब्लॉक या जिला स्तर के कार्यालयों से सीधे संपर्क साधें, जिनका नियंत्रण स्कूलों पर होता है और जिन पर आरटीई लागू करने की जिम्मेदारी है।
हमने सात राज्यों व एक केंद्र शासित प्रदेश के 69 जिलों में अध्ययन किया। इन जिलों में 34,756 निजी स्कूल थे। यहां महज पांच निजी स्कूल आरटीई नियमों का पालन न करने की वजह से बंद हुए हैं। बंद हुए इन स्कूलों से इतर 7,156 स्कूलों को नोटिस जारी की गई। मगर नोटिस स्कूल बंद करने के लिए नहीं, बल्कि आरटीई नियमों का पालन करने को लेकर उन्हें वक्त देने से संबंधित थीं। हमारा अनुभव यही है कि आरटीई लागू करने वाली एजेंसियां सख्त होने की बजाय स्कूलों के प्रति नरम रही हैं। बेशक यह अध्ययन महज 69 जिलों में किया गया, जो कुल जिलों के महज दस फीसदी हैं, मगर यह एक बड़ा अध्ययन था। पूरे देश की तस्वीर साफ हो, इसके लिए इसी तरह के बड़े अध्ययन की जरूरत है।
ऐसे में, यह दावा हास्यास्पद है कि आरटीई की वजह से हजारों स्कूलों में ताले लग गए। ऐसे झूठे दावे क्यों किए जा रहे हैं? अगर हजारों स्कूल बंद होंगे, तो स्वाभाविक है कि लाखों बच्चों की मुश्किलें बढ़ेंगी। लोगों को प्रभावित करने के लिए यह बड़़ा भावनात्मक मुद्दा है कि उनके बच्चे मुश्किल में हैं। लिहाजा, इन दावों के बहाने शिक्षा का अधिकार कानून को लागू न किए जाने का हरसंभव दबाव बनाया जा रहा है।
आरटीई नियमों को पूरा करने का अर्थ है, स्कूलों पर बुनियादी मानदंड पूरा करने का दबाव बढ़ना, जिनमें बच्चों की सुरक्षा व बेहतर शैक्षणिक माहौल शामिल हैं। इन मानदंडों को पूरा करने के लिए पूंजी चाहिए, जो ज्यादातर निजी स्कूल वहन नहीं करना चाहते। बेशक कुछ ऐसे पब्लिक स्कूल हैं, जो पूरी तरह शिक्षा को समर्पित हैं, मगर अधिकतर के लिए स्कूल एक व्यवसाय है। हालांकि यह भी सच है कि आरटीई पूर्ण नहीं है।
इसमें बुनियादी मानकों को पूरा कराने को लेकर ज्यादा सख्ती होनी चाहिए थी। अगर ऐसा होता, तो शायद सही में कई निजी स्कूल बंद हो जाते। उन्हें बंद होना भी चाहिए। ऐसे स्कूलों की दशा काफी दयनीय है। बच्चों की स्थिति उनके बिना कहीं ज्यादा अच्छी होगी। शिक्षा जैसे जनहित के क्षेत्र का व्यवसायीकरण होगा, तो ऐसे विवाद स्वाभाविक तौर पर उठेंगे। जरूरी है कि सार्वजनिक तंत्र को बेहतर बनाया जाए, क्योंकि बाजार जनता के हितों की बात वैसे भी कहां सोचता है?
- अनुराग बेहर, सीईओ, अजीम प्रेमजी फाउंडेशन
(ये लेखक के अपने विचार हैं ।)
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