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एक छत के नीचे 'प्राइमरी का मास्टर' से जुड़ी शिक्षा विभाग की समस्त सूचनाएं एक साथ

मन की बात (Man Ki Baat) : बेसिक स्कूलों का सिर्फ एक्सरे निकालने से हालात नहीं बदलेंगे, बदलाव की इबारत तभी लिखी जा सकती है जब मर्ज की पहचान कर उसका उचित इलाज भी किया जाए और बदहाली.....

मन की बात (Man Ki Baat) : बेसिक स्कूलों का सिर्फ एक्सरे निकालने से हालात नहीं बदलेंगे, बदलाव की इबारत तभी लिखी जा सकती है जब मर्ज की पहचान कर उसका उचित इलाज भी किया जाए और बदहाली.....

प्रदेश में बेसिक शिक्षा परिषद द्वारा संचालित स्कूलों का एक्सरा निकालने की योजना सकारात्मक बदलाव ला सकती है, बशर्ते इसे शासन की मंशा के अनुरूप ही सिरे तक चढ़ाया जाए। मुख्य सचिव के निर्देश पर लखनऊ में तैनात बेसिक शिक्षा के अफसरों को दो-दो जिलों में तीन-तीन दिन रुककर गहन पड़ताल का जिम्मा दिया गया है।

अधिकारी इसी महीने जिलों में जाकर परिषदीय स्कूलों में शिक्षण और वहां संचालित विभागीय योजनाओं की जमीनी हकीकत से रूबरू होंगे। अधिकारियों को किन किन बिंदुओं पर पड़ताल करनी है, इसकी सूची उन्हें थमाई गई है। शिक्षकों की उपस्थिति, शिक्षण के स्तर, बालक-बालिकाओं के लिए अलग-अलग शौचालयों के क्रियाशील होने की स्थिति, पेयजल व्यवस्था, विद्यालय परिसर में सफाई, मध्याह्न् भोजन आदि का जायजा लिया जाएगा। अफसर मौके पर यह भी देखेंगे कि छात्र-छात्रएं पढ़ाये गए विषयों को कितना आत्मसात कर सके हैं औरकहां कमजोरी है। इसके लिए हिंदी की  पाठ्यपुस्तकों का वाचन और ब्लैक बोर्ड पर गणित के सवाल हलकराकर देखने को कहा गया है। इसी तरह की कई अन्य हिदायतों से लैस होकर अफसरों को जिलों में डेरा डालने और 15 जनवरी तक रिपोर्ट शासन को देने की अपेक्षा की गई है।

संभव है कि शासन और निदेशालय में बैठे अफसरों को इसका अनुमान न हो लेकिन प्रदेश में परिषदीय स्कूलों की जो स्थिति है, वह किसी से छिपी नहीं है। शिक्षक स्कूल आते नहीं, बच्चे सिर्फ मध्याह्न् भोजन के लिए बुलाये जाते हैं, शौचालय हैं तो गंदे हैं, दरवाजे नहीं, शिक्षण का स्तर मजाक बना हुआ है। यह व्यथाअमूमन हर स्कूल की है। 

ऐसा भी नहीं है कि कहीं कुछ सकारात्मक नहीं हो रहा है लेकिन यह किसी न किसी शिक्षक की व्यक्तिगत रुचि अथवा सरोकारों से जुड़ाव का ही नतीजा है। जिलों में जाने वाले अफसरों की इन पर भी नजरपड़नी चाहिए। 

सबसे ज्यादा जरूरी बात यह है कि सिर्फ एक्सरे निकालने से हालात नहीं बदलेंगे। बदलाव की इबारत तभी लिखी जा सकती है जब मर्ज की पहचान कर उसका उचित इलाज भी किया जाए। बदहाली के जिम्मेदार अफसरों को दंडित करने के साथ ही अच्छा काम करने वाले अफसरों और शिक्षकों को पुरस्कृतकर उन्हें रोल मॉडल के रूप में पेश किया जाए। 

एक जिले में तीन दिन बिताकर यदि राजधानी के अफसर कोई बेहतर समाधान निकाल सके तो उम्मीद करनी चाहिए कि तस्वीर भी बदलेगी।

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  1. 📌 मन की बात (Man Ki Baat) : बेसिक स्कूलों का सिर्फ एक्सरे निकालने से हालात नहीं बदलेंगे, बदलाव की इबारत तभी लिखी जा सकती है जब मर्ज की पहचान कर उसका उचित इलाज भी किया जाए और बदहाली.....
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