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एक छत के नीचे 'प्राइमरी का मास्टर' से जुड़ी शिक्षा विभाग की समस्त सूचनाएं एक साथ

मन की बात में मृतक आश्रितों का दर्द को जानने की चाहत पर चर्चा : बेसिक शिक्षा विभाग में अभी तक मृतक आश्रित के लिए जो नियम हैं, वो सही नहीं हैं। वर्तमान नियमों के तहत किसी भी न्यूनतम और अधिकतम योग्यताधारी को.......

मन की बात में मृतक आश्रितों का दर्द को जानने की चाहत पर चर्चा : बेसिक शिक्षा विभाग में अभी तक मृतक आश्रित के लिए जो नियम हैं, वो सही नहीं हैं। वर्तमान नियमों के तहत किसी भी न्यूनतम और अधिकतम योग्यताधारी को.......

यूं तो सरकारों द्वारा मृतक आश्रितों के लिए बड़ी-बड़ी बातें की जाती हैं। कहीं शहादत पर धनवर्षा होती है तो कहीं मौत पर सिर्फ चीखें आती हैं। जिन्हें हम मृतक आश्रित की संज्ञा देते हैं, उनके मन में यह सवाल अक्सर आता है कि सरकार द्वारा ऐसा दोहरा व्यवहार क्यों किया जाता है।

आज मृतक आश्रितों की स्थिति बहुत दयनीय है, और तो और बेसिक शिक्षा विभाग में यह अपमान करने की तरह है। मृतक आश्रित कोटे में चयन के लिए सबसे बेहाल और अपमानित विभाग के रूप में आज बेसिक शिक्षा विभाग सबसे ऊपर स्थान काबिज है। समाज के विकास में महत्वपूर्ण योगदान और दिशा देने वाले शिक्षक के परिवार पर यदि मृत्यु जैसी आपदा आती है तो बेसिक शिक्षा विभाग उसका सहयोग देने के नाम पर उसे और नीचा दिखाता है, क्योंकि यह नियम जो है कि मृतक शिक्षक के आश्रित को सिर्फ और सिर्फ चतुर्थ श्रेणी के पद पर ही जगह मिलेगी, भले वो समकक्ष पद के लिए कितनी भी पूर्ण या अधिक योग्यता रखता हो।

एक शिक्षक परिवार से ताल्लुक रखने वाले आश्रित विद्यालयों में नियुक्त शिक्षकों के समान योग्यता रखते हुए भी अगर चतुर्थ श्रेणी में रहेंगे तो इसे सरकार का आश्रय समझा जाए या मान-सम्मान को ठेस के साथ मानसिक प्रताड़ना, सीधे शब्दों में इसे अपमान ही तो कहेंगे। आज आवश्यकता है कि ऐसे नियमों पर पुनर्विचार किया जाए कि यदि शिक्षक की मृत्यु हो जाती है तो उसके आश्रित को उसकी योग्यता से क्रम में पद दिया जाए। योग्यता को नजरअंदाज कर के सीधे-सीधे चतुर्थ श्रेणी का पद देना कहां तक न्यायसंगत है। एक उच्च योग्यताधारी अगर अपने बराबर या कम योग्यता वाले से निम्न रहे तो कहीं न कहीं यह मानसिक प्रताड़ना के साथ अपमान की ही स्थिति होती है।

परिवार के मुखिया की मृत्यु वैसे भी एक गहरा दु:ख दे जाती है परिवार को, ऐसे में सरकार के यह नियम कटे में नमक डालने का काम करते हैं। जिनमें सुधार और पुनर्विचार की आवश्यकता है। उम्मीद है, सरकार इन नियमों पर विचार करके इनमें सुधार लाने का प्रयास करेगी, जिससे किसी के मान-सम्मान को क्षति न हो। दुख की घड़ी में मृतक आश्रितों को सरकार का सहयोग डूबते को एक सहारे जैसा होता है। ऐसे मार्मिक अवसरों पर नियमों को अपमानित नहीं, अपितु सम्मानित और गर्व की तरफ उन्मुख होना चाहिए।

सरकार सकारात्मकता लाएगी, मृतक आश्रितों को पूरी उम्मीद है। उसी उम्मीद के सहारे परिवार सहित आज वो संघर्ष कर रहे हैं। उन्हें उम्मीद है कि सरकार द्वारा इस विषय पर विचार किया जाएगा तो कुछ न कुछ सकारात्मक निर्णय जरूर निकलेगा।

बेसिक शिक्षा विभाग में अभी तक मृतक आश्रित के लिए जो नियम हैं, वो सही नहीं हैं। वर्तमान नियमों के तहत किसी भी न्यूनतम और अधिकतम योग्यताधारी को चतुर्थ श्रेणी में ही रखा जाता है। जिससे ऐसे आश्रितों को शमिंर्दा होना पड़ता है, जो एक शिक्षक की योग्यता होते हुए भी चपरासी के पद पर नियुक्त होता है।
         आभार : दीपक मिश्र राजू

यूं तो सरकारों द्वारा मृतक आश्रितों के लिए बड़ी-बड़ी बातें की जाती हैं। कहीं शहादत पर धनवर्षा होती है तो कहीं मौत पर सिर्फ चीखें आती हैं। जिन्हें हम मृतक आश्रित की संज्ञा देते हैं, उनके मन में यह सवाल अक्सर आता है कि सरकार द्वारा ऐसा दोहरा व्यवहार क्यों किया जाता है। आज मृतक आश्रितों की स्थिति बहुत दयनीय है, और तो और बेसिक शिक्षा विभाग में यह अपमान करने की तरह है। मृतक आश्रित कोटे में चयन के लिए सबसे बेहाल और अपमानित विभाग के रूप में आज बेसिक शिक्षा विभाग सबसे ऊपर स्थान काबिज है। समाज के विकास में महत्वपूर्ण योगदान और दिशा देने वाले शिक्षक के परिवार पर यदि मृत्यु जैसी आपदा आती है तो बेसिक शिक्षा विभाग उसका सहयोग देने के नाम पर उसे और नीचा दिखाता है, क्योंकि यह नियम जो है कि मृतक शिक्षक के आश्रित को सिर्फ और सिर्फ चतुर्थ श्रेणी के पद पर ही जगह मिलेगी, भले वो समकक्ष पद के लिए कितनी भी पूर्ण या अधिक योग्यता रखता हो। एक शिक्षक परिवार से ताल्लुक रखने वाले आश्रित विद्यालयों में नियुक्त शिक्षकों के समान योग्यता रखते हुए भी अगर चतुर्थ श्रेणी में रहेंगे तो इसे सरकार का आश्रय समझा जाए या मान-सम्मान को ठेस के साथ मानसिक प्रताड़ना, सीधे शब्दों में इसे अपमान ही तो कहेंगे। आज आवश्यकता है कि ऐसे नियमों पर पुनर्विचार किया जाए कि यदि शिक्षक की मृत्यु हो जाती है तो उसके आश्रित को उसकी योग्यता से क्रम में पद दिया जाए। योग्यता को नजरअंदाज कर के सीधे-सीधे चतुर्थ श्रेणी का पद देना कहां तक न्यायसंगत है। एक उच्च योग्यताधारी अगर अपने बराबर या कम योग्यता वाले से निम्न रहे तो कहीं न कहीं यह मानसिक प्रताड़ना के साथ अपमान की ही स्थिति होती है। परिवार के मुखिया की मृत्यु वैसे भी एक गहरा दु:ख दे जाती है परिवार को, ऐसे में सरकार के यह नियम कटे में नमक डालने का काम करते हैं। जिनमें सुधार और पुनर्विचार की आवश्यकता है। उम्मीद है, सरकार इन नियमों पर विचार करके इनमें सुधार लाने का प्रयास करेगी, जिससे किसी के मान-सम्मान को क्षति न हो। दुख की घड़ी में मृतक आश्रितों को सरकार का सहयोग डूबते को एक सहारे जैसा होता है। ऐसे मार्मिक अवसरों पर नियमों को अपमानित नहीं, अपितु सम्मानित और गर्व की तरफ उन्मुख होना चाहिए। सरकार सकारात्मकता लाएगी, मृतक आश्रितों को पूरी उम्मीद है। उसी उम्मीद के सहारे परिवार सहित आज वो संघर्ष कर रहे हैं। उन्हें उम्मीद है कि सरकार द्वारा इस विषय पर विचार किया जाएगा तो कुछ न कुछ सकारात्मक निर्णय जरूर निकलेगा। बेसिक शिक्षा विभाग में अभी तक मृतक आश्रित के लिए जो नियम हैं, वो सही नहीं हैं। वर्तमान नियमों के तहत किसी भी न्यूनतम और अधिकतम योग्यताधारी को चतुर्थ श्रेणी में ही रखा जाता है। जिससे ऐसे आश्रितों को शमिंर्दा होना पड़ता है, जो एक शिक्षक की योग्यता होते हुए भी चपरासी के पद पर नियुक्त होता है।

= दीपक मिश्र राजू

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  1. 📌 मन की बात में मृतक आश्रितों का दर्द को जानने की चाहत पर चर्चा : बेसिक शिक्षा विभाग में अभी तक मृतक आश्रित के लिए जो नियम हैं, वो सही नहीं हैं। वर्तमान नियमों के तहत किसी भी न्यूनतम और अधिकतम योग्यताधारी को.......
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