logo

Basic Siksha News.com
बेसिक शिक्षा न्यूज़ डॉट कॉम

एक छत के नीचे 'प्राइमरी का मास्टर' से जुड़ी शिक्षा विभाग की समस्त सूचनाएं एक साथ

मन की बात : प्राथमिक शिक्षा मुख्‍य रूप से चार घटकों पर आधारित है, जिसमें 2 घटक प्रशासनिक और 2 घटक सिविल सोसाइटी से सम्‍बन्‍ध रखते हैं, अधिकारी और अध्‍यापक प्रशासनिक हैं और अभिभावक तथा ग्राम जनप्रतिनिधि..........

मन की बात : प्राथमिक शिक्षा मुख्‍य रूप से चार घटकों पर आधारित है, जिसमें 2 घटक प्रशासनिक और 2 घटक सिविल सोसाइटी से सम्‍बन्‍ध रखते हैं, अधिकारी और अध्‍यापक प्रशासनिक हैं और अभिभावक तथा ग्राम जनप्रतिनिधि..........


वस्‍तुत: मात्र शिक्षकों पर ही दबाव बनाने से प्राथमिक शिक्षा व्‍यवस्‍था में सुधार ला पाना सम्‍भव नहीं है। इसमें अभिभावक, ग्राम समुदाय एवं अधिकारियों की भी सक्रिय एवं ईमानदार भूमिका होनी चाहिये।

प्राथमिक शिक्षा मुख्‍य रूप से चार घटकों पर आधारित है, जिसमें 2 घटक प्रशासनिक और 2 घटक सिविल सोसाइटी से सम्‍बन्‍ध रखते हैं। अधिकारी और अध्‍यापक प्रशासनिक हैं और अभिभावक तथा ग्राम जनप्रतिनिधि सिविल सोसाइटी के अन्‍तर्गत आते हैं। बेसिक शिक्षा व्‍यवस्‍था में भ्रष्‍टाचार एक मुख्‍य समस्‍या है। हर किसी घटक की अपनी शिकायत है। अध्‍यापक को सारी कमियों का दोषी माना जाता है। क्‍योंकि परिकल्‍पना ही कुछ ऐसी है कि अध्‍यापक के अलावा बाकी सारे अवयव आदर्श माने जाते हैं। बहुत से प्रयोग किये गये और बहुत से होने बाकी हैं, लेकिन जमीनी असर अभी तक नहीं हो पाया है। सच यही है कि जब तक सिस्‍टम नहीं सही होगा तब तक इन प्रयोगों का असर नहीं होगा।

एकमात्र भ्रष्‍टाचार ही प्राथमिक शिक्षा व्‍यवस्‍था में आ रहे गतिरोधों का जिम्‍मेदार है। भ्रष्‍टाचार अपना स्‍थान तलाश ही लेता है, आवश्‍यकता उन स्‍थानों को ब्‍लाक करने की है। जब सरकार बच्‍चों की उपस्थिति का लेखा जोखा आनलाइन लेने का काम करना शुरू कर रही है तो उसको एक काम और भी कर देना चाहिये। 

एम डी एम से लेकर बच्‍चों के ड्रेस तक के कामों में जो भी धनराशि खर्च होती है उसका बहुत बडा भाग बच्‍चों तक नहीं पहुंच पाता है, जबकि यदि वेतन आदि के खर्च को छोड दिया जाय तो बच्‍चों पर केन्‍द्र एवं राज्‍य सरकारों द्वारा औसतन 10 रूपये प्रतिदिन का खर्च किया जाता है। बस इतना सा काम कर दिया जाय कि वर्तमान में सारी सुवधिाओं को बन्‍द करके बच्‍चों को उनके प्रत्‍येक दिन की उपस्थिति पर 10 रूपये के हिसाब से प्रोत्‍साहन राशि का भुगतान उनके निजी खातों में किया जाय, इस व्‍यवस्‍था में प्रधानाध्‍यापक गलत हाजिरी इसलिये नहीं लगायेंगे क्‍योंकि उनको इसमें से कुछ भी नहीं मिलने वाला। अभिभावकों और बच्‍चों को उन खातों से धनराशि आहरित करने का अधिकार तब दिया जाय जब बच्‍चा कम से कम कक्षा 8 पास कर ले। यदि बच्‍चा इसके पहले पढाई छोड देता है तो उसकी समस्‍त प्रोत्‍साहन राशि जब्‍त करने का सरकार के पास अधिकार हो। यदि किसी कक्षा में बच्‍चा फेल होता है तो उस वर्ष उसको प्रोत्‍साहन राशि रोक दी जाये। अगली कक्षा में पहुंचने के उपरान्‍त पुन: प्रोत्‍साहन राशि को उसके निजी खाते में भेजना शुरू कर दिया जाय।

चूंकि ग्रामीण अभिभावक त्‍वरित लाभ की तरफ अधिक आकर्षित होते हैं, ऐसी अवस्‍था में अभिभावक भी जागरूक होकर अपने बच्‍चों को विद्यालय भेजने की स्‍वयं ही पहल करना शुरू कर देंगे। ज्‍यों ज्‍यों बच्‍चा अगली कक्षाओं की तरफ बढता जायेगा त्‍यों त्‍यों उसकी पढाई छोडने की मंशा भी समाप्‍त होती जायेगी क्‍योंकि वह नहीं चाहेगा कि उसकी जमा धनराशि जब्‍त हो जाय। 

इस प्रकार की योजना से बच्‍चों के अभिभावकों के साथ साथ बच्‍चों को भी शिक्षा के लिये जागरूक करने में उल्‍लेखनीय सफलता मिलेगी, साथ ही भ्रष्‍टाचार का उन्‍मूलन भी काफी हद तक हो जायेगा। बच्‍चों की ड्राप आउट की समस्‍या भी दूर होगी, फर्जी एडमशिन की परम्‍परा का खात्‍मा होगा और अध्‍यापक पर बच्‍चों की उपस्थिति बढाने का दबाव कम करने में भी सफलता मिलेगी। इतना ही नहीं इस कार्य से साक्षरता की दर बढाने में भी जबरदस्‍त सफलता मिलेगी। वस्‍तुत: मात्र शिक्षकों पर ही दबाव बनाने से प्राथमिक शिक्षा व्‍यवस्‍था में सुधार ला पाना सम्‍भव नहीं है। इसमें अभिभावक, ग्राम समुदाय एवं अधिकारियों की भी सक्रिय एवं ईमानदार भूमिका होनी चाहिये।

         सौजन्य : मृत्युन्जय मिश्रा
            

Post a Comment

0 Comments