logo

Basic Siksha News.com
बेसिक शिक्षा न्यूज़ डॉट कॉम

एक छत के नीचे 'प्राइमरी का मास्टर' से जुड़ी शिक्षा विभाग की समस्त सूचनाएं एक साथ

मन की बात (Man Ki Baat) : लड़का भूत और लड़की भूतनी, एक मनोविज्ञान पहेली है दरअसल बादल कक्षा दूसरी का विद्यार्थी.............

मन की बात (Man Ki Baat) : लड़का भूत और लड़की भूतनी, एक मनोविज्ञान पहेली है दरअसल बादल कक्षा दूसरी का विद्यार्थी.............

विजयदान देथा की कहानी “दुविधा” पर अमोल पालेकर द्वारा निर्देशित फिल्म “पहेली” बनी थी। जिसमें एक पति के हमशक्‍ल भूत तथा पत्‍नी  के बीच की प्रेम कहानी दिखाई गई थी। इससे पहले मणिकौल ने इसी कहानी पर “दुविधा” नाम से फिल्म बनाई थी। इसके अतिरिक्‍त कुछ डरावनी कहानियाँ सुनने को मिलती हैं जिसमें भूतनी किसी लड़के से प्रेम करती है। परन्‍तु ऐसी कोई कहानी सुनने को नहीं मिलती है जिसमें दोनों भूत और भूतनी हों और दोनों किसी मानव लड़के और लड़की से प्रेम करते हों या उनके बीच कोई दिल का रिश्‍ता रहा हो। यहाँ यह सब बताने का परिप्रेक्ष्‍य सिर्फ लेख में इंगित चित्र से उभरने वाले स्‍मृति चित्रों के ध्‍यान में आने के सन्‍दर्भ मात्र से है।  

दरअसल बादल कक्षा दूसरी का विद्यार्थी है, उसकी उम्र सात वर्ष है। जी हाँ पूरा लेख पढ़ते समय ये दोनों बातें स्मृति में अवश्‍य रखें, पहली कक्षा दूसरी का विद्यार्थी और दूसरी उम्र सात वर्ष।

हाल ही में विद्यालय अर्धवार्षिक रिपोर्ट लिखने का समय चल रहा है। प्रत्येक विद्यार्थी  के रिपोर्ट पत्र में एक स्थान बना हुआ है जिसमें विद्यार्थी द्वारा बनाई कोई पेंटिंग, ड्रॉइंग अथवा कोई डिजायन को चिपकाया जाता है। कक्षा दूसरी का कक्षा अध्‍यापक होने के नाते मैंने कक्षा के सभी विद्यार्थियों को रिपोर्ट कार्ड में चिपकाने के लिए एक चित्र बनाने के लिए कहा। सभी बच्चों को ए-फोर साइज कागज का आधा भाग वितरित किया। बीस मिनट के बाद मैंने सभी से एक-एक करके चित्र एकत्र किए। मैं बच्चों से चित्र से सम्‍बन्धित कुछ न कुछ बातचीत भी करता जा रहा था। कुछ बच्चों ने कक्षा में लगे चार्ट से देखकर, कुछ ने किताब से देखकर, कुछ ने छापकर तो कुछ बच्चों ने अपनी कल्पना से पेड़, झोपड़ी, पहाड़ आदि के चित्र बनाए।

परन्‍तु बादल का चित्र देखकर शिक्षा मनोविज्ञान, बाल मनोविज्ञान तथा कक्षाकक्ष अनुभव की मेरी बहुमंजिला इमारतें पलक झपकते ही ढह गईं। कक्षाकक्ष प्रक्रिया के मेरे जीवन में किसी भी स्तर के विद्यार्थी द्वारा इतना कल्पनाशील तथा रचनात्मक चित्र बनाते मैंने नहीं देखा। मेरे इस बिन्दु को लेख में अतिश्‍योक्ति के रूप में देखने के आप अपने अधिकार की रक्षा कर सकते हैं, परन्‍तु उस पल के अनुभव के आवेग को महसूस कराने का मुझे इससे अच्छा वाक्य नहीं सूझा।

निश्चित रूप में पहली नजर में यह एक साधारण चित्र नजर आ सकता है और आप इसे चित्रकला की सामान्य रचनात्मकता कहकर टाल सकते हैं। परन्‍तु मेरे जैसे शिक्षक के लिए एक सात साल के कक्षा दूसरी के विद्यार्थी के द्वारा इस प्रकार की रचनात्मकता को देखना अविस्‍मरणीय घटना वाला पल था।

बादल ने अपने चित्र में एक लड़की बनाई, उसके बगल में एक लड़का बनाया, जिसको बादल ने भूत की तरह बनाया। यहाँ तक तो ठीक था परन्‍तु उसने बीच में एक दिल बनाया। इस पर उससे बातचीत में पता चला कि वह यह बताना चाह रहा है की ‘लड़का भूत है जो लड़की का दिल ले रहा है।’ यहाँ तक भी ठीक था, परन्‍तु उसने उसी के नीचे एक लड़का और बनाया। उसके पास एक लड़की भी बनाई जो उसने भूतनी की तरह बनाई इस पर बादल का कहना था कि ‘भूतनी लड़की’ लड़के का दिल  ले रही है।

ध्‍यान रहे ये कक्षा दो का विद्यार्थी है। दिल के लेन-देन के बच्चे के मनोभावों को बिलकुल भी गलत अर्थों में न लें। वह इसके वास्तविक अर्थों से अपरिचित है। हाँ अपने परिवेश में सम्‍भव है कि वह इस तरह की कुछ कहानियाँ अथवा बातें सुनता हो। जिस परिवेश एवं परिवार से वह आता है, वह टीवी भी देखता होगा। अब उसके इस चित्र से कई सवाल मन में उठते हैं –

1. क्या बादल को लिंग आधारित मान्यता की समझ है कि लड़का अथवा  लड़की एक दूसरे को दिल देते हैं ?

2. एक बार लड़का और एक बार लड़की के दिल लेने एवं देने से वह क्या समझ रहा है?

3. इंसानों का दिल भूतों के द्वारा लेने को वह कैसे समझ रहा है ?

4. लड़का भूत तथा लड़की भूतनी से वह क्या दर्शा रहा है ?

5. भूत-भूतनी से अक्सर डर पर आधारित धारणा बच्चों के मन में होती है तो उसने भूत-भूतनी के द्वारा दिल लेने की धारणा कहाँ से सीखी ?

 

ऐसे अनगिनत प्रश्न हैं जो बाल मनोविज्ञान की मेरी समझ के आधार पर उठना स्‍वाभाविक था। यहाँ पर यह भी समझ लेना चाहिए कि उसके साथ बातचीत में यह बात भी साफ थी कि दिल लेने का अर्थ भूत-भूतनी के द्वारा लड़का या लड़की को मारना या दिल निकाल लेने से भी नहीं था।

बादल एक ऐसा विद्यार्थी है जो सामान्य रूप से साफ-सुथरा नहीं रहता है। उसके बाल बहुत बड़े हैं। संभव है कि उसे अपने परिवेश में उसके बारे में  “क्या भूत बनकर घूम रहा है? ” जैसे कमेंट सुनने को मिलते होंगे। इसके अतिरिक्‍त भूत की कहानियाँ उसने सुनी होंगी।

पूछने पर बादल ने बताया कि दिल उसने किताब से बनाया। लड़का-लड़की के भेद को वह समझता है। अन्‍तरमन में छिपी भूत की कहानियाँ, किताब से मिले दिल को वस्‍तु की तरह इस्तेमाल कर, लिंग आधारित अपनी अवधारणा के अनुरूप ड्राइंग बनाने के परिप्रेक्ष्‍य में बाल मन की रचनात्मकता के अतिरिक्‍त यह और क्या हो सकता है? बादल के साथ बातचीत में मैं इसे समझ नहीं सका।  

अपनी सीमित बौद्धिक क्षमता एवं अनुभव की अपनी सीमाओं के चलते बाल मन की इस पहेली को समझना मेरी क्षमताओं से परे की बात है। परन्‍तु मेरी नजर में यह चित्र मेरे शिक्षक जीवन में बाल मनोविज्ञान की मेरी धारणाओं के शान्‍त होते निर्मल जल में एक नई हिलोर तथा अवधारणा सीखने एवं रचनात्मकता के सपाट पत्थर पर एक नई लकीर खींचने के समान है। इस चित्र ने मेरी पूर्व धारणा कि, “बच्चे कक्षाकक्ष प्रक्रिया, विद्यालय, एवं अपने परिवेश से सीखकर, सीखी गई अवधारणा को अपने पूर्व ज्ञान के साथ जोड़-तोड़ करके अपनी नई अवधारणा गढ़ते हैं,’’ को संशोधित किया है। अब मै समझता हूँ कि, “बच्चे कक्षाकक्ष प्रक्रिया, विद्यालय, एवं अपने परिवेश से सीखकर, सीखी गई अवधारणा को अपने पूर्व ज्ञान के साथ जोड़-तोड़ करके अपनी नई बनाई अवधारणाओं के मोतियों को अपनी कल्‍पना के धागे में पिरोकर माला का रूप भी देते हैं।’’

कल्पनाओं का यह धागा अक्सर मोतियों के आकलन में कहीं गुम हो जाता है। जो मोतियों की बढ़ती संख्या में कहीं दिखाई नहीं देता व शिक्षक का ध्यान भी उसकी ओर नहीं जाता है। परन्‍तु ज्ञान रूपी सुन्‍दर माला लम्‍बे समय तक चिरस्थायी तभी बनी रहती है जब कल्पना रूपी यह धागा मजबूत हो। अन्यथा किताबी एवं सिर्फ अनुभव रूपी ज्ञान से बनी माला जीवन रूपी श्रंगार के किस पल में एक झटके से बिखर जाती है हमें पता भी नहीं चलता है। इस चित्र ने मुझे इतना तो सिखा ही दिया है ।


सौजन्य : teachersofindia,अनुराग मुद्गल, अज़ीम प्रेमजी स्‍कूल, सिरोही, राजस्‍थान

Post a Comment

0 Comments