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एक छत के नीचे 'प्राइमरी का मास्टर' से जुड़ी शिक्षा विभाग की समस्त सूचनाएं एक साथ

मन की बात (Man Ki Baat) : शिक्षक-प्रशिक्षणों एवं विद्यालयों में भ्रमण के दौरान मैंने पाया है कि लगभग प्रत्येक स्कूल में विलोम, तत्सम-तद्भव, पर्यायवाची एवं उच्‍चारण में समान शब्दों के रटवाने पर शिक्षकों का.........

शिक्षक-प्रशिक्षणों एवं विद्यालयों में भ्रमण के दौरान मैंने पाया है कि लगभग प्रत्येक स्कूल में विलोम, तत्सम-तद्भव, पर्यायवाची एवं उच्‍चारण में समान शब्दों के रटवाने पर शिक्षकों का बहुत जोर रहता है न कि बच्चों में एक सामान्य समझ विकसित करने पर। इसका परिणाम यह होता है कि बच्चे अक्सर भ्रम का शिकार हो जाते हैं। वे  इन शब्दों के आपसी अन्तर और उनकी प्रकृति को नहीं समझ पाते। हालाँकि कुछ नवाचारी शिक्षक इस प्रयास में रहते हैं कि बच्चों में समझ बनाई जाए, लेकिन ऐसे शिक्षकों की संख्या बहुत थोड़ी होती है।

कई शिक्षकों ने इस समस्या को मेरे सामने रखा और सरल उपाय चाहा जिसे बच्चे आसानी से समझ सकें। मैंने सोचा कि क्यों न बच्चों से विलोम और पर्यायवाची शब्दों पर नए तरीकों और गतिविधियों के माध्यम से बात की जाए। इस हेतु कार्ड अच्छा विकल्प हो सकते हैं, ऐसा सोचकर मैंने घर पर उपलब्ध बेकार वस्तुओं से विलोम शब्दों और पर्यायवाची शब्दों के कार्ड बनाने का निश्चय किया।  

मैंने वैवाहिक निमंत्रण पत्र, बाजार से लाए गए सामानों के पैकेट, पुरानी कापियों के मोटे चिकने कवर एकत्र किए। उनमें से 2 गुणा 1 इंच के एक समान टुकड़े काट लिए। इनकी एक सतह चिकनी और सफेद थी तो दूसरी लगभग खुरदुरी। सफेद चिकनी सतह पर लिखना उपयुक्त लगा। कई रंग के स्केच पेन लिए। पहले विलोम शब्द लिखना प्रारम्भ किया। प्रयास किया कि शब्द और उसका विलोम एक ही रंग के पेन से लिखूँ ताकि बच्चों के लिए समझना आसान हो सके।

कुछ दिनों पूर्व एक विद्यालय में 4 एवं 5 की सम्मिलित कक्षा में मैंने उनकी भाषा की पाठ्य पुस्तक ‘कलरव‘ के विभिन्न पाठों से बच्चों द्वारा ऐसे शब्‍दों की एक सूची बनवाई थी। ऐसे 70-80 शब्द और उनके विलोम के कार्ड मैंने तैयार किए। मैंने पानी, कमल, बादल, समुद्र, घर, बिजली, जंगल, पेड़, देवता, इन्द्र, सूर्य, पृथ्वी, आग, आकाश, दिन, कपड़ा, नेत्र, धनुष, तालाब, नदी, फूल आदि शब्दों के पर्यायवाची कार्ड भी बनाए। कार्ड बनाते समय यह ध्यान रखा कि किसी शब्द के सभी पर्यायवाची एक ही रंग से लिखे जाएँ ताकि पहचान सहज सम्भव हो। कार्ड तैयार करने में कक्षा नौ में अध्ययनरत मेरी बेटी संस्कृति ने भी सुझाव दिए और सहयोग किया। लगभग दो घंटे की मेहनत के बाद मेरे पास बिना कोई धन खर्च किए कुछ कार्ड तैयार हो गए। मैं रोमांचित था और एक नए अनुभव से गुजरने को उत्सुक भी।

अक्टूबर का आखिरी सप्ताह था। मेरा एक प्राथमिक विद्यालय जाना हुआ। रात में बारिश होने के कारण वातावरण में ठंड बढ़ गई थी। इस कारण उस दिन विद्यालय में बच्चों की संख्या कुछ कम थी।

मैं कक्षा 4 एवं 5 के बच्चों के साथ विलोम एवं पर्यायवाची शब्दों पर काम करने वाला था। मैं सीधे कक्षा 5 में चला गया, 14 बच्चे आए थे। गणित का शिक्षण चल रहा था। बच्चे ब्लैकबोर्ड में शिक्षिका द्वारा हल किए गए ‘भाग‘ के सवाल को अपनी कॉपियों में उतार रहे थे, जो 3 अंकों के भाजक पर आधारित थे। कक्षा में घूमकर देखा तो बच्चे बिना किसी समझ एवं जिज्ञासा के ब्लैकबोर्ड में हल किए गए सवाल को ज्यों का त्यों उतारने में व्यस्त थे और कई सारे अंक इधर-उधर हो रहे थे। मैंने शिक्षिका से प्रश्न किया कि क्या बच्चों को भाग की संक्रिया की समझ है और क्या वे दो अंकीय भाजक वाले सवाल हल करना सीख गए हैं? शिक्षिका का कहना था कि इन्हें नहीं आता है, लेकिन मुझे कोर्स पूरा करना है। मैं सोच रहा था कि बच्चे सवाल करने के बाद भी भाग की गणितीय प्रकिया से अनजान बने रहेंगे और इस कमी को लेकर अगली कक्षा में पहुँच जाएँगे। बच्चों के सवाल उतार लेने के बाद शिक्षिका मुझे बच्चों के बीच छोड़ चली गईं। मैंने बच्चों से कक्षा 4 में चलने को कहा और 3 के बच्चों को भी बुला लिया। अब बच्चों की सम्मिलित संख्या 29 पहुँच गई जो पर्याप्त थी।

मैंने शिक्षिकाओं से कहा कि यदि वे चाहें तो कक्षा में पीछे कुर्सी डाल कर बैठ सकती हैं। यह सुनकर प्रशिक्षु शिक्षिका पीछे बैठ गईं और प्रधान शिक्षिका एवं शिक्षामित्र ने बाहर बरामदे में बैठना उचित समझा। मैं इस विद्यालय में दूसरी बार आया था। पिछली भेंट में मैंने बच्चों से उनके नाम जाने थे और अपना परिचय दिया था।

मैंने बच्चों से किसी के द्वारा मेरा परिचय कराने को कहा लेकिन एक भी बच्चा खड़ा नहीं हुआ। मैंने उनसे उनका परिचय देने को कहा तो भी कोई नहीं बोला। मुझे याद आ रहा था कि पिछली बार भी ऐसा ही हुआ था। तब मैंने शिक्षिकाओं को कहा था कि प्रार्थना स्थल पर या उनकी अपनी कक्षा में बच्चों से प्रतिदिन परिचय देने की गतिविधि करवाई जाए। जिसमें वे अपना स्वयं का और अपने किसी एक साथी का परिचय दें। साथ ही बच्चों से उनके परिवेशीय ज्ञान के आधार पर खूब बातचीत की जाए। ताकि बच्चे अपने विचारों को अभिव्यक्त करना सीख सकें। लेकिन लगता है कि पिछले 40 दिनों में कुछ भी काम नहीं किया गया था अन्यथा बच्चे कुछ तो बोलते। खैर, मैंने पुनः अपना परिचय दिया। फिर एक गतिविधि की जिसमें सभी बच्चों को मेरे साथ हाव-भाव से एक गीत गाते हुए प्रदर्शन करना था-

रज्जू के बेटों ने मिट्टी के ढेरों में

कद्दू के कई बीज बोए बोए बोए।

रात का अँधेरा था, चूहों का डेरा था

दो चूहे बीज खाने, गए, गए, गए।

सुबह को न बीज थे, न मिट्टी के ढेर थे

दो चूहे मोटे होकर, सोए, सोए, सोए।

बच्चों ने गाने का खूब मजा लिया। बच्चों की माँग पर इसे दो-तीन बार गाया और भावानुसार अभिनय किया गया। गतिविधि पूरी होने के बाद मैंने कहा कि कद्दू क्या है और इसका क्या उपयोग होता है?

एक लड़का बोला, ‘गोल गोल इतना बड़ा (हाथ से आकार बनाते हुए)। इसकी सब्जी बनती है। उसे पौल (छोटे-छोटे टुकड़ों में काटना) लेते हैं और छौंक देते हैं, तेल, मसाला, पानी डाल देते है।’ लड़के की बात को काटते हुए अचानक प्रधान शिक्षिका बोलीं, ‘कददू की सब्जी में पानी नहीं डाला जाता, तुम लोगों को कुछ भी नहीं आता है।’

इस पर मैंने उन्हें चुप रहने का संकेत करते हुए कहा कि कद्दू की सब्जी बनाने के अलग-अलग तरीके हो सकते हैं। सम्भव है उस बच्चे के घर में कद्दू की सब्जी बनाने में पानी डाला जाता हो तो वह उसका अनुभव है। फिर मैंने कहा कि गीत में कद्दू के बीज की जगह दूसरी किन सब्जियों के बीज ले सकते हैं। एक-एक कर बच्चे बोलने लगे लौकी, भिंडी, तरोई, सेम, चचींड़ा, रेरुवा, कुम्हड़ा, टमाटर, बैंगन आदि के बीज। फिर उन सब सब्जियों के पौधों-बेलों, रंग, आकार, स्वाद, उपयोग और उनके उगने के मौसम के बारे में चर्चा हुई। बच्चों को कौन-सी सब्जी पसन्द है और क्यों, इस पर भी बच्चों ने अपनी भाषा-बोली में खूब मजेदार बातें कहीं। बच्चों का बोलना जारी था। उनकी झिझक-संकोच दूर हो चुका था।

समय तेजी से बीत रहा था। विलोम और पर्यायवाची शब्दों पर अभी बात शेष थी। अब मैंने उस पर चर्चा करना उचित समझा। मैंने बच्चों से पर्यायवाची और विलोम शब्दों के बारे में पूछा। बच्चों ने कुछ विलोम शब्द तो रटे हुए थे पर पर्यायवाची शब्दों से बिल्कुल अनजान थे। शिक्षिका ने कहा कि इनके बारे में अभी बताया नहीं गया है। अगले सप्ताह बताने वाले हैं।

मेरे सामने संकट आ गया कि अब इस विषय को बच्चों के सामने कैसे रखूँ, जबकि बच्चे उस पर कुछ जानते ही नहीं। लेकिन फिर लगा यह तो और भी अच्छा है कि बिल्कुल नए सिरे से बातचीत की शुरुआत की जाए। पहले विलोम शब्दों पर चर्चा करना उचित लगा क्योंकि बच्चों ने कुछ विलोम शब्दों के युग्म याद किए हुए थे जैसे काला-सफेद, आकाश-पाताल, लम्बा-छोटा आदि।

मैंने विलोम शब्दों के 15 जोड़ी कार्ड निकाले और बच्चों से एक कार्ड चुनने को कहा। मैं बच्चों के पास गया। उन्‍होंने एक-एक कार्ड ले लिया। सबको कार्ड देने के बाद एक कार्ड बचा रह गया जिसे मैंने अपने पास रख लिया। बच्चे कार्ड पढ़ने लगे थे। अब मैंने कहा कि कार्ड में लिखे शब्द का विलोम खोजकर जोड़ा बना कर एक साथ बैठना है। इतना सुनते ही कक्षा में धमाचौकड़ी मच गई और बच्चे अपने शब्द का विलोम ढूँढ़कर जोड़ी बनाने की प्रक्रिया में जुट गए।

उनमें उत्साह था और उनकी खुशी की चमक चेहरों पर नाच रही थी। कुछ ही देर देर में विलोम शब्दों के आठ युग्म मेरे सम्मुख उपस्थित थे। शेष बच्चे अभी भी अपने विलोम शब्द खोज रहे थे। एक कार्ड मेरे पास था जिस पर लिखे शब्द ‘अग्रज’ को मैंने दो-तीन पर पढ़ा, पर मेरे पास कोई नहीं आया। मुझे समझते देर नहीं लगी कि उन बच्चों को अब थोड़ी मदद की जरूरत है।

मैंने शब्द और उसका विलोम एक ही रंग के स्केच पेन से लिखे थे तो मैंने कहा कि जिनके कार्डों के रंग समान हों वे एक साथ जोड़ी बना लें। तुरन्त ही जोड़ियाँ बन गईं, लेकिन एक बच्चा बचा रह गया। मैंने उसे शब्द पढ़ने को कहा। पर वह पढ़ न सका। एक लड़की ने उसका शब्द पढ़ा- अनुज। कुछ बच्चे बोल पड़े, ‘अनुज का विलोम शब्द होगा अग्रज जो कि आपके पास है।’  इस गतिविधि को एक बार और किया गया। मैंने कुछ विलोम शब्द युग्म हटाकर नए मिला दिए। इस बार बच्चों ने जल्दी और बेहतरी के साथ काम पूरा किया।

अब पर्यायवाची शब्दों की चर्चा की बारी थी। मैंने बच्चों के परिवेशीय ज्ञान का आधार लेकर बात प्रारम्भ की कि हम सबके कई नाम होते हैं। एक नाम वह जो स्कूल के रजिस्टर में लिखा होता है, दूसरा घर का नाम, दोस्तों के बीच का नाम, ननिहाल में पुकारे जाने वाला नाम आदि। जैसे स्कूल के रजिस्टर में मेरा नाम प्रमोद दीक्षित लिखा है लेकिन घर में सब लोग राजा कहते हैं। ननिहाल में राजू और दोस्त नन्ना जी कहकर बुलाते हैं। तो राजा, राजू, नन्ना जी शब्द मेरे अपने नाम के पर्यायवाची हैं। वैसे यह बहुत सटीक उदाहरण नहीं था पर बच्चों की समझ अनुसार मुझे उचित लगा।

फिर मैंने बच्‍चों से पूछा, तुम्हारे कितने नाम हैं। मनोज बोला कि उसके घर का नाम लाला, ननिहाल का नाम मिट्ठू है। संदीप बोला घर में गोलू और ननिहाल में चिंटू पुकारते हैं। रानी बोली घर में काजल, मौसी के यहाँ गौरी और ननिहाल में दिव्या कहते हैं। इस तरह लगभग एक दर्जन बच्चों ने अपने नाम बताए। उनके बताए नामों को मैं ब्लैकबोर्ड में उनके स्कूली नाम के आगे लिखता जा रहा था। अब तो हर बच्चा अपना नाम ब्लैकबोर्ड में अंकित देखने का इच्छुक था। मुझे लगा कि अब बच्चों में पर्यायवाची शब्दों की एक मोटी सामान्य समझ बन गई है। इस समझ को तराशने और पर्यायवाची शब्दों के अर्थ की दृष्टि से और नजदीक ले जाने के लिए मैंने एक अन्य उदाहरण लेना उचित समझा।

अपनी शर्ट की ओर संकेत करके मैंने बच्चों से जानना चाहा कि यह क्या है? एक ने कहा सल्ट (शर्ट) है, दूसरे ने बुसकैट (बुशशर्ट), तीसरे ने कमीज, चौथे ने कुरती और एक अन्य ने मिरजई कहा। एक और उदाहरण के रूप में स्कूल के बगल में स्थित तालाब की ओर इशारा करते हुए पूछा कि वह क्या है? बच्चों से उत्तर में ताला, तलैया, पोखर शब्द मिले। बच्चे बिल्कुल सही दिशा में बढ़ रहे थे। सभी के उत्तरों को मिलाकर मैंने कहा कि जिन शब्दों से एक ही वस्तु का बोध हो तो वे सब शब्द उस वस्तु के पर्यायवाची या समानार्थी शब्द कहलाते हैं। बच्चों के चेहरों में सन्तुष्टि के भाव थे और मैं उनमें पर्यायवाची शब्दों की बनती एक समझ को अनुभव कर रहा था।

अब मैंने पर्यायवाची शब्दों के 4 कार्ड निकाले। प्रारम्भ में पानी, कमल, बादल और समुद्र ऐसे चार शब्द लिए। चार बच्चों को बुलाकर कार्ड चुनने को कहा। वे एक-एक कार्ड लेकर अपनी जगह बैठ गए। फिर इन शब्दों के पर्यायवाची कार्ड निकालकर मेज पर रख दिया। बच्चे आए और एक-एक कार्ड उठाकर अपनी जगह चले गए। सब अपने कार्ड के साथ दूसरों के कार्ड भी पढ़ रहे थे। एक-दो बच्चे ऐसे भी थे जो कार्ड में लिखा शब्द नहीं पढ़ पा रहे थे, उनकी मदद दूसरे बच्चों ने की। कक्षा में थोड़ा शोरगुल होने लगा था। क्योंकि एक-दूसरे का कार्ड पढ़ने के लिए बच्चे कक्षा में इधर-उधर दौड़ लगा रहे थे।

मैंने कहा कि पानी वाला कार्ड किसके पास है तो एक लड़की सामने आ गई। अच्छा अब बताओ कि पानी के पर्यायवाची शब्दों के कार्ड किनके पास हैं? कोई हलचल नहीं। मुझे ध्यान आया कि यह तो इन्हें कभी बताया ही नहीं गया। इसलिए थोड़ी मदद की जरूरत है। मैं बोला कि जल, नीर, वारि, अम्बु लिखे कार्ड जिनके पास हों वे सामने आ जाएँ। फिर शोरगुल होने लगा। क्योंकि बच्चे अपने-अपने कार्ड पढ़ने-पढ़वाने लगे। कुछ ही देर में चार बच्चे अपने कार्डों के साथ उस लड़की के साथ खड़े हो गए। सबने अपने कार्डों में लिखे शब्दों को दो-तीन बार पढ़ा जिसे अन्य बच्चों ने दुहराया। मैं खुश था कि बच्चे पानी के पर्यायवाची समझने की कोशिश कर रहे थे। कमल के पर्यायवाची के लिए मैंने मदद करते हुए कहा कि अभी जो पानी के पर्यायवाची शब्द आए थे उनके अन्त में यदि ज अक्षर लगा दिया जाए तो वे कमल के पर्यायवाची शब्द बन जाएँगे। इतना कहने पर सब अपने कार्ड पढ़ने लगे और अपने आप एक समूह के रूप मे सामने आ गए जिनके शब्द थे कमल, जलज, नीरज, वारिज, अम्बुज। बच्चे बिना किसी दबाव, भय, डर एवं तनाव के खेल-खेल में भाषा का एक पाठ मस्ती से सीख-समझ रहे थे।

कक्ष में पीछे बैठी शिक्षिका ने आग्रह किया कि बादल और समुद्र के पर्यायवाची वह निकलवाना चाहतीं हैं। मुझे अच्छा लगा कि वह रुचि ले रही हैं। उन्होंने यह काम सुन्दर तरीके से पूरा किया। चारों शब्दों के पर्यायवाची खोजने की गतिविधि कई बार की गई। बच्चे पूरी तरह समझ चुके थे। हालाँकि मुझे लगा कि यदि कार्ड का आकार एवं शब्दों की लिखावट और बड़े होते तो बेहतर होता। कक्षा का समय पूरा हो चुका था।

मैंने देखा कि कक्षा 4 एवं 5 के बच्चे आपस में पर्यायवाची शब्दों की गतिविधि का खेल खेलते हुए चहक रहे थे। मुझे विश्वास है कि इस गतिविधि से अर्जित विलोम एवं पर्यायवाची शब्दों का ज्ञान कभी विस्मृत नहीं होगा क्योंकि इसे उन्होंने स्वयं करके सीखा था। बच्चों में उमंग, उत्साह और ऊर्जा का एक सतत प्रवाह हिलोरें लेता रहता है।


प्रमोद दीक्षित ‘मलय’ : ब्लाक संसाधन केन्द्र, नरैनी जिला बाँदा (उत्तर प्रदेश) में सह-समन्वयक हिन्दी भाषा के पद पर कार्यरत। प्राथमिक शिक्षा के क्षेत्र में गुणात्मक बदलावों, आनन्ददायी शिक्षण एवं नवाचारी मुद्दों पर सतत् लेखन एवं प्रयोग।

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  1. 📌 मन की बात (Man Ki Baat) : शिक्षक-प्रशिक्षणों एवं विद्यालयों में भ्रमण के दौरान मैंने पाया है कि लगभग प्रत्येक स्कूल में विलोम, तत्सम-तद्भव, पर्यायवाची एवं उच्‍चारण में समान शब्दों के रटवाने पर शिक्षकों का.........
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