बच्चों के नाम पर सरकारी तंत्र न खाए ‘मिड डे मील’ : सिर्फ ‘मिड डे मील’ के नाम पर सरकारी स्कूल नहीं आ रहे छात्र , प्राइवेट स्कूलों में तेजी से बढ़ रही छात्रों की संख्या, सरकारी में घट रही,मिड डे मील पर सीएजी की पड़ताल
√मिड डे मील पर सीएजी की पड़ताल
√जो बच्चे इसका लाभ नहीं ले रहे, उनके नाम पर नहीं हो खर्च
√सिर्फ ‘मिड डे मील’ के नाम पर सरकारी स्कूल नहीं आ रहे छात्र
√प्राइवेट स्कूलों में तेजी से बढ़ रही छात्रों की संख्या, सरकारी में घट रही
नई दिल्ली : अब तक सरकार को यह पता ही नहीं है कि स्कूली बच्चों के नाम पर वास्तव में मिड डे मील कौन खा रहा है। इसलिए नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (सीएजी) ने कहा है कि उन बच्चों की पहचान करने की पुख्ता व्यवस्था की जाए जो वास्तव में इसका फायदा नहीं लेना चाहते। साथ ही उनके नाम पर खर्च हो रहे धन को बंद किया जाए। इसी तरह पाया गया है कि अब सिर्फ मिड डे मील के नाम पर बच्चों को सरकारी स्कूलों की तरफ आकर्षित करना मुमकिन नहीं है। जहां सरकारी स्कूलों में बच्चों की संख्या लगातार घट रही है, वहीं निजी स्कूलों में यह बढ़ रही है।
सीएजी ने कहा है कि मिड डे मील योजना को प्रभावशाली तरीके से लागू करने और धन की बर्बादी को रोकने के लिए यह बेहद जरूरी है कि इसका फायदा उठाने वाले बच्चों की वास्तविक संख्या पता करने की पुख्ता व्यवस्था हो। अभी राज्य इसके लिए कुछ आंकड़े भेजते हैं, लेकिन वे विश्वसनीय नहीं हैं और ना ही उनकी कोई जांच होती है। इसके लिए लाभ लेने वाले बच्चों से किसी फार्म पर दस्तखत करवाने जैसा कोई उपाय किया जा सकता है ताकि उनके नाम पर होने वाली धांधली बंद हो।
अपनी पड़ताल में इसने पाया है कि मिड डे मील छात्रों को स्कूल तक लाने का एक प्रभावी जरिया तो रहा है, लेकिन खास तौर पर शहरी इलाकों में इसकी समीक्षा करना बेहद जरूरी हो गया है। जिन स्कूलों में यह योजना चलाई जा रही है, उनमें छात्रों की संख्या पिछले वर्षो में लगातार घटती गई है। वर्ष 2009-10 से 2013-14 तक देश भर में इन स्कूलों में छात्रों की संख्या 14.69 करोड़ से घट कर 13.87 करोड़ हो गई है। जबकि इसी दौरान निजी स्कूलों में छात्रों की संख्या में 38 फीसद का भारी इजाफा हुआ। यह संख्या 4.02 करोड़ से बढ़ कर 5.53 करोड़ पहुंच चुकी है।
मिड डे मील के अमल पर CAG का सवाल |
नई दिल्ली : मिड डे मील के इंप्लिमेंटेशन पर सवाल उठाते हुए सीएजी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि ज्यादातर राज्यों नें भोजन की क्वॉलिटी का निरीक्षण नहीं किया गया। इसके साथ ही गरीब बच्चों की पहचान के लिए कोई मानदंड नहीं बनाए गए जिससे इसका मकसद महज कागजों पर ही रह गया। वर्ष 2009-10 से 2013-14 तक मिड डे मील स्कीम की परफॉर्मेंस रिपोर्ट में कहा गया है कि कम से कम 9 राज्यों के सैंपल टेस्ट किए गए स्कूलों में बच्चों को निर्धारित पोषण नहीं दिया गया। एजेंसी के जांचे गए 2101 में से 1876 सैंपल निर्धारित पोषक मानकों को पूरा करने में विफल रहे। असम, बिहार, दमन दीव, गोवा, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, कर्नाटक, मणिपुर और लक्षद्वीप में बच्चों को दिए जा रहे भोजन की क्वॉलिटी जांचने में टीचर शामिल नहीं थे। |
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📌 बच्चों के नाम पर सरकारी तंत्र न खाए ‘मिड डे मील’ : सिर्फ ‘मिड डे मील’ के नाम पर सरकारी स्कूल नहीं आ रहे छात्र , प्राइवेट स्कूलों में तेजी से बढ़ रही छात्रों की संख्या, सरकारी में घट रही,मिड डे मील पर सीएजी (CAG) की पड़ताल
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