7वीं की छात्रा ने दी शिक्षा मंत्री को चुनौती : कहा- मेरे साथ परीक्षा दें फिर करें फैसला
छत्तीसगढ़ के शिक्षा मंत्री केदार कश्यप अपनी करतूतों से एक बार फिर चर्चा में हैं. उनके ऊपर सातवीं की छात्रा और उसके साथ आई एक एनजीओ वर्कर को घर से धक्का देकर बाहर निकालने का आरोप लगा है. दरअसल छात्रा का कहना है कि उसे सीधे 10 वीं एडमिशन दिया जाए क्यों कि वो पढ़ने में होशियार है.
उसके साथ गई एनजीओ वर्कर का भी कहना है कि छात्रा रूबी पढ़ने में अच्छी है अगर वो ये बात साबित कर सकती है तो क्यों न उसे 10 वीं में प्रवेश दिया जाए. इसके लिए वो कई जगहों पर चक्कर भी काट चुकी है.
इसी बात की गुहार लेकर वो मंत्री केदार कश्यप के आवास पर गई थी. लेकिन उसकी बात सुनने के बजाए मंत्री जी ने छात्रा और उस एनजीओ वर्कर को धक्का देकर घर से बाहर निकलवा दिया. अब रूबी ने सीएम रमन सिंह से पत्र लिखकर अपने साथ हुए इस घटन के बारे में बताया है. मासूम रूबी का पत्र पढ़कर आपका दिल भी भर आएगा.
आदरणीय रमन अंकल जी प्रणाम अंकल मेरा नाम रूबी परवीन है. मेरे अब्बू का नाम श्री अनवरुल हक है. मेरी अम्मी अफसाना बेगम है. मैं संजय नगर में कक्षा 7वीं में पढ़ती हूं. मेरे अब्बू बैग बनाने का काम करते हैं और वे चाहते है कि हम सभी भाई बहन खूब पढ़े और आगे बढ़े.
मैं भी खूब मन लगाकर पढ़ना चाहती हूं. मैं आजा चौक हांडापारा के दादा कोचिंग सेंटर में भी पढ़ने जाती हूं मुझे यहां खूब अच्छा लगता है. हमारी टीचर माधवी दीदी भी हमें खूब प्यार करती है.
हमारे दादा चंद्रकान्त वाकडे जी भी हमें खूब मन लगाकर सिखाते हैं. अनिल सर भी हमें प्यार करते हैं. मेरी दीदी यह चाहती हैं कि मैं कक्षा दसवीं की परीक्षा में बैठूं इसके लिए हमारी दीदी मुझे लेकर कई जगह भटकती रही हैं. मैं तो ज्यादा नहीं जानती लेकिन मुझे दीदी ने बोर्ड के ऑफिस में भी ले गई थी.
वहां पर एक आदमी ने मेरी दीदी को कहा जाओ पहले अमिताभ बच्चन को बोलो, कौन बनेगा करोड़पति में भाग लो, जब मैं टीवी में दिखूंगी तब परीक्षा दे पाउंगी.
अंकज जी मैंने आपके बारे में खूब सुना है. मेरी दीदी मुझे लेकर आपके पास भी गई थी. आपने हमारे आवेदन पर कुछ लिखा भी था लेकिन मुझे अब तक दसवीं की परीक्षा में बैठने के लिए मौका नहीं मिला है.
मैं दीदी के साथ शिक्षा मंत्री जी के घर भी गई थी मुझे याद है मैं दीदी के साथ चार बार गई थी. चार बार में से एक बार शिक्षा मंत्री जी मिले. मैं उन्हें पहचान गई हूं. उनकी हाईट कम है. वो बहुत गुस्से में रहते हैं.
मैं 27 तारीख को दीदी के साथ गई थी. तब भी वे किसी को चिल्ला रहे थे. वे क्या बोल रहे थे...मुझे नहीं मालूम तब मुझे दीदी ने बताया कि वे आदिवासी भाषा में किसी को डांट रहे हैं.
मेरी दीदी ने जैसे ही उन्हें आवेदन दिया तो वे गुस्सा हो गए. वे जोर-जोर से चिल्लाने लगे. वे गुस्से में कुछ बोल रहे थे. मै डर के मारे कांपने लगी. उन्होंने पुलिसवालों को बुला लिया और बोले दोनों को उठाकर बाहर फेंक दो.
पुलिस वाले मुझे और दीदी को पकड़ने के लिए आगे बढ़े मैं रोने लगी तो पुलिसवाले बोले चलो निकलों यहां से. हम लोग जल्दी-जल्दी बाहर निकल गये. बाहर आकर दीदी भी खूब रोई.
उसके बाद दीदी मुझे थाने लेकर गईं. मैंने दीदी से पूछा तो वो बोली हम लोग रिपोर्ट लिखवाएंगे. मैंने दीदी से कहा जिन्होंने हमें घर से भगाया है वहां तो पहले से ही पुलिस थी फिर पुलिस हमारी रिपोर्ट क्यों लिखेगी.
ऐसा ही हुआ. थाने में हम लोग दो घंटे तक बैठे रहे. फिर एक पुलिसवाला आया और बोला सादे कागज में लिख दो. हम लोग सादे कागज में बात लिखकर चले आये. उसके बाद मैं दीदी के साथ मोती बाग गई. दीदी ने मुझे बताया चल यहां पत्रकार लोग बैठते हैं उनको बताएंगे.
वहां एक आदमी ने कहा सभी पेपर में छपवाने के लिए 750 रुपये जमा करना पड़ता है. एक और आदमी ने कहा मंत्री के खिलाफ मत लड़ो. सरकार पैसा देती है तब पेपर छपता है.
अंकल जी आपको मैं चिट्ठी लिख रही हूं. क्योंकि मैं पढ़ना चाहती हूं. मैं अपने अब्बू को बैग सिलते हुए नहीं देखना चाहती. मुझे और दीदी को केदार अंकल जी ने जिस तरह से घर भगाया उससे मुझे बहुत खराब लगा.
मुझे पुलिस पकड़ लेती तो मेरे अब्बू अम्मी का क्या होता. सब उनको बोलते तुम्हारी बेटी को तो पुलिस ने पकड़ लिया है. अब्बू, अम्मी कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं रहते. अंकज जी आप बताइये मेरा कसूर क्या है. क्या मैं पढ़ना चाहती हूं. यही मेरा कसूर है? मैं दसवी की परीक्षा देना चाहती हूं.
क्या यही मेरा कसूर है. मैं पढ़-लिखकर डॉक्टर बनना चाहती हूं. सबको बचाना चाहती हूं. क्या यही मेरा कसूर है? मैं अपनी अम्मी, अब्बू को खुश देखना चाहती हूं क्या यही मेरा कसूर है?
मैं परीक्षा देना चाहती हूं और चाहती हूं कि शिक्षा मंत्री भी मेरे साथ परीक्षा में बैठे और अंकल जी मैं चाहती हूं कि आप हम दोनों को परीक्षा में लें यदि परीक्षा में पास हो गई तो मुझे दसवी कक्षा की परीक्षा में बैठने दिजिएगा और मंत्री जी फेल हो गये तो उन्हें ये जरूर कहियेगा कि फिर कभी वो किसी की बेटी को न डांटे.
अंकल जी मै आपकी बेटी की तरह ही हूं मैं केदार कंकल जी की भी बेटी की तरह हूं और मुझे मेरी टीचर दीदी ने सिखाया है. मैं आपसे विनती करती हूं कि अपनी बेटी समझकर परीक्षा में बैठने दें. मैं आपको वादा करती हूं आपका सम्मान बढ़ा कर ही रहूंगी.
रूबी परवीन शिवनगर,संतोषी नगर तमन्ना किराना स्टोर्स के बाजू में रायपुर (छग)
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