मीना की दुनिया (Meena Ki Duniya) एपिसोड 27 | आज की कहानी का शीर्षक- "सब की सुनो”
एपिसोड-27
दिनांक-29/10/2015
आकाशवाणी केंद्र-लखनऊ; समय-11:15am से 11:30am तक
आज की कहानी का शीर्षक- “सब की सुनो”
कल मीना के स्कूल में बाल संसद की बैठक होने जा रही है, उस बैठक की अध्यक्षता करेगी- अपनी मीना|
अभी मीना, कृष्णा के साथ स्कूल से लौट रही है| मीना और कृष्णा पिछली पिछली बाल संसद की बैठक के अनुभव साझा कर रहे हैं कि कैसे सब बच्चे एक दूसरे की बात काट रहे थे| और वो बैठक बिना किसी नतीजे के खत्म हो गयी थी|
मीना कहती है, ‘...मैं तो बस इतना सोच रही हूँ कि कल बैठक सुचारु रूप से कैसे चले?’
और जब मीना अपने घर पहुँची-
दादी बोली, ‘...और....क्या हुआ आज स्कूल में?
मीना- दादी कल स्कूल में बाल संसद की बैठक है और बहिन जी ने मुझसे उस बैठक की अध्यक्षता करने को कहा है|....पता है दादी जी पिछली बैठक की अध्यक्षता दीपू ने की थी और उस बैठक में इतना शोर....इतना हल्ला-गुल्ला...हुआ था कि क्या बताऊँ?
दादी मीना को समझाती हैं, ‘.....जिस बैठक में इतने सारे लोग अपनी-अपनी बात रख रहे हो वहां शोरगुल तो होगा ही और वैसे भी हर किसी का अपना एक व्यक्तित्व होता है, अपनी ही एक सोच होती है और बात करने का ढंग भी अपना ही होता है| लेकिन ऐसे में अध्यक्ष को चाहिए कि वो हर व्यक्ति को उसके व्यक्तित्व के आधार पर सुने और अपनी बात कहे|
मीना- मैं कुछ समझी नही दादी|
दादी- देखो बेटी, तुम्हारे बाबा के लिए जैसे तुम वैसे ही राजू|..लेकिन क्या तुमने कभी इस बात पे गौर किया है कि तुम्हारे बाबा तुमसे और राजू से कितने अलग-अलग तरीके से बात करते हैं? ख़ास तौर से जब उन्हें तुम दोनों को कुछ समझाना होता है|
मीना अपनी सहमति देती है, ‘हाँ, बाबा मुझे खूब विस्तार से समझाते हैं खूब अच्छे तरह|’
दादी- हाँ...और वो इसलिए क्योंकि तुम बड़ी और चीजों को राजू से बेहतर समझती हो|....इसका और भी एक कारण है वो ये कि राजू और नादान और चंचल है जबकि तुम उम्र में राजू से बड़ी हो और समझदार हो| और फिर दोनों ही नहीं...तुम्हारे बाबा सभी के साथ अलग-अलग ढंग से बात करते है क्योंकि हर व्यक्ति की सोच, व्यक्तित्व और स्वभाव और अलग होता है|
और फिर अगले दिन बाल संसद की बैठक में....
मीना- दोस्तों...मैं, बाल संसद की इस बैठक में आप सब का स्वागत करती हूँ| आज इस बैठक में हम सब एक महत्त्वपूर्ण विषय पर विचार और चर्चा करेंगे, और वो विषय है-‘स्कूल के शौचालय में पानी का अभाव’| अब मैं आपसे आग्रह करती हूँ कि आप एक-एक करके इस विषय में अपने विचार सबके सामने रखें|
“शौचालय के बाहर पानी से भरी बाल्टियाँ रखनी चाहिए|”
“शौचालय में पानी से भरी बोतलें रखनी होंगी|”
“मुझे नहीं लगता ये समस्या दूर हो सकती है|”
“स्कूल में एक पानी का टैंक लगवाना पड़ेगा.......
एक मिनट-एक मिनट-एक मिनट-मीना बोली, “अगर हम सब ऐसे एक साथ जोर-जोर से बोलेंगे तो किसी की बात किसी को समझ नहीं आएगी| मेरा सुझाव है कि हम बारी-बारी से बात बोले तभी सबकी बात को सुना और समझा जा सकेगा| एक बात और हम में से हर कोई अपनी बात खत्म करके बोलेगा-‘बस’|”
दीपू बोला, ‘बाल संसद की पिछली बैठक में मैंने ये ही सुझाव दिया था कि शौचालय के बाहर पानी से भरी हुयीं बाल्टियाँ होनी चाहिए|’ ‘बस’
कृष्णा- दीपू का सुझाव अच्छा है लेकिन एक तो यह समस्या का सही हल नहीं और दूसरा स्वास्थ्य की दृष्टि से सही नहीं होगा| ‘बस’
मीना- वो कैसे?
कृष्णा-क्योंकि बाल्टी में बार-बार गंदे हाथ लगने से पानी दूषित हो जाएगा और इस्तेमाल के योग्य नहीं रहेगा|’बस’
मीना- कृष्णा तुम्हारा कहना सही है|
मोनू- ....मेरा सुझाव है कि स्कूल में बिजली से चलने वाला एक पम्प लगवाना चाहिए| ‘बस’
मीना- मोनू तुम्हारा सुझाव तो अच्छा है लेकिन मुझे ये नहीं पता कि स्कूल के पास अभी बिजली के पम्प खरीदने के लिए पर्याप्त धन है या नहीं|
रानो सुझाव देती है, ‘...कि हमें...............|
आज का गीत- ार रखे| तभी मीना ने देखा कि सुमी बिल्कुल चुपचाप बैठी है|
मीना- सुमी, तुम्हारा इस बात पर क्या कहना है?
सुमी- मीना मैं वो....मुझे लगता है....|
दीपू सुमी का मजाक बनाता है|
मीना दीपू को दादी की कही बातें समझाती है|
मीना सुमी से कहती है, ‘तुम आराम से सोचो ये बाल संसद तुम्हारे विचार की प्रतीक्षा करेगा|’
मीना की बात सुनके मानो सुमी को एक नया आत्मविश्वास एक नयी प्रेरणा मिल गयी हो|उसने पूर्ण एकाग्रता से सोचना शुरु किया और फिर कुछ ही देर में....
सुमी बोली, ‘...कि शौचालय की छत पे एक पानी की टंकी और सौर उर्जा से चलने वाला पम्प हो|’‘बस’
मीना- वाह सुमी, क्या सुझाव है|
दीपू को भी अपनी भूल का एहसास होता है|
पूरे बाल संसद को भी सुमी का सुझाव बहुत अच्छा लगता है|...और प्रताव रखा जाता है कि स्कूल प्रबन्ध समिति की मीटिंग में ये सुझाव सबके सामने रखा जाए|
और फिर अगले दिन स्कूल प्रबंध समिति की मीटिंग में सरपंच जी सुमी का सुझाव सुनके बोले
तुम सुनो हमारी हम सुने तुम्हारी
इक दूजे की बात समझना यही है समझदारी|-२
इक दूजे के दिल की समझो इक दूजे को जानो
कहे चाहे दोस्त बात जो उसको तुम पहचानो|
बात-बात में बात है बनती सही कहावत प्यारी
इक दूजे की बात समझना यही है समझदारी|
अपनी इक मुस्कान से ही बस बिगड़ी बात बनालो
कभी जो कोई रूठे तो तुम हँस के उसे मन लो |
मीठे-मीठे झगड़ों से हो पक्की और भी यारी
इक दूजे की बात समझना यही है समझदारी|
तुम सुनो हमारी हम सुने तुम्हारी
इक दूजे की बात समझना यही है समझदारी|
आज का खेल- ‘नाम अनेक अक्षर एक’
अक्षर-‘न’
व्यक्ति- नेल्सन मंडेला
वस्तु- नमक
जानवर- नेवला
जगह- नागालैण्ड (जिसकी राजधानी कोहिमा है)
आज की कहानी का सन्देश-
यदि हम लोगों से उनके अलग-अलग व्यक्तित्व व स्वाभाव के अनुसार बात करें तो उनकी बात समझना और अपनी बात समझा पाना आसान हो जाता है|
1 Comments
जी....आज का गीत' शीर्षक छूट गया है।
ReplyDeleteगीत से पहले कुछ कहानी का portion भी एडिट कर दिया गया है।
कृपया उसे पूरा करें।
यदि मीना की दुनिया -रेडियो प्रसारण (https://facebook.com/meenakiduniya) का referance भी पोस्ट के साथ दे सकें तो मेहरवानी होगी।